"रस (काव्य शास्त्र)": अवतरणों में अंतर

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==भयानक रस==
भयानक कारणभेद से व्याजजन्य या भ्रमजनित, अपराधजन्य या काल्पनिक तथा वित्रासितक या वास्तविक नाम से तीन प्रकार का और स्वनिष्ठ परनिष्ठ भेद से दो प्रकार का माना जाता है।
==भक्ति रस==
भरत ने नाट्यशास्त्र में मूलतः नौ रसों को ही मान्यता दी। भक्ति को भाव माना जाय या रस इस पर काव्यशास्त्रियों ने किंचित् विवेचन किया। [[मम्मट]] ने सर्वप्रथम "काव्य-प्रकाश" में भगवद्-विषयक रति को स्वतंत्र भाव की संज्ञा दी। इसके बाद भगवद्-विषयक रति को भक्ति रस के रूप में स्वीकृत किया गया। आगे चलकर [[पंडितराज जगन्नाथ]] ने "रस गंगाधर" में इस मान्यता पर प्रश्नचिह्न लगाया।
 
== रसों का अन्तर्भाव ==