"शिया इस्लाम": अवतरणों में अंतर
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{{इस्लाम}}
'''शिया''' एक [[मुसलमान]] सम्प्रदाय है। [[सुन्नी इस्लाम|सुन्नी]] सम्प्रदाय के बाद यह [[इस्लाम]] का दूसरा सबसे बड़ा सम्प्रदाय है जो पूरी मुस्लिम आबादी का केवल १५% है।<ref>{{cite web|url=http://www.bbc.com/hindi/india/2016/02/160210_islam_many_sects_pk|title=कितने पंथों में बंटा है मुस्लिम समाज?}}</ref> सन् ६३२ में हजरत [[मुहम्मद]] की मृत्यु के पश्चात जिन लोगों ने [[ग़दीर]] की [[पैग़म्बर]] [[मुहम्मद]] की वसीयत के मुताबिक अपनी भावना से हज़रत [[अली इब्न अबी तालिब|अली]] को अपना [[इमाम]] (धर्मगुरु) और [[ख़िलाफ़त|ख़लीफा]] (नेता) चुना वो लोग ''शियाने अली'' (अली की टोली वाले) कहलाए जो आज ''शिया'' कहलाते हैं। लेकिन बहोत से सुन्नी इन्हें "शिया" या "शियाने अली" नहीं बल्कि "राफज़ी" (अस्वीकृत लोग) नाम से बुलाते हैं ! वहीं शिया सम्प्रदाय के लोग भी प्रसिद्ध हदीस "अकमलतो लकुम दिनोकुम" की पूरी व्याख्या के आधार पर उन लोगों को पथभ्रष्ट और [[अल्लाह]] का नाफरमान मानते हैं , जो पैग़म्बर [[मुहम्मद]] के तुरंत पश्चात [[अली]] को [[इमाम]] यानी खलीफा या प्रमुख ना मानें !
इस धार्मिक विचारधारा के अनुसार हज़रत अली, जो मुहम्मद साहब के चचेरे भाई और दामाद दोनों थे, ही हजरत मुहम्मद साहब के असली उत्तराधिकारी थे और उन्हें ही पहला ख़लीफ़ा (राजनैतिक प्रमुख) बनना चाहिए था। यद्यपि ऐसा हुआ नहीं और उनको तीन और लोगों के बाद ख़लीफ़ा, यानि प्रधान नेता, बनाया गया। अली और उनके बाद उनके वंशजों को इस्लाम का प्रमुख बनना चाहिए था, ऐसा विशवास रखने वाले शिया हैं। सुन्नी मुसलमान मानते हैं कि हज़रत अली सहित पहले चार खलीफ़ा (अबु बक़र, उमर, उस्मान तथा हज़रत अली) ''सतपथी'' ([[राशिदून ख़लीफ़ा|राशिदुन]]) थे जबकि शिया मुसलमानों का मानना है कि पहले तीन खलीफ़ा इस्लाम के अवैध तरीके से चुने हुए और ग़लत प्रधान थे और वे हज़रत अली से ही ''इमामों'' की गिनती आरंभ करते हैं और इस गिनती में ''ख़लीफ़ा'' शब्द का प्रयोग नहीं करते। सुन्नी मुस्लिम अली को (चौथा) ख़लीफ़ा भी मानते है और उनके पुत्र [[हुसैन इब्न अली|हुसैन]] को मरवाने वाले यज़ीद को कई जगहों पर पथभ्रष्ट मुस्लिम कहते हैं।
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