"राजा मान सिंह": अवतरणों में अंतर

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== मेवाड़ पर विजय==
मानसिंहजी को भारत की व्यापार क्षमता बढ़ाने के लिए गुजरात जाने के लिए मेवाड़ से मार्ग चाहिए था । लेकिन महाराणा प्रताप ने उन्हें रास्ता नही दिया, क्यो की मानसिंहजी अकबर के मित्र थे। अगर गुजरात जाने का मार्ग बंद रहता, तो भारत की आर्थिक उन्नति पर भी प्रभाव पड़ता, ओर गुजरात मे पठान लगातार प्रबल होते जाते । पठानों को दबाए रखने के लिए, ओर भारत के व्यापार को बढ़ाने के लिए, भारत की आर्थिक उन्नति के लिए मानसिंहजी को मेवाड़ से मार्ग चाहिए था । लेकिन जब बात नही बनी, तो हल्दीघाटी का युद्ध हुआ।  जिसमे मानसिंहजी की विजय हुई ।
जब अकबर के सेनापति मानसिंह [[सोलापुर जिला|शोलापुर]] [[महाराष्ट्र]] विजय करके लौट रहे थे, तो मानसिंह ने प्रताप से मिलने का विचार किया। प्रताप उस वक़्त कुम्भलगढ़ में थे। अपनी राज्यसीमा मेवाड़ के भीतर से गुजरने पर (किंचित अनिच्छापूर्वक) [[महाराणा प्रताप]] को उनके स्वागत का प्रबंध [[उदयपुर]] के उदयसागर की पाल पर करना पड़ा. स्वागत-सत्कार एवं परस्पर बातचीत के बाद भोजन का समय भी आया। महाराजा मानसिंह भोजन के लिए आये किन्तु महाराणा को न देख कर आश्चर्य में पड़ गये। उन्होंने महाराणा के पुत्र [[अमरसिंह]] से इसका कारण पूछा तो उसने बताया कि 'महाराणा साहब के सिर में दर्द है, अतः वे भोजन पर आपका साथ देने में में असमर्थ हैं।'
 
कुछ इतिहासकारों के अनुसार यही घटना [[हल्दीघाटी|हल्दी घाटी]] के युद्ध का कारण भी बनी। [[अकबर]] को [[महाराणा प्रताप]] के इस व्यवहार के कारण [[मेवाड़]] पर आक्रमण करने का एक और मौका मिल गया। सन 1576 ई. में 'राणा प्रताप को दण्ड देने' के अभियान पर नियत हुए।
मुगल सेना मेवाड़ की ओर उमड पड़ी। उसमें मुगल, राजपूत और पठान योद्धाओं के साथ अकबर का जबरदस्त तोपखाना भी था हालाकि पहाड़ी इलाकों में तोप काम ना आ सकी और युद्ध में तोपो की कोई भूमिका नहीं थी। अकबर के प्रसिद्ध सेनापति महावत खान, आसफ खान और महाराजा मानसिंह के साथ अकबर का शाहजादा सलीम उस मुगल सेना का संचालन कर रहे थे, जिसकी संख्या 5,000 से 10,000 के बीच थी। तीन घंटे के युद्ध के बाद मुगलो की आधी फौज मारी जा चुकी थी किन्तु प्रताप भी रणमैदान में घायल हो हुए तब उनके सेनापति झाला मन्ना ने उन्हें युद्धभूमि से सुरक्षित बाहर भेज। स्वयं युद्ध लड़ा। विजय होने के उपरांत मानसिंह ने पूरे मेवाड को मुगल साम्राज्य के अधीन करदिया था और प्रताप को अगले 4 वर्षों तक जंगल और पहाड़ों में जीवन जीना पड़ा था।
 
== मानसिंह और रक्तरंजित हल्दीघाटी ==