"कॉरोना": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Solar eclipse 1999 4 NR.jpg|thumb|right|पूर्ण [[सूर्य ग्रहण]] के दौरान, सौर [[कोरोना]] को नंगी आंखों से भी देखा जा सकता है।]]
 
[[सूर्य]] के [[वर्णमंडल]] के परे के भाग को '''किरीट''' या '''कोरोना''' (Corona) कहते हैं। पूर्ण [[सूर्य ग्रहण|सूर्यग्रहण]] के समय वह श्वेत वर्ण का होता है और श्वेत डालिया के पुष्प के सदृश सुंदर लगता है। किरीट अत्यंत विस्तृत प्रदेश है और प्रकाश-मंडल के ऊपर उसकी ऊँचाई सूर्य के व्यास की कई गुनी होती है।
 
'''[https://www.informativeankit.in/2020/03/corona-in-india-news-has-india-found.html क्या भारत ने ढूंढ लिया है कोरोना का ईलाज]'''
'''कॉरोना''' [[चाँद]] या [[पानी]] की बूँदों के विवर्तन के द्वारा [[सूर्य]] के चारों ओर बनाई गई एक पस्टेल हेलो को कहते हैं। इसका निर्माण [[प्लाज़्मा (भौतिकी)|प्लाज़्मा]] द्वारा होता है। ऐसे सिरोस्टरटस के रूप में बादलों में बूंदों और बादल परत स्वयं को लगभग पूरी तरह से समान इस घटना के लिए आदेश में हो रहा होगा. रंग प्रदर्शन कभी कभी के लिए आनंददायक प्रतीत होता है।<ref name="ग्लोसरी">[http://www.superglossary.com/hi/Definition/Weather/Corona.html मौसम के बारे में जानें: कोरोना]। सुपर ग्लोसरी</ref> कोरोना का तापमान लाखों डिग्री है। पृथ्वी से कोरोना सिर्फ पूर्ण सूर्यग्रहण के दौरान ही दिखाई देता है।<ref name="नवभारत">[http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/3701598.cms चंद्रयान के बाद अब मिशन सूरज ]। नवभारत टाइम्स। १२ नवम्बर २००८</ref> [[कोरोना]] [[सूर्य]] की सबसे बड़ी पर्त होती है। कोरोना का तीव्र [[तापमान]] अभी तक ज्ञात नहीं हो पाया है। सौर वायु सूर्य से लगभग ४०० से ७०० कि॰मी॰ प्रति [[सेकेंड]] की गति से बाहर निकलती है।
 
'''[https://www.informativeankit.in/2020/03/corona-in-india-news-has-india-found.html ''कॉरोना'']''' [[चाँद]] या [[पानी]] की बूँदों के विवर्तन के द्वारा [[https://www.informativeankit.in/2020/03/corona-in-india-news-has-india-found.html सूर्य]] के चारों ओर बनाई गई एक पस्टेल हेलो को कहते हैं। इसका निर्माण [[प्लाज़्मा (भौतिकी)|प्लाज़्मा]] द्वारा होता है। ऐसे सिरोस्टरटस के रूप में बादलों में बूंदों और बादल परत स्वयं को लगभग पूरी तरह से समान इस घटना के लिए आदेश में हो रहा होगा. रंग प्रदर्शन कभी कभी के लिए आनंददायक प्रतीत होता है।<ref name="ग्लोसरी">[http://www.superglossary.com/hi/Definition/Weather/Corona.html मौसम के बारे में जानें: कोरोना]। सुपर ग्लोसरी</ref> कोरोना का तापमान लाखों डिग्री है। पृथ्वी से कोरोना सिर्फ पूर्ण सूर्यग्रहण के दौरान ही दिखाई देता है।<ref name="नवभारत">[http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/3701598.cms चंद्रयान के बाद अब मिशन सूरज ] । नवभारत टाइम्स। १२ नवम्बर २००८</ref> [[कोरोना]] [[सूर्य]] की सबसे बड़ी पर्त होती है। कोरोना का तीव्र [[तापमान]] अभी तक ज्ञात नहीं हो पाया है। सौर वायु सूर्य से लगभग ४०० से ७०० कि॰मी॰ प्रति [[सेकेंड]] की गति से बाहर निकलती है।
== परिचय ==
 
