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१. '''[[डिफ्थीरिया]]''' - इसके जीवविष की विशेष क्रिया स्थानिक ऊतकों का नाश, हृदय की पेशियों का क्षय नाड़ीमंडल को क्षत करना है, जिससे स्थानिक पक्षाघात तक हो जाता है। शरीर के समस्त ऊतकों पर उसका विषैला प्रभाव होता है। प्रतिजीवविष (ऐंटिटॉक्सिन) इस विष का निराकरण करता है, किंतु उसकी मात्रा विषों की मात्रा के लिये पर्याप्त होनी चाहिए। यह भली भाँति प्रमाणित हो चुका है कि प्रतिविष इसकी विशिष्ट ओषधि है। फिबिगर के आँकड़े इस प्रकार हैं : प्रतिविष द्वारा चिकित्सा किए गए २३९ रोगियों में केवल ३.५ प्रति शत व्यक्तियों की मृत्यु हुई। २४५ रोगियों में, जिनको प्रतिविष नहीं दिया गया, १२.२५ प्रति शत की मृत्यु हुई।
 
२. '''[[धनुस्तम्भ|टिटैनस]]''' - टिटेनस [[बैसिलस]] इस रोग का कारण होता है। [[जबड़े]] और गले की पेशियों[[पेशियो]] से आरंभ होकर सारे शरीर की पेशियों में ऐंठन होने लगती है, विशेषकर पीठ की पेशियों में। अंत में श्वास संबंधी पेशियों के भी [[तनाव]] से मृत्यु हो जाती है। इसका [[जीवविष]] विशेषकर [[नाड़ियों के मूलों]] को प्रभावित करता है। इस रोग की चिकित्सा के लिये [[ऐंटिटॉक्सिन]] विशेष ओषधि है, जिसका पर्याप्त मात्रा में प्रयोग करना पड़ता है। कई लाख एकांक आवश्यक हो सकते हैं।
 
३. '''[[सर्पदंश]]''' - कोब्रा और रसैल बाइपर के काटे की चिकित्सा [[ऐंटिवेनम]] से होती है, किंतु काटने के पश्चात्‌ जितना शीघ्र हो सके, इसे देना चाहिए।
 
४. गैसयुक्त [[कोथ]], [[रक्तद्रावी]], [[स्ट्रिप्टोकोकस रोग]] तथा अन्य कई रोगों में [[प्रतिविष]]युक्त सीरम का प्रयोग होता है।
 
== सन्दर्भ ==