"गुप्त राजवंश": अवतरणों में अंतर

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==गुप्त वंश की उत्पत्ति==
गुप्त वंश धारण है जो कि वैश्य समाज में पाया जाता है
गुप्त वंश धारण है जो कि वैश्य समाज में पाया जाता है इसके लिए “अन्धकारयुगीन भारत” पृ० 252 पर लेखक काशीप्रसाद जायसवाल ने लिखा है कि : “गुप्त लोग वैश्य थे<ref>[[अन्धकारयुगीन भारत]] पृष्ठ 252|Url https://books.google.co.in/books?id=8p0tAAAAMAAJ&dq=kashi+prasad+jayaswal+jat&focus=searchwithinvolume&q=Gupta+jat</ref><ref>Url https://books.google.co.in/books?id=yg9uAAAAMAAJ&q=%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%A4+%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%9F&dq=%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%A4+%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%9F&hl=en&sa=X&ved=0ahUKEwju7vKfgKfkAhXV73MBHU_4BwcQ6AEIOTAD</ref> जो पंजाब से चलकर आए थे। आजकल के कक्कड़-कक्करान जाट उसी मूल समाज के प्रतिनिधि हैं जिस समाज में गुप्त लोग थे। कारसकरों में भी गुप्त लोग जिस विशिष्ट गुप्त विभाग या गोत्र के थे, उनका नाम धारण या धारी या धारीवाल था। इसके लिए एपीग्राफिका इण्डीका, खण्ड 15, पृ० 41-42 पर लिखा है कि चन्द्रगुप्त द्वितीय की पुत्री प्रभावती जिसका विवाह वाकाटकवंशज रुद्रसेन द्वितीय से हुआ तब प्रभावती गुप्ता ने अपने पिता का गोत्र शिलालेख पर धारण ही लिखा है।<ref>Gupta-rajavamsa tatha usaka yuga Author-Udai Narain Roy - 1977|url https://books.google.co.in/books?id=CAsKAQAAIAAJ&q=%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%A4+%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%9F&dq=%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%A4+%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%9F&hl=en&sa=X&ved=0ahUKEwju7vKfgKfkAhXV73MBHU_4BwcQ6AEITTAG</ref>
 
इस बात का समर्थन कौमुदी महोत्सव नाटक और चन्द्रव्याकरण से भी होता है।”
स्कन्दगुप्त के द्वारा हूणों की पराजय का "अजयज्जर्टो हूणान" चन्द्रगोमिन् की व्याकरण से स्पष्ट गुप्तवंश का जाट होना सिद्ध करता है।<ref>चंद्रगोमनी व्याकरण</ref>
डा० जायसवाल की इस बात को दशरथ शर्मा तथा दूसरों ने भी प्रमाणित माना है।
डा० जायसवाल के इस मत कि गुप्त लोग जाट थे के पक्ष में लेख्य प्रमाण हैं जो कि ‘आर्य मंजूसरी मूला कल्पा’ नामक भारत का इतिहास, जो संस्कृत एवं तिब्बती भाषा में आठवीं शताब्दी ई० से पहले लिखा गया, उस पुस्तक के श्लोक 759 में लिखा है कि “एक महान् सम्राट् जो मथुरा जाट परिवार का था और जिसकी माता एक वैशाली कन्या थी, वह मगध देश का सम्राट् बना।<ref>[[Imperial History of India]], P. 72</ref><ref>pratiyogita darpan|Url https://books.google.co.in/books?id=RegDAAAAMBAJ&pg=PT70&dq=kashi+prasad+jayaswal+jat+gupta&hl=en&sa=X&ved=0ahUKEwi018bT_abkAhUyjOYKHdv6BLcQ6AEILjAB#v=onepage&q=kashi%20prasad%20jayaswal%20jat%20gupta&f</ref>
यह हवाला समुद्रगुप्त का है जिसकी माता एक वैशाली राज्य की राजकुमारी थी।
उस सम्राट् समुद्रगुप्त ने अपने सिक्कों पर “लिच्छवि दौहित्र” बड़े गर्व से प्रकाशित करवाया था।
चन्द्रगुप्त प्रथम मथुरा का जाट था जिसका विवाह लिच्छवि राजकुमारी कुमारदेवी से हुआ था। उस सम्राट् के सिक्कों पर उन दोनों की मूर्तियां थीं।
 
== साम्राज्य की स्थापना: श्रीगुप्त ==