"माया": अवतरणों में अंतर

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{{स्रोतहीन|date=अगस्त 2012}}
{{सन्दूक हिन्दू धर्म}}
'''माया''' शब्द का प्रयोग एक से अधिक अर्थों में होता है। ऐसा प्रतीत होता है कि विचार में परिवर्तन के साथ शब्द का अर्थ बदलता गया। जब हम किसी चकित कर देनेवाली घटना को देखते हैं, तो उसे ईश्वर की माया कह देते हैं। यहाँ माया का अर्थ शक्ति है। जादूगर अपनी चतुराई से पदार्थों को विपरीत रूप में दिखाता है, पदार्थों के अभाव में भी उन्हें दिखा देता है। यह उसकी माया है। यहाँ का अर्थ मिथ्या ज्ञान या ऐसे ज्ञान का विषय है। मिथ्या ज्ञान दो प्रकार का है -- भ्रम और मतिभ्रम। भ्रम में ज्ञान का विषय विद्यमान है परंतु वास्तविक रूप में दिखाता नहीं, मतिभ्रम में बाहर कुछ होता ही नही, हम कल्पना को प्रत्यक्ष ज्ञान समझ लेते हैं।हैं
माया सृष्टी मै वह सम्मोहीनी शक्ती हैं जिसके द्वारा असीम और अभिभाज्य ईश्वर मै सीमिताताएँ और विभाजन प्रतित होते हैं ईश्वर की योजना और लीला मै इस भ्रामक शक्ती का एक मात्र उदेश्य मानव के बोध को परमात्मा (ब्रह्म )से पदार्थ की और वस्त्विकता से आवास्त्विकता की और मोड़ने के लिए उस अज्ञान रूपी पर्दे को डालना है
 
हम में से हर एक कभी न कभी भ्रम या मतिभ्रम का शिकार होता है, कभी द्रष्टा और दृष्ट के दरमियान परदा पड़ जाता है। कभी वातावरण मिथ्या ज्ञान का कारण हो जाता है व्यक्ति की हालत में इसे [[अविद्या]] कहते है। माया व्यापक अविद्या है जिसमें सभी मनुष्य फँसे हैं। कुछ विचारक इसे भ्रम के रूप में देखते हैं, कुछ मतिभ्रम के रूप में। पश्चिमी दर्शन में [[इमानुएल काण्ट|कांट]] और [[बर्कले]] इस भेद को व्यक्त करते हैं।
"https://hi.wikipedia.org/wiki/माया" से प्राप्त