"अग्निवंशी": अवतरणों में अंतर

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सच्चाई
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{{आधार}}चौहान,परमार,सोलंकी
 
पवित्र अग्निकुल से उत्पन्न चार प्रकार क्षत्रिय हुए ।
पवित्र अग्निकुल से उत्पन्न चार प्रकार क्षत्रिय हुए । परमार ,प्रतिहार ,और सोलंकी यानी सबसे अन्त में विष्णु भगवान ने दुर्वा दल की बनी हुई पुतली को अग्निकुण्ड में मन उच्चारण कर डाल दिया। उसके अवयव स्वरूप चार हाथ युक्त अस्त्रधारी एक वीर पुरुष प्रगट हुआ । चार हाय होने से उसका नाम ‘‘चतुर्रज” चौहान हुआ । क्षत्रियों के नेतृत्व दल की अगुयायि करने के कारण अग्रिकुलीन (अग्निकुलीन) कहलाये ।समस्त देवताओं ने उसे आशीर्वाद देकर ‘मेहकावती’’ नगरी का राज्य दिया। जो इस समय ‘गढ़ मण्डला’ नाम से विख्यात है । द्वापर में यह मेहकावती नाम से विख्यात थी।
 
चहुवान-वंश का प्रारम्भ-पृथ्वी पर पापों का भार बढ़जाने से तथा राक्षसों के बलवान हो जाने से देवता भयभीत होकर भगवान की प्रार्थना करने हेतु आबू पर्वत शिखर पर एकत्रित हुए। आबू पर्वत पर भृगु-ऋषि, ब्रह्मा तथा समस्त ऋषियों ने मिलकर विधि-विधान से अग्निकुण्ड में आहती डाली। जिससे चार राजा प्रकट हुये। चौथे राजा की चारों भुजाओं में शस्त्र थे। इस प्रकार परशुराम द्वारा 21 बार क्षत्रीय विहीन पृथ्वी करने के बाद ऋषि-मुनियों की प्रार्थना से श्री विष्णु भगवान ही स्व - अंश कलाओं से देवताओं का कार्य करने, राक्षसों को नष्ट करने, धर्म विस्तार करने तथा पाप का नाश करने हेतु अग्नि के समान तेज को धारण कर चतुर्भुज-आयुधों सहित चौहान रूप में प्रकट हुए। सूर्य एवं चन्द्रवंश-उसी समय सूभीनर नामक एक सोमवंशी (चन्द्रवंशी) राजा थे। उनके सांगूया नामक पुत्री थी। संज्ञा का विवाह उन चतुर्भुज के साथ हुआ। चतुर्भुज (सूर्यवंशी) एवं संज्ञा (चन्द्रवंशी) के चाह ऋषि का जन्म हुआ। चाह ऋषि वत्स ऋषि से दीक्षा ली। इसीलिए चौहानों का गोत्र वत्स हुआ। इस प्रकार चौहानों की पहचान अग्निवंशी (सूर्यवंशी) और ,(चंद्रवंशी) ,, कात्यायनी शाखा, त्रिपुरा पुर, गोभिल सूत्र, क्षत्रीय वर्ण, सात्विक धर्म, आशापुरा देवी, आबू पर्वत एवं शिव-प्रिय विल्व पत्र आदि प्रसिद्ध हुए | इसके बाद सतयुग में राजर्षि से लेकर नाभि ऋषि तक अठारह पीढियों ने आबू पर्वत-क्षेत्र पर राज्य किया। तत्पश्चात् चिमन ऋषि से काशी रिषि तक 61 पीढियों ने जग नगर में शासन किया।
‪‎चौहान की मूल पहचान‬ – प्राचीन चन्द्रवंशी राजा यदु के पुत्र वृजिनिवान् का अवंती में ( अब मध्य प्रदेश) राज्य था जिसकी राजधानी महिष्मति था ।
 
इसीलिए चौहानों के अभिलेखों में सूर्य और चन्द्र दोनों वंश का उल्लेख है साथ  गोत्र वत्सगौत्रीय लिखा जाता है
 
‪‎चौहान की मूल पहचान‬ – प्राचीन चन्द्रवंशी राजारूप यदुमें के पुत्रहै वृजिनिवान् का अवंती में ( अब मध्य प्रदेश) राज्य था जिसकी राजधानी महिष्मति था ।
 
इस वंश में हैहय , कीर्तिवीर्य अर्जुन वीतिहोत्र आदि हुए थे ।