"साधारण नमक": अवतरणों में अंतर

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मानवी स्वास्थ्य पर परिणाम
अल्प मात्रा में नमक प्राणिजीवन के लिए आवश्यक होता है परंतु अति मात्रा में नमक हानिकारक होता है। यह क्षार शरीर के सर्व भागाें में होता है। शरिर के चयापचया के लिए व वितरण के लिए यह आवश्यक घटक है। जठरातीलजठर का रस और पित्त बनाने में मदद करता है। इस क्षार के कारण शरीर का अम्ल संतुलित रहता है। इसके अलावा मज्जारज्जू और मासपेशीं के कार्य व्यवस्थित रुप से चलते हैं। शरीरातीलशरीर यामें क्षाराचेइस क्षार का प्रमाण कमीकम झाल्यासहुआ अशक्तपणाकमजोरी येतोआती है, त्वचा ढिली पडतेपडती है, पोटऱ्यांमध्येपिंडलियों गोळेमें येतात.खिचाव आता है। वजन कमीकम होतेहोना, डोळेअाँखे खोलखींची जातात,हुई व गहरे खड्डे में स्थित हुई सी लगती है। मानसिक दुर्बलता जाणवतेमहसूस होती है, हदयाच्याहदय कार्यातके कार्य में फरक पडतो.पडता याउलटहै। इसके उलट अधिक खाल्यामुळेखाने से पित्त वाढतेबढता है, रक्ताच्यारक्त गतीमध्येकी वाढगती होतेमें बढौतरी होती है। (रक्तदाब वाढतोबढता है), तहानप्यास लागतेलगती है, मूर्च्छा येतेआना, हाडेहड्डी कमकुवतकमजोर होतातहोती है, चेहऱ्यावरचेहरेपर सुरकुत्याझुर्रियाँ पडतातपडना, केसबाल पांढरेसफेद होतात,होते मूत्रपिंडाचेहैं। मूत्रपिंड का काम वाढतेबढता हातहै।हाथ, पायपैर, चेहरा और पोटपेट यांवरपर सूजसूजन येते.आती आहारातहै। मिठाचेभोजन प्रमाणमें नमक की मात्रा स्वाद के लिए ही मर्यादित चवीपुरतेचहोनी असावे.चाहिए।
 
== सन्दर्भ ==