"पंचायतीराज में महिला सहभागिता": अवतरणों में अंतर

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''' पंचायती राज में महिला भागीदारी ''' भारतीय शासन व्यवस्था में महिला प्रतिनिधित्व संबंधी चिंतन का महत्वपूर्ण विचारबिंदु है।
== इतिहास ==
पंचायतीराजभारत मंत्रालय,में 27महिलाओं मई,का 2004स्थान सेविषय अस्तित्वपर गठित समिति ने 1974 में आयाअनुशंसा है।की इसेथी पंचायतीराजकि केऐसी माध्यमपंचायतें सेबनाई ग्रामीणजाऐं गरीबीजिनमें उपषमनकेवल औरमहिलाएं समृद्धिही केहों। लिएनेशनल नीतियांपर्सपेक्टिव तथाप्लान कार्यक्रमफॉर बनाने काविमेन, कार्य1988 साैंपाने गयाग्राम है।पंचायत इससे मंत्रालयलेकर काजिला गठनपरिषद मूलतःतक 73वें30 संविधानप्रतिशत संषोधनसीटों अधिनियम,के 1992आरक्षण (सीएए)की द्वाराअनुशंसा जोडेकी गएथी। संविधानमहिलाओं केको खंडप्रदत्त 9आरक्षण केको कार्यान्वयनपंचायतीराज संस्थानों में राव समिति द्वारा प्रस्तुत संतुतियों की निगरानीसबसे करनेमहत्पूर्ण विशेषता यह थी कि इसमें पहली बार महिलाओं के लिए कियाआरक्षण की व्यवस्था गयारखी है।गई। पंचायतों की संख्या की स्थिति 1 अप्रैल, 2005 के अनुसार इस प्रकार है ग्राम पंचायत 2,34,676 मध्यवर्ती पंचायत 6,097 जिला पंचायत 537 कुल पंचायत संस्थाएं 2,41,310। इन संस्थाओं में महिलाओं की संख्या और उनका प्रतिषत इस प्रकार है- जिला पंचायत में 41 प्रतिषत, मध्यवर्ती पंचायत में 43 प्रतिषत और ग्राम पंचायत में 40 प्रतिषत। पंचायतों में माध्यम से महिलाओं के सषक्तिकरण का कार्य किया जा रहा है। पंचायतों में महिलाओं की भागीदारी उनके लिए आरक्षित 33 प्रतिषत की न्यूनतम सीमा से अधिक है। देष में पंचायतों के 22 लाख निर्वाचित प्रतिनिधियों में से करीब 9 लाख महिलाएं हैं। तीन स्तरों वाली पंचायत प्रणाली में 59,000 से अधिक महिला अध्यक्ष हैं।
 
एवं कार्यवाहियों से संबंधित प्कीरमुख धारणा है।
भारत में महिलाओं का स्थान विषय पर गठित समिति ने 1974 में अनुशंसा की थी कि ऐसी पंचायतें बनाई जाऐं जिनमें केवल महिलाएं ही हों। नेशनल पर्सपेक्टिव प्लान फॉर द विमेन, 1988 ने ग्राम पंचायत से लेकर जिला परिषद तक 30 प्रतिशत सीटों के आरक्षण की अनुशंसा की थी। महिलाओं को प्रदत्त आरक्षण को पंचायतीराज संस्थानों में राव समिति द्वारा प्रस्तुत संतुतियों की सबसे महत्पूर्ण विशेषता यह थी कि इसमें पहली बार महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था रखी गई। तत्पश्चात पंचायती राज अधिनियम से महिलाओं में एक नई स्फूर्ति आई तथा संजीवनी के रुप में इनकी उपेक्षित स्थिति में सुधारात्मक कदम उठाने एवं विकास की धारा में स्वयं को जोड़ने का सुनहरा अवसर मिला।
 
भारत में स्थानीय स्वशासन की दिशा में जो नई पहल हुई वह मुख्यतः राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की ग्राम स्वराज व विकेन्द्रीकरण की सोच का परिणाम थी। उनकी स्वराज्य की संकल्पना को बाद में भारतीय संविधान निर्माताओं के द्वारा मूर्तरुप प्रदान किया गया। स्वतन्त्रता के पश्चात भारत के संविधान में नीति निर्देशक सिद्धान्त के अन्तर्गत अनुच्छेद 40 में इन लोकतान्त्रिक संस्थानों की जिम्मेदारी राज्य सरकारों को दी गई। विभिन्न अधिनियमों में शनैः शनैः संशोधन किए गए एवं स्थानीय स्वशासन के संगठन कार्यो एवं शक्तियों में सुधार व वृद्धि की गई।
 
पंचायतीराज मंत्रालय, 27 मई, 2004 से अस्तित्व में आया है। इसे पंचायतीराज के माध्यम से ग्रामीण गरीबी उपषमन और समृद्धि के लिए नीतियां तथा कार्यक्रम बनाने का कार्य साैंपा गया है। इस मंत्रालय का गठन मूलतः 73वें संविधान संषोधन अधिनियम, 1992 (सीएए) द्वारा जोडे गए संविधान के खंड 9 के कार्यान्वयन की निगरानी करने के लिए किया गया है। पंचायतों की संख्या की स्थिति 1 अप्रैल, 2005 के अनुसार इस प्रकार है ग्राम पंचायत 2,34,676 मध्यवर्ती पंचायत 6,097 जिला पंचायत 537 कुल पंचायत संस्थाएं 2,41,310। इन संस्थाओं में महिलाओं की संख्या और उनका प्रतिषत इस प्रकार है- जिला पंचायत में 41 प्रतिषत, मध्यवर्ती पंचायत में 43 प्रतिषत और ग्राम पंचायत में 40 प्रतिषत। पंचायतों में माध्यम से महिलाओं के सषक्तिकरण का कार्य किया जा रहा है। पंचायतों में महिलाओं की भागीदारी उनके लिए आरक्षित 33 प्रतिषत की न्यूनतम सीमा से अधिक है। देष में पंचायतों के 22 लाख निर्वाचित प्रतिनिधियों में से करीब 9 लाख महिलाएं हैं। तीन स्तरों वाली पंचायत प्रणाली में 59,000 से अधिक महिला अध्यक्ष हैं।
 
भारतीय संविधान के 73 वें संविधान संशोधन अधिनियम, अप्रेल 1993 ने पंचायत के विभिन्न स्तरों पर पंचायत सदस्य और उनके प्रमुख दोनों पर महिलाओं के लिए एक-तिहाई स्थानों के आरक्षण का प्रावधान किया । जिसमें देश के सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन में सन्तुलन आये। इस संशोधन के माध्यम से संविधान में एक नया खण्ड (9) और उसके अन्तर्गत 16 अनुच्छेद जोडे गए। अनुच्छेद 243 (5) (3) के अन्तर्गत महिलाओं की सदस्यता और अनुच्छेद 243 (द) (4) में उनके लिए पदों पर आरक्षण का प्रावधान है। अनुच्छेद 243 (घ) में यह उपबन्ध है कि सभी स्तर की पंचायत में रहने वाली अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण होगा। प्रत्येक पंचायत में प्रत्यक्ष निर्वाचन से भरे जाने वाले कुल स्थानों में से एक-तिहाई स्थान महिलाओं के लिए आरक्षित होंगे। राज्य विधि द्वारा ग्राम और अन्य स्तरों पर पंचायतों के अध्यक्ष के पदों के लिए आरक्षण कर सकेगा तथा राज्य किसी भी स्तर की पंचायत में नागरिकों के पिछड़े वर्गों के पक्ष में स्थानों या पदों का आरक्षण कर सकेगा।