"चन्द्रशेखर आज़ाद": अवतरणों में अंतर

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<!-- Commented out: [[चित्र:Dead Body Of Azad 2620.jpg|thumb|right|बिस्मिल के सच्चे उत्तराधिकारी [[चन्द्रशेखर आजाद]] के मृत शरीर को निहारते लोग व अंग्रेज अधिकारी, उनकी साइकिल पेड़ के पीछे खड़ी है।]] -->
 
एच०एस०आर०ए० द्वारा किये गये साण्डर्स-वध और दिल्ली एसेम्बली बम काण्ड में [[फाँसी]] की सजा पाये तीन अभियुक्तों- [[भगत सिंह]], [[राजगुरु]] व [[सुखदेव]] ने अपील करने से साफ मना कर ही दिया था। अन्य सजायाफ्ता अभियुक्तों में से सिर्फ ३ ने ही प्रिवी कौन्सिल में अपील की। ११ फ़रवरी १९३१ को [[लंदन|लन्दन]] की प्रिवी कौन्सिल में अपील की सुनवाई हुई। इन अभियुक्तों की ओर से एडवोकेट प्रिन्ट ने बहस की अनुमति माँगी थी किन्तु उन्हें अनुमति नहीं मिली और बहस सुने बिना ही अपील खारिज कर दी गयी। [[चन्द्रशेखर आज़ाद]] ने मृत्यु दण्ड पाये तीनों प्रमुख क्रान्तिकारियों की सजा कम कराने का काफी प्रयास किया। वे उत्तर प्रदेश की [[हरदोई]] जेल में जाकर [[गणेशशंकर विद्यार्थी]] से मिले। विद्यार्थी से परामर्श कर वे [[इलाहाबाद]] गये और [[जवाहरलाल नेहरू|२० फरवरी को जवाहरलाल नेहरू]] से उनके निवास [[आनन्द भवन]] में भेंट की। आजाद ने पण्डित नेहरू से यह आग्रह किया कि वे [[महात्मा गांधी|गांधी जी]] पर लॉर्ड इरविन से इन तीनों की [[फाँसी]] को उम्र- कैद में बदलवाने के लिये जोर डालें! अल्फ्रेड पार्क में अपने एक मित्र सुखदेव राज से मन्त्रणा कर ही रहे थे तभी सी०आई०डी० का एस०एस०पी० नॉट बाबर जीप से वहाँ आ पहुँचा। उसके पीछे-पीछे भारी संख्या में कर्नलगंज थाने से पुलिस भी आ गयी। दोनों ओर से हुई भयंकर गोलीबारी में आजाद को वीरगति प्राप्त हुई। यह दुखद घटना २७ फ़रवरी १९३१ के दिन घटित हुई और हमेशा के लिये इतिहास में दर्ज हो गयी।
<!-- Commented out: [[चित्र:Pistol of Azad 2703.JPEG|thumb|left|आजाद की ३२ बोर की कोल्ट पिस्तौल जो [[इलाहाबाद]] के आजाद म्यूजियम में रखी हुई है।]] -->
 
पुलिस ने बिना किसी को इसकी सूचना दिये [[चन्द्रशेखर आज़ाद]] का अन्तिम संस्कार कर दिया था। जैसे ही आजाद की बलिदान की खबर जनता को लगी सारा [[इलाहाबाद]] अलफ्रेड पार्क में उमड पडा। जिस वृक्ष के नीचे आजाद शहीद हुए थे लोग उस वृक्ष की पूजा करने लगे। वृक्ष के तने के इर्द-गिर्द झण्डियाँ बाँध दी गयीं। लोग उस स्थान की माटी को कपडों में शीशियों में भरकर ले जाने लगे। समूचे [[शहर]] में आजाद की बलिदान की खबर से जब‍रदस्त तनाव हो गया। शाम होते-होते सरकारी प्रतिष्ठानों प‍र हमले होने लगे। लोग सडकों पर आ गये।
 
आज़ाद के बलिदान की खबर [[जवाहरलाल नेहरू]] की पत्नी [[कमला नेहरू]] को मिली तो उन्होंने तमाम काँग्रेसी नेताओं व अन्य देशभक्तों को इसकी सूचना दी।। बाद में शाम के वक्त लोगों का हुजूम [[पुरुषोत्तम दास टंडन]] के नेतृत्व में इलाहाबाद के रसूलाबाद शमशान घाट पर [[कमला नेहरू]] को साथ लेकर पहुँचा। अगले दिन आजाद की अस्थियाँ चुनकर युवकों का एक जुलूस निकाला गया। इस जुलूस में इतनी ज्यादा भीड थी कि [[इलाहाबाद]] की मुख्य सडकों पर जाम लग गया। ऐसा लग रहा था जैसे [[इलाहाबाद]] की जनता के रूप में सारा [[हिन्दुस्तान]] अपने इस सपूत को अंतिम विदाई देने उमड पड़ा हो। जुलूस के बाद सभा हुई। सभा को शचीन्द्रनाथ सान्याल की पत्नी प्रतिभा सान्याल ने सम्बोधित करते हुए कहा कि जैसे [[बंगाल]] में [[खुदीराम बोस]] की बलिदान के बाद उनकी राख को लोगों ने घर में रखकर सम्मानित किया वैसे ही आज़ाद को भी सम्मान मिलेगा। सभा को [[कमला नेहरू]] तथा [[पुरुषोत्तम दास टंडन]] ने भी सम्बोधित किया। इससे कुछ ही दिन पूर्व ६ फ़रवरी १९३१ को पण्डित [[मोतीलाल नेहरू]] के देहान्त के बाद आज़ाद भेस बदलकर उनकी शवयात्रा में शामिल हुए थे।
 
== व्यक्तिगत जीवन ==