"खानवा का युद्ध": अवतरणों में अंतर
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→परिचय: तीसरा मत युद्ध का मुख्य कारण बाबर का भारत में रहने का निश्चय था। टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन |
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==परिचय==
इस युद्ध के कारणों के विषय में इतिहासकारों के अनेक मत हैं। पहला, चूंकि पानीपत के युद्ध के पूर्व बाबर एवं राणा सांगा में हुए समझौते के तहत इब्राहिम के खिलापफ सांगा को बाबर के सैन्य अभियान में सहायता करनी थी, जिससे राणासांगा बाद में मुकर गये। दूसरा, सांगा बाबर को दिल्ली का बादशाह नहीं मानते
इस युद्ध में राणा सांगा का साथ खास तौर पर मुस्लिम यदुवंशी राजपूत उस वक़्त के मेवात के शासक खानजादा राजा हसन खान मेवाती और महमूद लोदी दे रहे थे। यही खानजादा राजपूत राजा हसन खान मेवाती एक साल पहले भी इब्राहीम लोधी के साथ देते हुए पानीपत के मैदान में 1526 बाबर को धूल चटा चुके थे,इस जंग को बाबर जीत तो गया लेकिन राजा हसन खान मेवाती की बाजुओं का अंदाज़ा लगा लिया और इस जंग से उसके बेटे नहर खान को कैद करके अपने साथ ले गया ।युद्ध में राणा के संयुक्त मोर्चे की खबर से बाबर के सौनिकों का मनोबल गिरने लगा। बाबर अपने सैनिकों के उत्साह को बढ़ाने के लिए [[शराब]] पीने और बेचने पर प्रतिबन्ध् की घोषणा कर शराब के सभी पात्रों को तुड़वा कर शराब न पीने की कसम ली, उसने मुसलमानों से ‘तमगा कर’ न लेने की घोषणा की। तमगा एक प्रकार व्यापारिक [[कर]] था जिसे राज्य द्वारा लगाया जाता था। इस तरह खानवा के युद्ध में भी पानीपत युद्ध की रणनीति का उपयोग करते हुए बाबर ने सांगा के विरुद्ध सफलता प्राप्त की। युद्ध क्षेत्र में राणा सांगा घायल हुए, पर किसी तरह बाहर निकलने में कछवाह वंश के [[राणा सांगा|पृथ्वीराज कछवाह]] नेे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई तथा पृथ्वीराज कछवाह द्वारा ही राणा सांगा को घायल अवस्था में काल्पी ( मेवाड़ ) नामक स्थान पर पहुँचाने में मदद दी गई |
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