"रामायण": अवतरणों में अंतर

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''' रामायण''' हिन्दू राजा [[राम]] की गाथा है। । यह आदि कवि [[वाल्मीकि]] द्वारा लिखा गया [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]] का एक अनुपम महाकाव्य, [[स्मृति]] का वह अंग है। इसे [[रामायण|आदिकाव्य]]<ref>'रामायणमादिकाव्यम्', श्रीस्कन्दपुराणे उत्तरखण्डे रामायणमाहात्म्ये- १-३५ तथा ५-६१, श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण भाग-१, गीताप्रेस गोरखपुर, संस्करण-१९९६ ई०, पृष्ठ-९ एवं २५.</ref> तथा इसके रचयिता महर्षि वाल्मीकि को 'आदिकवि'<ref>ध्वन्यालोकः, १-५ (कारिका एवं वृत्ति) तथा ४-५ (वृत्ति), ध्वन्यालोक, हिन्दी व्याख्याकार- आचार्य विश्वेश्वर सिद्धान्तशिरोमणि, ज्ञानमंडल लिमिटेड, वाराणसी, संस्करण-१९८५ ई०, पृष्ठ-२९-३० एवं ३४५ तथा ध्वन्यालोकः (लोचन सहित) हिन्दी अनुवाद- जगन्नाथ पाठक, चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी, संस्करण-२०१४, पृष्ठ-८६ एवं ८९ तथा पृ०-५७०.</ref> भी कहा जाता है। रामायण के सात अध्याय हैं जो [[काण्ड]] के नाम से जाने जाते हैं, इसके २४,००० [[श्लोक]]{{Ref_label|24000 श्लोक|ख|none}} हैं। जिसे कवि वाल्मीकि जी ने श्री राम जी के जन्म के पहले ही लिखी थी!
 
== रचनाकाल ==
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== संक्षेप में रामायण-कथा ==
हिन्दू शास्त्रों के अनुसार भगवान राम, [[विष्णु]] के अवतार थे। इस अवतार का उद्देश्य मृत्युलोक में मानवजाति को आदर्श जीवन के लिये मार्गदर्शन देना था। अन्ततः श्रीराम ने राक्षस जाति{{Ref_label|आचार्य|च|none}} के राजा [[रावण]] का वध किया और धर्म की पुनर्स्थापना की।<ref>{{Cite web|url=https://hindi.webdunia.com/religious-stories/lord-rama-birth-story-117012000053_1.html|title=यह है संक्षेप में श्रीराम के जन्म की पौराणिक कथा|last=|first=|date=|website=Hindi webdunia|archive-url=|archive-date=|dead-url=|access-date=}}</ref>
 
=== बालकाण्ड ===
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पंचवटी में [[रावण]] की बहन [[शूर्पणखा]] ने आकर राम से प्रणय निवेदन-किया। राम ने यह कह कर कि वे अपनी पत्नी के साथ हैं और उनका छोटा भाई अकेला है उसे [[लक्ष्मण]] के पास भेज दिया। लक्ष्मण ने उसके प्रणय-निवेदन को अस्वीकार करते हुये शत्रु की बहन जान कर उसके नाक और कान काट लिये। शूर्पणखा ने [[खर-दूषण]] से सहायता की मांग की और वह अपनी सेना के साथ लड़ने के लिये आ गया। लड़ाई में राम ने खर-दूषण और उसकी सेना का संहार कर डाला।<ref>‘वाल्मीकीय रामायण’, प्रकाशक: देहाती पुस्तक भंडार, दिल्ली पृष्ठ 251-263</ref> शूर्पणखा ने जाकर अपने भाई रावण से शिकायत की। रावण ने बदला लेने के लिये [[मारीच]] को [[स्वर्णमृग]] बना कर भेजा जिसकी छाल की मांग सीता ने राम से की। लक्ष्मण को सीता के रक्षा की आज्ञा दे कर राम स्वर्णमृग रूपी मारीच को मारने के लिये उसके पीछे चले गये। मारीच के हाथों मारा गया पर मरते मरते मारीच ने राम की आवाज बना कर ‘हा लक्ष्मण’ का क्रन्दन किया जिसे सुन कर सीता ने आशंकावश होकर लक्ष्मण को राम के पास भेज दिया। लक्ष्मण के जाने के बाद अकेली सीता का रावण ने छलपूर्वक हरण कर लिया और अपने साथ [[लंका]] ले गया। रास्ते में [[जटायु]] ने सीता को बचाने के लिये रावण से युद्ध किया और रावण ने उसके पंख काटकर उसे अधमरा कर दिया।<ref>‘रामचरितमानस’, टीकाकार: हनुमानप्रसाद पोद्दार, प्रकाशक एवं मुद्रक: गीताप्रेस, गोरखपुर पृष्ठ 603-606</ref>
 
सीता को न पा कर राम अत्यन्त दुःखी हुये और विलाप करने लगे। रास्ते में जटायु से भेंट होने पर उसने राम को रावण के द्वारा अपनी दुर्दशा होने व सीता को हर कर दक्षिण दिशा की ओर ले जाने की बात बताई। ये सब बताने के बाद जटायु ने अपने प्राण त्याग दिये और राम उसका अन्तिम संस्कार करके सीता की खोज में सघन वन के भीतर आगे बढ़े। रास्ते में राम ने [[दुर्वासा ऋषि|दुर्वासा]] के शाप के कारण राक्षस बने [[गन्धर्व]] [[कबन्ध]] का वध करके उसका उद्धार किया और [[शबरी]] के आश्रम जा पहुँचे जहाँ पर कि उसके द्वारा दिये गये जूठे बेरों को उसके भक्ति के वश में होकर खाया। इस प्रकार राम सीता की खोज में सघन वन के अंदर आगे बढ़ते गये।
 
=== किष्किन्धाकाण्ड ===
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;प्रारंभिक साहित्य
* विकिस्रोत से [[oldwikisource:रामायण|रामायण]]
*[https://www.gurujiinhindi.com/2019/12/ramayan-story-in-hindi.html सम्पूर्ण रामायण हिंदी में एक ही आर्टिकल में]
 
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