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ये बात ध्यान देने योग्य है कि [[उमर]] का पुत्र [[अब्दुल्लाह बिन उमर]] ने अपने बाप के उलट [[अली]] को ही पैग़म्बर का वारिस माना और [[अबुबकर]] के बेटे [[मुहम्मद बिन अबुबकर]] ने भी अपने दादा यानी [[कहाफ़ा]] की तरह अली का ही साथ दिया!
=== उस्मान की ख़िलाफ़त ===
उमर के बाद तीसरे खलीफ़ा [[उस्मान बिन अफ़्फ़ान|उस्मान]] बने। [[उस्मान]] ने पैग़म्बर के समय के [[बद्र की लड़ाई]] और कई अन्य कई मार्को पर जारी किए हुए वृत्तियाँ अर्थात वज़ीफ़े जो तत्कालीन इस्लामी योद्धाओं को युद्ध में अपंगता या शहीद हो जाने के एवज में दिए जाते थे, बन्द कर दिए और [[बैतुल माल |सरकारी खजाने]] से बहुत अधिक खर्च अपनी इच्छा से करना शुरू कर दिया ! अपने संबंधियों को उच्च पद और गवर्नर नियुक्त कर दिया ! ये सब देख कर लोगों ने उनके खिलाफ बग़ावत की और उन्हें "नासिल" अर्थात गया"गबन करने वाला" घोषित करके उनके खिलाफ जंग छेड़ दी ! उस्मान ने बचने का बहुत पर्यटनप्रयत्न किया प‍रन्तु इनके समय में बाग़ियों लोगों ने मिस्र तथा इराक़ व अन्य स्थानो से आकर मदीना में आकर उस्मान के घर को घेर लिया ४० दिन तक उस्मान के घर को घेराव किया अन्त में उस्मान को मार डाला। उस्मान बिन अफ्फान को जब शहीद किया गया तब उनकी उम्र ७९(79) थी, उन्हें सर में बार बार वार कर के मारा गया उनकी पत्नी उनको बचाने बीच आयी इससे उनकी ऊँगली कट गयी, बागी उनके घर में पीछे की तरफ से अन्दर आये , जब उस्मान को विश्वास हो गया कि ये उन्हें मार कर छोड़ेंगे तो उन्होंने [[अली]] से रक्षा का अनुमोदन किया और अली की आज्ञानुसार "दारुल अमारा" यानी खलीफा के घर में उनके दोनों बेटों ने रसद पहुंचाई और सामने की तरफ़ से हज़रत अली के दोनों बेटे [[हुसैन इब्ने अली]] और [[हसन इब्ने अली]] ,रखवाली कर रहे थे ! [[उस्मान]] ने इनसे निवेदन किया कि किसी हालात में वो उनके घर के सामने के दरवाजे से ना हटें वरना बागी उन्हें मार डालेंगे , इसपर बागियों ने [[हुसैन]] और [[हसन]] से उलझना ठीक नहीं समझा और घर के पीछे से दाखिल होकर चुपचाप उस्मान को मार डाला !
 
== खलीफा अली और परवर्ती विवाद ==