"कश्मीर का इतिहास": अवतरणों में अंतर

छो बॉट: पुनर्प्रेषण ठीक कर रहा है
xxx
पंक्ति 8:
यहां का प्राचीन विस्तृत लिखित इतिहास है [[राजतरंगिणी]], जो [[कल्हण]] द्वारा 12वीं शताब्दी ई. में लिखा गया था। तब तक यहां पूर्ण हिन्दू राज्य रहा था।
यह [[अशोक|अशोक महान]] के साम्राज्य का हिस्सा भी रहा। लगभग तीसरी शताब्दी में अशोक का शासन रहा था। तभी यहां बौद्ध धर्म का आगमन हुआ, जो आगे चलकर कुषाणों के अधीन समृध्द हुआ था।
उज्जैन के महाराज [[विक्रमादित्य]] के अधीन छठी शताब्दी में एक बार फिर से हिन्दू धर्म की वापसी हुई। उनके बाद ललितादित्या चमार शासक रहा, जिसका काल 697 ई. से 738 ई. तक था। "आइने अकबरी के अनुसार छठी से नौ वीं शताब्दी के अंत तक कश्मीर पर चमारों का शासन रहा।" अवंती वर्मन ललितादित्या का उत्तराधिकारी बना। उसने श्रीनगर के निकट अवंतिपुर बसाया। उसे ही अपनी राजधानी बनाया। जो एक समृद्ध क्षेत्र रहा। उसके खंडहर अवशेष आज भी शहर की कहानी कहते हैं।
यहां [[महाभारत]] युग के गणपतयार और खीर भवानी मन्दिर आज भी मिलते हैं। [[गिलगित|गिलगिट]] में पाण्डुलिपियां हैं, जो प्राचीन पाली भाषा में हैं। उसमें बौद्ध लेख लिखे हैं।
त्रिखा शास्त्र भी यहीं की देन है। यह कश्मीर में ही उत्पन्न हुआ। इसमें सहिष्णु दर्शन होते हैं।