"ध्यान": अवतरणों में अंतर

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ध्यान के संबंध में बहुत सी प्रायोगिक परीक्षाएँ भी हुई हैं- जेवंस तथा हैमिल्टन द्वारा ध्येय और ध्येता के बीच की दूरी (रेंज ऑव एटेंशन) का माप, विटेनबोर्न द्वारा फैक्टर विश्लेषण की आँकड़ा शास्त्रीय पद्धति पर विशेष परिस्थित क्रम में अंकों के समानुवर्तन के साथ ध्यान प्रक्रिया की सहमति; मौर्गन तथा फोर्ड द्वारा आकस्मिक हरकतों, दोलनों अथवा चेष्टाओं से ध्यान का संबंधनिरूपण और इसी प्रकार वस्तुओं के नए एवं पुराने; तीव्र और मंद आदि गुणों में प्रथम से ही ध्यान का सांप्रतिक संबंध; ध्यान में मांसपेशियों के सापेक्ष आकुंचन की मात्रा आदि। ध्यानराहित्य (इनैटेंशन) तथा अन्यमनस्कता ध्यान के अभाव नहीं हैं बल्कि ये ध्यान के अपेक्षित वस्तु पर न लगाकर उसके कहीं और लगे होने के सूचक हैं। हैमिल्टन ने अमूर्त विचार या चिंतन (एब्सट्रैक्शन) को ध्यान का ही पूरक किंतु एक प्रकार का निषेधात्मक पक्ष माना है।
 
== सन्दर्भआज टॉपिक बहुत ही विशेष है मैं आज आपको बताना चाह रहा हूं कि आजकल बहुत ज्यादा एक वायरस की चर्चा हो रही है जिसे कोरोनावायरस कहते हैं जिंदगी पूरा वर्ल्ड इससे ग्रसित है और चिंताजनक है कई डॉक्टर और रिसर्च ऑर्गेनाइजेशंस इसकी काट ढूंढने में लगे हैं और आसान शब्दों में कहें तो वैक्सीन बना रहे हैं आजकल टीवी में इंडिया न्यूज़ इंडिया टीवी बाबा रामदेव आदि चीजें दिखाई जाती हैं कि आप योगा करो और भी चीजें योगासन में मेडिटेशन वगैरा जिससे कि इम्यूनिटी सिस्टम अपना अच्छा हो और आने वाली बीमारियों से हम लड़ सकें अब मेडिटेशन योगा योगासन की चर्चा हुई गई है मुझसे मैं कहना चाहता हूं कि आजकल बाबा रामदेव महाराज जी स्वामी जी बहुत ही अच्छा विवरण देते हैं कि हमारी इम्यूनिटी सिस्टम कैसे अच्छी बने ताकि बीमारियों से लड़ने की शक्ति मिले तो हम सभी देखते हैं इंडिया टीवी में बाबा रामदेव जी का भाषण अगर मैं बात करता हूं मेडिटेशन की मेडिटेशन में बहुत से गुरु आचार्य बताते हैं कि यह बहुत ही अच्छा होता है और पूर्ण आनंद की प्राप्ति होती है कि हमें कोई अधूरी चीज मिल गई हो आजकल हम कोई सक्सेस पाते हैं तो हमें कुछ देर के लिए आनंद की अनुभूति होती है फिर उसके बाद हम अपने रोजमर्रा के कामकाज और नई सक्सेस पाने के लिए काम करते रहते हैं जिससे कि हमें और सक्सेस मिले और हमें और आनंद की पूर्ति हो लेकिन क्षणिक आनंद होता है बहुत से गुरुजी आप लोगों से इस चर्चा में बात कर चुके होंगे लेकिन मैं भी बताना चाहता हूं की आजकल मेडिटेशन पूरे विश्व में छाया है देखा जाए तो हर लोग मिरेकल मैजिक और तुरंत काम हो जाए ऐसा कुछ चाहते हैं और वह यूट्यूब क्रोम विकिपीडिया का ध्यान करते हैं और उस चीज को करने में बैठ जाते हैं यह अच्छी बात है कि