"पंचायतीराज में महिला सहभागिता": अवतरणों में अंतर

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''' पंचायती राज में महिला भागीदारी ''' भारतीय शासन व्यवस्था में महिला प्रतिनिधित्व संबंधी चिंतन का महत्वपूर्ण विचारबिंदु है।
== इतिहास ==
भारत में महिलाओं का स्थान विषय पर गठित समिति ने 1974 में अनुशंसा की थी कि ऐसी पंचायतें बनाई जाऐं जिनमें केवल महिलाएं ही हों। नेशनल पर्सपेक्टिव प्लान फॉर द विमेन, 1988 ने ग्राम पंचायत से लेकर जिला परिषद तक 30 प्रतिशत सीटों के आरक्षण की अनुशंसा की थी। महिलाओं को प्रदत्त आरक्षण को पंचायतीराज संस्थानों में राव समिति द्वारा प्रस्तुत संतुतियों की सबसे महत्पूर्ण विशेषता यह थी कि इसमें पहली बार महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था रखी गई। पंचायतों की संख्या की स्थिति 1 अप्रैल, 2005 के अनुसार इस प्रकार है ग्राम पंचायत 2,34,676 मध्यवर्ती पंचायत 6,097 जिला पंचायत 537 कुल पंचायत संस्थाएं 2,41,310। इन संस्थाओं में महिलाओं की संख्या और उनका प्रतिषत इस प्रकार है- जिला पंचायत में 41 प्रतिषत, मध्यवर्ती पंचायत में 43 प्रतिषत और ग्राम पंचायत में 40 प्रतिषत। पंचायतों में माध्यम से महिलाओं के सषक्तिकरण का कार्य किया जा रहा है। पंचायतों में महिलाओं की भागीदारी उनके लिए आरक्षित 33 प्रतिषत की न्यूनतम सीमा से अधिक है। देष में पंचायतों के 22 लाख निर्वाचित प्रतिनिधियों में से करीब 9 लाख महिलाएं हैं। तीन स्तरों वाली पंचायत प्रणाली में 59,000 से अधिक महिला अध्यक्ष हैं।
 
पंचायतों की संख्या की स्थिति 1 अप्रैल, 2005 के अनुसार इस प्रकार है ग्राम पंचायत 2,34,676 मध्यवर्ती पंचायत 6,097 जिला पंचायत 537 कुल पंचायत संस्थाएं 2,41,310। इन संस्थाओं में महिलाओं की संख्या और उनका प्रतिषत इस प्रकार है- जिला पंचायत में 41 प्रतिषत, मध्यवर्ती पंचायत में 43 प्रतिषत और ग्राम पंचायत में 40 प्रतिषत। पंचायतों में माध्यम से महिलाओं के सषक्तिकरण का कार्य किया जा रहा है। पंचायतों में महिलाओं की भागीदारी उनके लिए आरक्षित 33 प्रतिषत की न्यूनतम सीमा से अधिक है। देष में पंचायतों के 22 लाख निर्वाचित प्रतिनिधियों में से करीब 9 लाख महिलाएं हैं। तीन स्तरों वाली पंचायत प्रणाली में 59,000 से अधिक महिला अध्यक्ष हैं।
== संवैधानिक प्रावधान ==
भारतीय संविधान के 73 वें संविधान संशोधन अधिनियम, अप्रेल 1993 ने पंचायत के विभिन्न स्तरों पर पंचायत सदस्य और उनके प्रमुख दोनों पर महिलाओं के लिए एक-तिहाई स्थानों के आरक्षण का प्रावधान किया । जिसमें देश के सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन में सन्तुलन आये। इस संशोधन के माध्यम से संविधान में एक नया खण्ड (9) और उसके अन्तर्गत 16 अनुच्छेद जोडे गए। अनुच्छेद 243 (5) (3) के अन्तर्गत महिलाओं की सदस्यता और अनुच्छेद 243 (द) (4) में उनके लिए पदों पर आरक्षण का प्रावधान है। अनुच्छेद 243 (घ) में यह उपबन्ध है कि सभी स्तर की पंचायत में रहने वाली अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण होगा। प्रत्येक पंचायत में प्रत्यक्ष निर्वाचन से भरे जाने वाले कुल स्थानों में से एक-तिहाई स्थान महिलाओं के लिए आरक्षित होंगे। राज्य विधि द्वारा ग्राम और अन्य स्तरों पर पंचायतों के अध्यक्ष के पदों के लिए आरक्षण कर सकेगा तथा राज्य किसी भी स्तर की पंचायत में नागरिकों के पिछड़े वर्गों के पक्ष में स्थानों या पदों का आरक्षण कर सकेगा।
 
संविधान का यह प्रावधान महिलाआंे की छिपी शक्ति को उजागर करने का सार्थक कदम था। इसके बाद देष के विभिन्न राज्यों में पंचायत चुनावों की घोषणा की गई। इस चुनाव में लगभग तीस लाख महिलाआंे ने भाग लिया। विष्व के किसी अन्य देष में पंचायत चुनावों में महिलाआंे के लिए 33 प्रतिषत सीटांे का आरक्षण नहीं किया गया है। वर्तमान संदर्भों में देखा जाए तो बिहार के बाद मध्यप्रदेष मंे आने वाले पंचायती चुनावों में यह प्रतिषत बढ़ाकर 50 कर दिया गया हैै और यह सब इसलिए भी हुआ है कि महिलाआंे की शक्ति को अब पहचान मिल चुकी है।
 
73 वें -74 वें संविधान संशोधन अधिनियम के तहत स्थानीय स्वायत संस्थानों में 33 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था कर दी गई है। इससे निश्चित रुप से समाज में गतिशीलता आई है। इस संविधान संशोधन के लागू होने के पश्चात महिलाओं की सोच में परिवर्तन आया है वह अब राजनीति में सक्रिय होने लगी हैं, महिलाओं को जागरुक बनाने तथा उनकी सामाजिक व आर्थिक स्थिति में सुधार लाने के लिए संविधान के 73 वें संवैधानिक संशोधन में महिलाओं के लिए आरक्षण एक ठोस कदम है। स्थानीय स्तर की सभी प्रमुख रीतियों जैसे निःशुल्क भूमि आंवटन, आवास निर्माण सहायता, ग्रामीण विकास कार्यक्रम, स्वरोजगार कार्यक्रम के कार्यान्वयन आदि में महिलाओं का योगदान राजनीतिक स्तर पर मिलेगा। स्थानीय निकायों में महिलाओं को अधिकार प्रदान करने की घोषणा एक मील के पत्थर के समान है। स्थानीय निकायों में महिलाओं की सहभागिता अनिवार्य हो गई है। परन्तु विधानमात्र से बदलाव नहीं लाया जा सकता है। इसी परिप्रेक्ष्य में भारतीय संविधान के 73 वें संशोधन द्वारा 1993 में सर्वप्रथम ग्राम सभा के महत्व को वैधानिक तौर पर स्वीकार किया गया गया और हर गांव में ग्राम सभा की स्थापना को अनिवार्य बनाया गया। ग्राम सभा वह प्रथम आधुनिक राजनीति संस्था है जिसके माध्यम से जनता के हाथ में प्रत्यक्ष राजनीति सत्ता सौंपी गई है।