"आचार्य रामदेव": अवतरणों में अंतर

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== परिचय ==
आचार्य रामदेव का जन्म [[पंजाब (भारत)|पंजाब]] प्रान्त में [[होशियारपुर]] जिले के बजवाड़ा [[ग्राम]] में हुआ था। उनके पिता का नाम लाला चन्दूलाल था। वे अध्यापक थे, अत: उन्होंने अपने पुत्र की शिक्षा की व्यवस्था सुचारु रूप से की। १५ वर्ष की आयु में रामदेव जी ने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की और डी.ए.वी. कॉलेज [[लाहौर]] में अध्ययनार्थ प्रविष्ट हुए। उन दिनों गुरुकुल दल और कॉलेज दल में मतभेद पराकाष्ठा पर थे। रामदेव की सहानभूति गुरुकुल दल की और होने के कारण उन्हें कॉलेज से निष्कासित कर दिया गया। ऐसे कठिन समय में उन्हें [[स्वामी श्रद्धानन्द|महात्मा मुंशीराम]] जी ने सहारा दिया। मुंशीराम ने उन्हें आर्य प्रतिनिधि सभा पंजाब की साप्ताहिक पत्रिका ('''आर्यपत्रिका''') का उपसम्पादक बना दिया। उन्होंने १९०४ में बी.ए. और १९०५ में सेण्ट्रल कॉलेज लाहौर से बी.टी. की परीक्षा उतीर्ण की।
 
महात्मा मुंशीराम ने आचार्य रामदेव को [[गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय|गुरुकुल कांगडी]] में मुख्य अध्यापक के पद पर नियुक्त किया। [[शिक्षाशास्त्र]] के मर्मज्ञ आचार्य रामदेव ने गुरुकुल की व्यवस्था, पाठ्यपद्धति, तथा शिक्षा प्रणाली में अनेक सुधार किये। [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]] और [[वेद]] तथा आर्ष ग्रन्थों के साथ साथ [[अर्थशास्त्र]], [[इतिहास]], [[राजनीति]], [[गणित]], [[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेजी]] तथा [[विज्ञान]] भी पाठ्यक्रम में मिलाये गये। इन परिवर्तनों की वजह से गुरुकुल कांगडी ने एक विश्वविद्यालय का दर्जा हासिल किया। रामदेव १९३२ में देश के स्वाधीनता संग्राम में कूद पड़े। पंजाब में कांग्रेस आन्दोलन के सर्वाधिकारी रहे और कारावास भी भोगा। १९३६ में होनेवाले "कांफ्रेंस ऑफ लिविंग रिलीजन्स" में सम्मिलित होने का निमन्त्रण प्राप्त कर आप उसमे जाने के लिये तैयार हुए परन्तु [[पक्षाघात]] का आक्रमण होने के कारण यह यात्रा रुक गयी। ९ दिसम्बर १९३९ को लगभग तीन वर्ष की अस्वस्थता के पश्चात् [[देहरादून]] में उनका निधन हुआ।
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[[श्रेणी:भारतीय स्वतंत्रता सेनानी]]
[[श्रेणी:शिक्षाशास्त्री]]
[[श्रेणी:आर्यसमाजआर्य समाज]]
[[श्रेणी:भारतीय इतिहासकार]]