आप यूट्यूब विकिपीडिया फेसबुक में अध्ययन करते हैं इन चीजों का बहुत अच्छी बात है लेकिन अगर कोई भी चीज हम जल्दी पाना चाहते हैं तो वह चीज हमसे जल्दी ही चली जाती है अगर आप साइंटिफिक रूप से देखना चाहे तो अगर अगर कोई परमाणु स्टेबल है अपने रूम टेंपरेचर में तो वह क्यों स्टेबल है क्योंकि रूम टेंपरेचर के पास इतनी एनर्जी नहीं है की वह उसके आखरी कक्षक के इलेक्ट्रॉन को एक्साइड कर सके अगर यह होता तो वह परमाणु स्टेबल क्यों होता इसलिए अगर हमें किसी परमाणु को स्टेबल स्टेट में पहुंचाना है तो हमें उसके रूम टेंपरेचर के हिसाब से हमें ज्यादा एनर्जी देनी पड़ेगी जिससे की वह एक्साइट हो जाए और वह परमाणु स्टेबल हो जाए तो यह स्टेज धीरे धीरे होती है इसलिए मैं अपने टॉपिक की ओर बढ़ता हूं मेरा यह टॉपिक था कि आज की जनरेशन यूट्यूब में पांच 5 मिनट के वीडियो देखकर मेडिटेशन जैसी कठिन चीज करने लगते हैं मैं यह किसी को नहीं कह रहा हूं की यह करना गलत है मैं अपने साथ हुए हालात का विवरण ध्यान में रखते हुए अपनी बात रख रहा हूं हां ऐसे बहुत अपवाद प्रकृति में उपलब्ध है जो बिना किसी सहायता से वह चीज प्राप्त कर लेते हैं उनके पास वह शक्ति पहले से उपस्थित होती है जो आप मेडिटेशन करके प्राप्त करते हो इसलिए वह इस काम को बड़ी आसानी से कर ले जाते हैं आपको यह भी पता होगा की हमारे शरीर में 7 चक्र पाए जाते हैं यह आप सोच रहे हैं की जो चित्र आपने किताबों में देखा है वह नहीं होते हैं यह तो एक विचार है और इसे हम इमैजिनेशन भी कह सकते हैं जो भी इंसान इस भूमि पर जन्म लेता है उसके कोई ना कोई चक्र के कुछ अंश खुले होते हैं मैं यहां पर चक्र का विवरण इसलिए कर रहा हूं कि आपको समझने में आसानी हो क्योंकि चक्र हमें समझने के लिए होता है असलियत में यह मिथ्या है तो जिसका चक्र का कुछ या अधिकांश भाग खुला रहता है वो अपने विशेष चीज में पारंगत होता है कोई अपने अच्छे कामों से अपने चक्र के अधिकांश भाग खोल लेता है और कोई अपने विशेष रूचि वाले विषयों में कठिन परिश्रम करके उस विषय के विशेष चक्र का अधिकांश भाग खोल लेता है और कुछ लोग अपनी प्रिय गुरु और भगवान की भक्ति करके अपने अधिकांश चक्र खोल लेते हैं और दूसरा मार्ग कठिन मार्ग होता है जिसमें भक्ति के साथ-साथ योग साधना और ध्यान की बहुत बड़ी भूमिका होती है इसमें आदमी यूट्यूब फेसबुक मैं पांच 5 मिनट के वीडियो देखकर अपने जल्दी से सपने साकार करने के लिए ध्यान करने में बैठ जाता है लेकिन मेरे आपबीती के अनुसार यह करना अपने अपने शरीर के अनुकूलता के हिसाब से है कोई कि ज्यादा इम्यूनिटी सिस्टम अच्छा है किसी का कम तो बहुत से लोग हैं जो अध्ययन करके भी कर सकते हैं कई वेबसाइट में आपने देखा होगा कि उसमें लिखा रहता है कि बिना गुरु के ध्यान नहीं करना चाहिए या किताबों का अध्ययन