"मेघनाद": अवतरणों में अंतर

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== जीवन ==
देवासुर संग्राम के समय जब रावण ने सभी देवताओं को इंद्र समेत बंदी बना लिया था और कारागार में डाल दिया था, उसके कुछ समय बाद एक समय सभी देवताओं ने मिलकर कारागार से भागने का निश्चय किया और साथ ही साथ रावण को भी सुप्त अवस्था में अपने साथ बंदी बनाकर ले गए । परंतु मेघनाद ने पीछे से अदृश्य रूप में अपने दिव्य रथ पर आरूढ़ होकर देवताओं पर आक्रमण किया । देव सेनापति भगवान [[कार्तिकेय]] ठीक उसी समय देवताओं की रक्षा के लिए आ गए परंतु मेघनाद को नहीं रोक पाए । मेघनाद ने न केवल देवताओं को पराजित किया अपितु अपने पिता के बंधन खोलकर और इंद्र को अपना बंदी बनाकर वापस लंका ले आया । जब रावण जागा और उसे सारी कथा का ज्ञान हुआ तब रावण और मेघनाद ने यह निश्चय किया इंद्र का अंत कर दिया जाये ,परंतु ठीक उसी समय भगवान [[ब्रह्मा]] जी लंका में प्रकट हुए और उन्होंने मेघनाद को आदेश दिया कि वह इंद्र को मुक्त कर दे । मेघनाद ने यह कहा कि वह कार्य केवल तभी करेगा जब ब्रह्मदेव उसे [[अमरत्व]] का वरदान दे ,परंतु ब्रह्मदेव ने यह कहा यह वरदान [[प्रकृति]] के नियम के विरुद्ध है परंतु वह उसे यह वरदान देते हैं कि जब आपातकाल में कुलदेवी निकुंभला का तांत्रिक यज्ञ करेगा तो उस एक दिव्य रथ प्राप्त होगा और जब तक वह उस रथ पर रहेगा तब तक कोई भी ना से परास्त कर पाएगा और ना ही उसका वध कर पाएगा । परंतु उसे एक बात का ध्यान रखना होगा कि जो उस यज्ञ का बीच में ही विध्वंस कर देगा वही उसकी मृत्यु का कारण भी होगा । दूसरा यह, कि वह भूले से भी किसी ऐसे [[ब्रह्मचारी]] को ना देखें जो 12 वर्ष या उससे अधिक के समय से कठिन ब्रह्मचर्य का और तपश्चार्य का पालन कर रहा हो। यदि उसने ऐसा किया तो वही ब्रह्मचारी उसकी मृत्यु का कारण होगा । और साथ ही साथ ब्रह्मदेव ने यह वरदान भी दिया कि आज से मेघनाद को इंद्रजीत कहा जाएगा जिससे इंद्र की ख्याति सदा सदा के लिए कलंकित हो जाएगी ।
 
== विवाह ==