"हिन्दू दर्शन": अवतरणों में अंतर

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[[हिन्दू धर्म]] में [[ज्ञान योग|दर्शन]] अत्यन्त प्राचीन परम्परा रही है। वैदिक दर्शनों में षड्दर्शन (छः दर्शन) अधिक प्रसिद्ध और प्राचीन हैं।
 
वैदिक दर्शनों में षड्दर्शन अधिक प्रसिद्ध हैं। ये '''[[सांख्य दर्शन|सांख्य]]''', '''[[योग दर्शन|योग]]''', '''[[न्याय दर्शन|न्याय]]''', '''[[वैशेषिक दर्शन|वैशेषिक]]''', '''[[मीमांसा दर्शन|मीमांसा]]''' और '''[[वेदान्त दर्शन|वेदान्त]]''' के नाम से विदित है। इनके प्रणेता [[कपिल]], [[पतंजलि]], [[गौतम]], [[कणाद]], [[जैमिनि]] और [[बादरायण]] थे। ईसा के जन्म के आसपास इन दर्शनों का उदय माना जाता है। इनके आरंभिक संकेत उपनिषदों में भी मिलते हैं। प्रत्येक दर्शन का आधारग्रंथ एक दर्शनसूत्र है। "[[सूत्र]]" भारतीय दर्शन की एक अद्भुत शैली है। गिने-चुने शब्दों में सिद्धांत के सार का संकेत सूत्रों में रहता है। संक्षिप्त होने के कारण सूत्रों पर विस्तृत [[भाष्य]] और अनेक टीकाओं की रचना हुई। भारतीय दर्शन की यह शैली स्वतंत्र दर्शनग्रंथों की पश्चिमी शैली से भिन्न है। गुरु-शिष्य-परंपरा के अनुकूल दर्शन की शिक्षा और रचना इसका आधार है। यह परंपरा षड्दर्शनों के बाद नवीन दर्शनों के उदय में बाधक रही। व्याख्याओं के प्रसंग में कुछ नवीनता और मतभेद के कारण मुख्य दर्शनों में उपभेद अवश्य पैदा हो गए।
 
[[प्रमाण]]विचार, [[सृष्टि]]मीमांसा और [[मोक्ष]]साधना षड्दर्शनों के सामान्य विषय हैं। ये छ: दर्शन किसी न किसी रूप में [[आत्मा]] को मानते हैं। आत्मा की प्राप्ति ही मोक्ष है। पुनर्जन्म, आचार, योग आदि को भी ये मानते हैं। न्याय, योग आदि कुछ दर्शन ईश्वर में विश्वास करते हैं। सांख्य और मीमांसा दर्शन निरीश्वरवादी हैं। प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान और शब्द ये चार प्रमाण सामान्यत: सभी दर्शनों को मान्य हैं। मीमांसा मत में अर्थापत्ति और अनुपलब्धि ये दो प्रमाण और माने जाते हैं।