करके कर उसका प्रयोग नहीं करना चाहिए यह सही बात है लेकिन यह सबके लिए लागू नहीं होती है मैं अपनी बात बताता हूं मैं जब कक्षा 9 में पढ़ता था तो हमारे स्कूल में ध्यान की प्रक्रिया करवाई जाती थी तो धीरे धीरे मेरे आइब्रो के बीच में एक बिंदु बनने लगा और तीन चार साल उस पर मैंने कंसंट्रेट किया और उसी को अपनी दुनिया बना ली मुझे बहुत सारे जो बहुत महान महान आचार्यों ने लिखा था वह अनुभव हुए और मुझे अपूर्व इसमें अपूर्व नहीं परमानंद जैसा आनंद मिलता था मेरी मेमोरी भी बहुत शार्प होने लगी थी लेकिन कई साल करने के बाद मेरे आइब्रो के बीच में जो बिंदु था वह बहुत ज्यादा हावी हो गया अब मैं जो भी काम करता वह मुझे वहीं पर खींच ले जाता तो मुझे हर टाइम ध्यान लगा रहता और पढ़ाई भी साथ साथ होती रहती ऐसा दोनों होना असंभव है लेकिन मेरे साथ यह हुआ था मैं आपको एक्सपीरियंस के बारे में नहीं बता रहा हूं क्योंकि एक्सपीरियंस आप लोगों ने बॉस आई किताबों में पढ़े होंगे और जिसको यह चीज होती है वह उसके लिए शब्द नहीं होते हैं कि वह किस चीज से उन परमानंद को डिफाइन कर सकूं इसलिए आप को लग रहा होगा कि मैं ऐसे ही कोई स्टोरी बनाकर सुना रहा हूं लेकिन यह मेरी आप बीती है जो मैं आपको इसलिए बता रहा हूं की किसी के साथ अगर भी कोई घटनाएं घटित होती है तो उसको मदद मिल सके हां तो हम आगे बढ़ते हैं मेरा ध्यान कंटिन्यू चलता रहा और 12 के पेपर देने के बाद 1 साल और ध्यान करता रहा मेरे 12 के पेपर में इसकी वजह से मार्क्स भी काम आ गए और पिछले 2 सालों से मेरे पापा और मैं कई जगह स्वामी गुरुजी और अन्य जगह मैंने जाकर महाराज जी से इसके बारे में पूछा तो उन्होंने सब मुझे बना दिया और सब कुछ एक्सपीरियंस ली मुझे बताया और जो जो वह बता रहे थे मेरे साथ घटित हो चुका था यहां तक कि मेरी सांस मेरे कंट्रोल में हो जाती है और कभी-कभी जब मैं सांस रोक लेता था तो मुझे यह भय लगा रहता था की मेरे प्राण तो नहीं निकल जाएंगे तो प्राण वापस लाने का तरीका क्या होगा यही प्रश्न मेरे मन में खटखटा ता रहा और बहुत सारे गुरु योगियों के पास में जाकर मैंने बहुत कुछ सीखा लेकिन जो मुझे चाहिए था वह मुझे नहीं मिल पाया और मेरी समस्या बढ़ती गई इसके बाद क्या हुआ की मेरे पापा ने डॉक्टर की सलाह लेने को कहा तो मेरे पापा के मित्र एक डॉक्टर है उन्होंने लखनऊ में केजीएमसी यूनिवर्सिटी में साइकाइट्रिक डिपार्टमेंट में डॉक्टर से काउंसलिंग करवा कर डॉक्टर से मिले तो पता चला मुझे ओसीडी नाम की डिसीज थी जो मुझे बचपन से थी जो मुझे मैं जिस काम में लग जाऊं उसी में लग जाता था आगे मैं बाद में कंटिन्यू करूंगा अगर आपको इससे किसी भी प्रकार की मदद मिली हो तो मैं आगे की बात बताऊंगा नमस्कार ==
== सन्दर्भ ==
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