"मजरुह सुल्तानपुरी": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:MajroohSultanpuri.jpg|200px|मजरूह सुल्तानपुरी का हस्ताक्षर]]
 
'''मजरुह सुल्तानपुरी''' ({{lang-ur|{{Nastaliq|'''مجرُوح سُلطانپُوری '''}}}}) (1 अक्टूबर 1919 − 24 मई 2000) एक भारती उर्दू शायर थे। हिन्दी फिल्मों के एक प्रसिद्ध गीतकार और [[प्रगतिशील आंदोलन]] के उर्दू के सबसे बड़े शायरों में से एक थे। <ref>{{cite book |title= Indian Literature and Popular Cinema|last= Pauwels|first= Heidi R. M. |authorlink= |year= 2008 |publisher= [[Routledge]] |location= |isbn= 0-415-44741-0 |url= |page= 210 }}</ref><ref>{{cite book |title= The Light |last= Zaheer |first= Sajjad |authorlink= |author2=Azfar, Amina |year= 2006 |publisher= [[Oxfordऑक्सफोर्ड Universityयूनिवर्सिटी Pressप्रेस]] |location= |isbn= 0-19-547155-5 |pages= |url= }}</ref><ref name=DownMelodyLane>[http://www.downmelodylane.com/majrooh.html Majrooh Sultanpuri Biography on downmelodylane.com website] Retrieved 11 May 2018</ref> वह 20वीं सदी के उर्दु साहिती जगत के बेहतरीन शायरों में गिना जाता है। <ref>[http://www.urdupoetry.com/profile/majrooh.html Majrooh Sultanpuri Profile] urdupoetry.com website, Retrieved 11 May 2018</ref>
[[बॉलीवुड]] में गीतकार के रूप में प्रसिद्ध हुवे। उन्होंने अपनी रचनाओं के जरिए देश, समाज और साहित्य को नयी दिशा देने का काम किया। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा [[सुल्तानपुर जिला|सुल्तानपुर जिले]] के गनपत सहाय कालेज में ''मजरुह सुल्तानपुरी ग़ज़ल के आइने में'' शीर्षक से मजरूह सुल्तानपुरी पर राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया। देश के प्रमुख विश्वविद्यालयों के शिक्षाविदों ने इस सेमिनार में हिस्सा लिया और कहा कि वे ऐसी शख्सियत थे जिन्होंने उर्दू को एक नयी ऊंचाई दी है। लखनऊ विश्वविद्यालय की उर्दू विभागाध्यक्ष डॉ॰सीमा रिज़वी की अध्यक्षता व गनपत सहाय कालेज की उर्दू विभागाध्यक्ष डॉ॰जेबा महमूद के संयोजन में राष्ट्रीय सेमिनार को सम्बोधित करते हुए इलाहाबाद विश्वविद्यालय के उर्दू विभागाध्यक्ष प्रो॰अली अहमद फातिमी ने कहा मजरूह, [[सुल्तानपुर]] में पैदा हुए और उनके शायरी में यहां की झलक साफ मिलती है। वे इस देश के ऐसे तरक्की पसंद शायर थे जिनकी वजह से उर्दू को नया मुकाम हासिल हुआ। उनकी मशहूर पंक्तियों में 'मै अकेला ही चला था, जानिबे मंजिल मगर लोग पास आते गये और कारवां बनता गया' का जिक्र भी वक्ताओं ने किया। लखनऊ विश्वविद्यालय के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो॰मलिक जादा मंजूर अहमद ने कहा कि यूजीसी ने मजरूह पर राष्ट्रीय सेमिनार उनकी जन्मस्थली [[सुल्तानपुर]] में आयोजित करके एक नयी दिशा दी है।