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पूर्वतः राष्ट्रमण्डल के सारे देश एक दूसरे से स्वतंत्र होने के बावजूद, [[ब्रिटिश संप्रभु]] के प्रजाभूमि हुआ करते थे, अर्थात सरे देश स्वतंत्र रूप से नामात्र रूप से ब्रिटिश संप्रभु को अपना शासक मानते थे। परंतु १९५० में [[भारत]] ने स्वतंत्रता के पश्चात स्वयं को [[गणराज्य]] घोषित किया, और ब्रिटिश राजसत्ता की राष्ट्रप्रमुख के रूप में संप्रभुता को भी खत्म कर दिया। परंतु [[भारत]] ने राष्ट्रमण्डल की सदस्यता बरक़रार राखी।
 
इसने राष्ट्रमंडल के संसथान में ऐसे परिवर्तनों के लिए रास्ता बनाया जोकी विकासशील राजनीतिक स्वतंत्रता और राष्ट्रमंडल देशों के गणराज्य होने के अधिकार के साथ-साथ निष्ठा की समानता को दर्शाता था, जोकी 1926 के [[बालफोर घोषणा]] एवं [[वेस्टमिंस्टर की संविधि]] की आधारशिला थी। इस विषय पर प्रमुख चिंता, [[कनाडा के प्रधान मंत्रीप्रधानमंत्री]], लुईस सेंट लॉरेंट द्वारा प्रकट की गयी थी, जिन्होंने ही समझौता के रूप में "''[[राष्ट्रमंडल के प्रमुख]]''" के पद का प्रस्ताव रखा था। [[राजमुकुट|ब्रिटिश संप्रभु]] के लिए "राष्ट्रमंडल के प्रमुख" का पद बनने के वजह से, किसी भी राज्य को राष्ट्रमंडल का हिस्सा होने के लिए नाममात्र के लिए भी [[ब्रिटिश राजमुकुट]] के अधीन होने की आवश्यकता नहीं थी।<ref name="S.A. Smith" />
 
इसके बाद से, राष्ट्रमण्डल देशों में, ब्रिटिश संप्रभु को (चाहे राष्ट्रप्रमुख हों या नहीं) "[[राष्ट्रमण्डल के प्रमुख]]" का पद भी दिया जाता है, जो [[राष्ट्रमण्डल]] के संगठन का नाममात्र प्रमुख का पद है। इस पद का कोई राजनैतिक अर्थ नहीं था।<ref>{{citation| url=http://www.thecommonwealth.org/files/214257/FileName/TheLondonDeclaration1949.pdf| title=London Declaration| year=1949| publisher=Commonwealth Secretariat| accessdate=29 July 2013}}</ref>