==[https://www.informativeankit.in/2020/03/corona-in-india-news-has-india-found.html परिचय]==
[[चित्र:Traceimage.jpg|left|thumb|300px|TRACE 171Å coronal loops]]
[[दूरदर्शी]] की सहायता से उसका वास्तविक विस्तार ज्ञात नहीं किया जा सकता, क्योंकि ज्यों-ज्यों सूर्य से दूर जाएँ प्रकाश की तीव्रता शीघ्रता से कम होती जाती है। अत: फोटोग्राफ पट्ट पर एक निश्चित ऊँचाई के पश्चात् किरीट के प्रकाश का चित्रण नहीं हो सकता। [[रेडियो दूरदर्शी]] किरीट के विस्तार का अधिक यथार्थता से निर्धारण करने में उपयुक्त सिद्ध हुआ है। इसके द्वारा निरीक्षण के अनुसार किरीट प्रकाशमंडल के ऊपर सूर्य के दस व्यासों के बराबर ऊँचाई से भी अधिक विस्तृत हो सकता है। किरीट के बाह्य भाग रेडियो तरंग किरीट तक भेजकर परावर्तित तरंग का अध्ययन किया जाए। अत: रेडियों दूरदर्शी की भी उपयोगिता सीमित है। राइल ने किरीट के अध्ययन को एक विचित्र विधि निकाली है। प्रति वर्ष जून मास में टॉरस तारामंडल का एक तारा किरीट के समीप आता है। ज्यों-ज्यों पृथ्वी की वार्षिक गति के कारण सूर्य शनै:-शनै: इस तारे के सम्मुख होकर गमन करता है, तारे से आनेवाली [[रेडियो तरंग]] की तीव्रता का सतत मापन किया जाता है। यह तीव्रता किरीट की दृश्य सीमा तक तारे के पहुँचने से पहले ही कम होने लगती है। यह देखा गया है कि वास्तव में रेडियो तरंग की तीव्रता में सूर्य के अर्धव्यास की 20 गुनी दूरी पर से ही क्षीणता आने लग जाती है। यहीं नहीं, कभी-कभी किरीट पदार्थ लाखों किलोमीटर दूर तक आ जाता हैं और कभी-कभी तो वह पृथ्वी तक पहुँचकर भीषण चुंबकीय विक्षोभ और दीप्तिमान ध्रुवप्रभा उत्पन्न कर देता है।
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किरीट की सीमा अचल नहीं अपितु सूर्यकलंक के साथ परिवर्तित होती रहती है। अधिकतम कलंक पर वह लगभग वृत्तीय होती हैं इसमें से चारों ओर अनियमित रूप से फैला होता है इसके विरुद्ध न्यूनतम कलंक पर वह सूर्य के विषुवद्वृत्तीय समतल में अधिक विस्तृत हो जाती है। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि किरीट की आकृति सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र पर निर्भर है।
 
==[https://www.informativeankit.in/2020/03/corona-in-india-news-has-india-found.html किरीट का वर्णक्रमपट्ट (स्पेक्ट्रम) ]==
किरीटीय वर्णक्रमपट्ट में [[सतत विकिरण]] अंकित होता है, जिसमें कुछ दीप्तिमान रेखाएँ स्थित होती हैं। अनेक वर्षों तक इन रेखाओं का कारण ज्ञात नहीं किया जा सका, क्योंकि उनके [[तरंगदैर्ध्य]] किसी भी ज्ञात तत्व की वर्णक्रम रेखाओं के तरंग-दैर्घ्य के सदृश नहीं थे। अत: ज्यातिषियों ने यह कल्पना की कि सूर्यकिरीट में '[[https://www.informativeankit.in/2020/03/corona-in-india-news-has-india-found.html कोरोनियम]]' नामक एक नवीन तत्व उपस्थित है। परंतु शनै:-शनै: नवीन तत्वों की [[आवर्त सारणी]] (Periodic Table) के रिक्त स्थान पूर्ण किए जाने लगे और यह निश्चयपूर्वक सिद्ध हो गया है कि कोरोनियम कोई नवीन तत्व नहीं है, वरन् कोई ज्ञात तत्व ही है जिसकी रेखाओं के तरंगदैध्यों में किरीट की प्रस्तुत भौतिक अवस्था इतना परिवर्तन कर देती है कि उनका पहचानना सरल नहीं। सन् 1940 में ऐडलेन ने इस प्रश्न का पूर्ण रूप से समाधान किया। सैद्धांतिक गणना के आधार पर उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि किरीट के वर्णक्रम की प्रमुख रेखाओं में से अनेक रेखाएँ लोह, निकल और कैलसियम के अत्यंत आयनित परमाणओं द्वारा उत्पन्न होती हैं। उदाहरणार्थ, लोह के उदासीन परमाणु में 26 इलेक्ट्रन होते हैं और किरीट के वर्णक्रम कर हरित रेखा का वे परमाणु विकिरण करते हैं, जिनके 13 इलेक्ट्रन आयनित हो चुके हैं। किरीट के वर्णक्रम में उपस्थित रेखाओं की तीव्रता में कलंकचक्र के साथ परिवर्तन होता रहता हैं और अधिकतम कलंक पर वे सबसे अधिक तीव्र होती हैं। इसी प्रकार यदि सूर्यबिंब के विविध खंडों द्वारा विकीर्ण रेखाओं की तीव्रता की तुलना की जाए तो निश्चयात्मक रूप से यह कहा सकता है कि समस्त रेखाएँ कलंकप्रदेशों के समीप सबसे अधिक उग्र होती हैं।
 
रॉबर्ट्स ने सूर्यबिंब के पूर्वीय और पश्चिमी कोरों पर किरीट की दीप्ति का दैनिक अध्ययन किया, जिसके आधार पर उन्होंने यह सिद्ध किया कि किरीट की आकृति बहुत कुछ स्थायी है और उसके अक्षीय घूर्णन (Rotation) का आवर्तनकाल 26 दिन है, जो प्रकाशमंडल (Photosphere) के घूर्णन के आवर्तनकाल के लगभग है। वे यह भी सिद्ध कर सके कि किरीट के दीप्तिमान खंड कलंकों के ऊपर केंद्रीभूत होते हैं। कलंक और किरीट के दीप्तिमान प्रदेशों का यह संबंध महत्वपूर्ण है।