"विभक्ति": अवतरणों में अंतर

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[[संस्कृत व्याकरण]] के अनुसार नाम या संज्ञाशब्दों के बाद लगनेवाले वे [[प्रत्यय]] 'विभक्ति' कहलाते हैं जो नाम या संज्ञा शब्दों को पद (वाक्य प्रयोगार्थ) बनाते हैं और कारक परिणति के द्वारा क्रिया के साथ संबंध सूचित करते हैं। प्रथमा, द्वितीया, तृतीया आदि विभक्तियाँ हैं जिनमें एकवचनं (singular), द्विवचनं, बहुवचन—तीन बचन होते है। [[अष्टाध्यायी|पाणिनीय व्याकरण]] में इन्हें 'सुप' आदि २७ विभक्ति के रूप में गिनाया गया है। संस्कृत व्याकरण में जिसे 'विभक्ति' कहते है, वह वास्तव में शब्द का रूपांतरित अंग होता है। जैसे,—रामेण, रामाय इत्यादि।
 
आजकल की प्रचलित [[हिन्दी]] की [[खड़ीबोली|खड़ी बोली]] में इस प्रकार की (संस्कृत की तरह की) विभक्तियाँ प्रायः नहीं हैं, केवल कर्म और सप्रदान कारक के सर्वनामों में विकल्प से आती हैं। जैसे,—मुझे, तुझे, इन्हें इत्यादि। संस्कृतखड़ी बोली में विभक्तियोंबल्कि केसंज्ञाओं रूपकी शब्दतीन केकारक अंत्य अक्षर के अनुसार भिन्न भिन्न होते हैं। पर यह भेद खड़ीबोली के कारकोंहेलो में नहींविभक्ति पाया जाता, जिसमें शुद्ध विभक्तियों का व्यवहार नहीं होता, कारकचिह्नों का व्यवहार होताहोती है,:- जैसे 'ने'अविकारी, 'में', 'से', 'द्वारा',इतर 'का'और आदि।संबोधन।
 
नीचे दिया गया श्लोक [[रामरक्षास्त्रोत्र]] में आया है और इसे विभक्ति समझाने के लिये उपयोग किया जाता है। इसमें 'राम' शब्द के आठ रूप आये हैं जो क्रमशः आठों विभक्तियों के एकवचन के रूप हैं।