"युधिष्ठिर मीमांसक": अवतरणों में अंतर
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अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) |
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16-17 नवम्बर 1964 स्थान अमृतसर में गोवर्धनपीठाधीश्वर श्री शंकराचार्य वा श्री स्वामी करपात्री जी के साथ पण्डित युधिष्ठिर जी मीमांसक जी का शास्त्रार्थ हुआ। यह ऐतिहासिक शास्त्रार्थ संस्कृत व हिन्दी भाषा में लगभग नौ घन्टे चला था।
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पं. युधिष्ठिर मीमांसक ने प्राचीन शास्त्र ग्रन्थों के सम्पादन के अतिरिक्त [[ऋषि दयानन्द]] कृत ग्रन्थों को आलोचनात्मक ढंग से सम्पादित करने का कार्य किया है। इसके अतिरिक्त उनके मौलिक ग्रन्थों की संख्या भी पर्याप्त है।
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* '''संस्कृत पठन पाठन की अनुभूत सरलतम विधि, भाग 2''' - इस ग्रन्थ का प्रथम भाग पं॰ ब्रह्मदत्त जिज्ञासु ने लिखा था। द्वितीय भाग मीमांसकजी ने लिखा (2027 वि.)।
* '''जैमिनीय मीमांसाभाष्यम्''' - मीमांसा दर्शन पर सुप्रसिद्ध [[शबर|शाबर भाष्य]] का हिन्दी अनुवाद तथा उस पर ‘आर्षमतविमर्शिनी’ नामक हिन्दी टीका लिखकर मीमांसकजी ने एक बड़े कार्य को पूरा किया है। अब तक यह भाष्य पांच खण्डों खण्डों में प्रकाशित हुआ है तथा प्रथम खण्ड में प्रथम अध्याय, द्वितीय में तृतीय अध्याय के प्रथम पाद पर्यन्त, तृतीय में तृतीय अध्याय की समाप्ति तक, चतुर्थ में पंचम अध्याय तक तथा पंचम खण्ड में षष्ठ अध्याय तक की व्याख्या लिखी गई हैं। इन खण्डों का प्रकाशन क्रमशः 2034, 2035, 2037, 2041 तथा 2043 वि. में हुआ।
==सन्दर्भ==
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