"मेघनाद": अवतरणों में अंतर

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==शिक्षा==
मेघनाद के गुरु असुर-गुरु [[शुक्राचार्य]] थे। [[किशोरावस्था]] (12 वर्ष) कि आयु होते-होते इसने अपनी कुलदेवी [[निकुंभला]] के मंदिर में अपने गुरु से दीक्षा लेकर कई सिद्धियां प्राप्त कर लीं । एक दिन जब रावण को इस बात का पता चला तब वह असुर-गुरु शुक्राचार्य के आश्रम में पहुंचा । उसने देखा कि असुर-गुरु शुक्राचार्य मेघनाद से एक अनुष्ठान करवा रहे हैं । जब रावण ने पूछा कि यह क्या अनुष्ठान हो रहा है, तब आचार्य शुक्र ने बताया कि मेघनाद ने मौन व्रत लिया है । जब तक वह सिद्धियों को अर्जित नहीं कर लेगा, मौन धारण किए रहेगा । अंततः मेघनाद अपनी कठोर तपस्या में सफल हुआ और भगवान शिव ने उसे दर्शन दिए । भगवान शिव ने उसे कई सारे अस्त्र-शस्त्र, शक्तियां और सिद्धियां प्रदान की । परंतु उन्होंने मेघनाद को सावधान भी कर दिया कि कभी भूल कर भी किसी ऐसे ब्रह्मचारी का दर्शन ना करे जो 12 वर्षों से कठोर ब्रह्मचर्य और तपश्चार्य का पालन कर रहा हो । इसीलिए भगवान श्रीराम जी ने लक्ष्मण जी से 12 वर्ष तक कठोर तपस्या करवाई थी
 
वरदान पाने के बाद मेघनाद एक बार फिर से असुर गुरु शुक्राचार्य की शरण में गया और उनसे पूछा उसे आगे क्या करना चाहिए । तब असुर-गुरु शुक्राचार्य ने उसे सात महायज्ञों की दीक्षा दी जिनमें से एक महायज्ञ भी करना बहुत कठिन है । यह भी कहा जाता है कि मेघनाद का नाम उन योद्धाओं में लिया जाता है जोकि आदिकाल से इन महायज्ञ को करने में सफल हो पाए हैं ।
 
ऐसा भी कहा जाता है कि भगवान श्रीविष्णु जी, रावण पुत्र मेघनाद और सूर्यपुत्र कर्ण के अतिरिक्त आदिकाल से ऐसा कोई नहीं है जो वैष्णव यज्ञ कर पाया हो ।
 
== जीवन ==