"राजा मान सिंह": अवतरणों में अंतर
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माधोसिंहजी ओर मानसिंहजी दोनो ने महाराणा प्रताप को मैदान छोड़कर जाते देख लिया, लेकिन किसी ने उनका पीछा नही किया ।। मानसिंहजी में मुगल सैनिकों को मेवाड़ नही लूटने दिया ।। यह पहली बार हुआ, की मेवाड़ एक भीषण युद्ध के बाद भी बहुत ज़्यादा नुकसान नही उठाना पड़ा ।। हल्दीघाटी के युद्ध के बाद मानसिंहजी ने साबित कर दिया, की युद्धनीति ओर युद्ध के बाद महानता में उनका कोई तोड़ नही है । मानसिंहजी एक दिव्य पुरूष की भांति मेवाड़ के लिए वरदान साबित हुए ।
== विश्व विजेता मानसिंह ==
मानसिंहजी रावलपिंडी थे, जो पूरी तरह इस्लामिक बन चुका था ।। मानसिंहजी के पास सेना थी मात्र 3500 । कश्मीर से लेकर अफगानिस्तान, कज्जकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान , तुर्कीस्तान, उज्बेकिस्तान, ईरान के शाशक एक हो गए, ओर इनका इरादा था, भारत मे भयंकर लूटमार मचाना ।।
इतनी बड़ी संख्या, ओर मानसिंहः जी के पास सैनिक केवल 3500 , बाद में कुछ सहायता अकबर की तरफ से गयी, क्यो की वह भी अफगानों से हारकर अपना राजपाठ गंवाना नही चाहता था, अय्याशी किस विदेशी आक्रांता को प्यारी नही है । यह घटना हल्दीघाटी युद्ध के मात्र 4 साल बाद कि घटना है ।।
इस पूरे हमले को अकेले मानसिंहजी ने रौका था, एक भी अन्य राजपूत का सहयोग मानसिंहजी ने नही लिया । मानसिंहजी ने कश्मीर से लेकर , कैस्पियन सागर तक ( जिसमे ईरान, कज्जकिस्तान, अफगानिस्तान, कश्मीर, तुर्की, उज्बेकिस्तान , बलूचिस्तान ,आदि सभी क्षेत्र आ जाते है, जहां से कासिम से लेकर अल्लाउदीन खिलजी सब आये थे ) के प्रदेशो को कुचलकर रख दिया । उस समय यह सारा प्रदेश मात्र 5 रियासतों में बंटा था । इन्ही पांच रियासतों के झंडे उतारकर , मानसिंहजी ने भारत के गौरव की शान में इन पांच रियासतों के झंडे को मिलाकर जयपुर का " पंचरंगा ध्वज बनाया । इतना बड़ा काम करने वाला यह महापुरुष उस समय मात्र 30 साल का था ।।
अगर मानसिंहजी ने इस हमले को असफल ना किया होता, तो भारत मे एक भी हिन्दू का बचे रहना मुश्किल था ।
== मानसिंह काल में आमेर की उन्नति ==
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