"मेघनाद": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Killing of Indrajit Painting by Balasaheb Pant Pratinidhi.jpg|thumb|इंद्रजीत का वध]]
अब इंद्रजीत समझ गया लक्ष्मण जी एक साधारण नर नहीं स्वयं भगवान का अवतार है और वह तुरंत ही अपने पिता के पास पहुंचा और उसने सारी कथा का व्याख्यान दिया । परंतु रावण तब भी नहीं माना और उसने फिर से इंद्रजीत का युद्ध भूमि में भेज दिया । इंद्रजीत ने यह निश्चय किया यदि पराजय ही होनी है भगवान के हाथों वीरगति को प्राप्त होना तो सौभाग्य की बात है । और उसने फिर एक बार फिर एक महासंग्राम आरंभ किया । बड़ा भयंकर युद्ध हुआ । भगवान श्रीराम जी ने लक्ष्मण जी को पहले ही समझा दिया था की इंद्रजीत एकल पत्नी व्रत धर्म का कठोर पालन कर रहा है । इस कारण से उन्हें उसका वध करते समय इस बात का ध्यान रखना होगा की इंद्रजीत का शीश कटकर भूमि पर ना गिरे अन्यथा उसके गिरते ही ऐसा विस्फोट होगा की सारी सेना उस विस्फोट में समा कर नष्ट हो जाएगी । इसीलिए अंत में लक्ष्मण जी ने भगवान श्रीश्रीराम रामजी का नाम लेकर एक ऐसा बाण छोड़ा जिससे इंद्रजीत के हाथ और शीश कट गए और उसका शीश कटकर भगवान श्रीश्रीराम रामजी के चरणों में पहुंच गया ।