"पारसी रंगमंच": अवतरणों में अंतर

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पारसी थियेटर में गाना एक अहम तत्व था और इसमें अभिनेता अपनी गूढ़ भावनाओं को अभिव्यक्त करने के लिए गाने का सहारा लेते थे। पारसी थियेटर में एक अभिनेता के लिए एक अच्छा गायक होना बेहतर माना जाता था क्योंकि आधी कहानी गानों में ही चलती थी। पारसी थियेटर का ही प्रभाव है कि आज हमारे हिन्दी फिल्मों में गाने का भरपूर प्रयोग किया जाता है। गानों के बगैर आज भारतीय दर्शक फिल्म को अधूरा मानते हैं। हमारी आधुनिक हिन्दी फिल्में पश्चिम के रिएलिज्म से प्रभावित दिखने लगी है लेकिन आज भी यह पारसी थियेटर की, गाना गाकर बात कहने की परंपरा को कायम रखे हुए है। हिन्दी फिल्मों की सफलता के लिए पासपोर्ट बन चुके ‘आइटम सॉन्ग’ की जड़ें दरअसल पारसी थियेटर तक जाती है और आज भले ही सिनेमा और रंगमंच से इस प्राचीन शैली के अभिनय के तत्व गायब हो गये हों लेकिन इस नाट्य शैली के गाने गाकर अपनी भावनाओं से दर्शकों को उद्वेलित करने की अदा आज भी कायम है।
 
==सन्दर्भ==
{{टिप्पणीसूची}}
 
== इन्हें भी देखें ==
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* [[संस्कृत नाटक]]
* [[नाट्यशास्त्र]]
 
==बाहरी कड़ियाँ==
*[https://www.hindisamay.com/content/4771/1/लेखक-सुप्रिया-पाठक--की-शोध-स्त्रियाँ-एवं-रंगमंच-पारसी-रंगमंच-से-नुक्कड़-नाटकों-तक-का-सफर.cspx स्त्रियाँ एवं रंगमंच : पारसी रंगमंच से नुक्कड़ नाटकों तक की यात्रा] (लेखिका : सुप्रिया पाठक )
 
[[श्रेणी:रंगमंच]]