"मैक्सिम गोर्की": अवतरणों में अंतर

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== जीवन एवं रचनाकर्म ==
मक्सीम गोर्की का जन्म निझ्नी नोवगरद नगर में हुआ। गोर्की के पिता बढ़ई थे। 11 वर्ष की आयु से गोर्की काम करने लगे। 1884 में गोर्की का मार्क्सवादियों से परिचय हुआ। 1888 में गोर्की पहली बार गिरफ्तार किए गए थे। 1891 में गोर्की देशभ्रमण करने के लिए निकले। 1892 में गोर्की की पहली कहानी "मकारमकर चुद्राछु

द्रा" प्रकाशित हुई। गोर्की की प्रारंभिक कृतियों में रोमांसवाद और यथार्थवाद का मेल दिखाई देता है। "बाज़ के बारे में गीत" (1895), "झंझा-तरंगिका के बारे में गीत" (1895) और "बुढ़िया इजरगिल" (1901) नामक कृतियों में क्रांतिकारी भावनाएँ प्रकट हुई थीं। दो उपन्यासों, "फ़ोमा गार्दियेफ़" (1899) और " वे तीन" (1901) में गोर्की ने शहर के अमीर और गरीब लोगों के जीवन का वर्णन किया है। 1899-1900 में गोर्की का परिचय चेख़फ़ और लेव तलस्तोय से हुआ। उसी समय से गोर्की क्रान्तिकारी आंदोलन में भाग लेने लगे। 1901 में उन्हें फिर से गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें कालेपानी की सज़ा हुई। 1902 में विज्ञान अकादमी ने गोर्की को सामान्य सदस्य की उपाधि दी परन्तु रूस के ज़ार ने इसे रद्द कर दिया।
 
गोर्की ने अनेक नाटक लिखे, जैसे "सूर्य के बच्चे" (1905), "बर्बर" (1905), "तलछट" (1902) आदि, जो बुर्जुआ विचारधारा के विरुद्ध थे। गोर्की के सहयोग से "नया जीवन" बोल्शेविक समाचारपत्र का प्रकाशन हो रहा था। 1905 में गोर्की पहली बार लेनिन से मिले। 1906 में गोर्की विदेश गए, वहीं इन्होंने "अमरीका में" नामक एक कृति लिखी, जिसमें अमरीकी बुर्जुआ संस्कृति के पतन का व्यंगात्मक चित्र दिया गया था। नाटक "शत्रु" (1906) और "[[माँ (उपन्यास)|मां]]" उपन्यास में (1906) गोर्की ने बुर्जुआ लोगों और मजदूरों के संघर्ष का वर्णन किया है। विश्वसाहित्य में पहली बार इस विषय में कुछ लिखा गया था। इन रचनाओं में गोर्की ने पहली बार क्रांतिकारी मज़दूर का चित्रण किया था। लेनिन ने इन कृतियों की प्रशंसा की। 1905 की क्रांति के पराजय के बाद गोर्की ने एक लघु उपन्यास - "पापों की स्वीकृति" ("इस्पावेद") लिखा, जिसमें कई अध्यात्मवादी भूलें थीं, जिनके लिए लेनिन ने इसकी सख्त आलोचना की। "आखिरी लोग" और "गैरज़रूरी आदमी की ज़िन्दगी" (1911) में सामाजिक कुरीतियों की आलोचना है। "मौजी आदमी" नाटक में (1910) बुर्जुआ बुद्धिजीवियों का व्यंगात्मक वर्णन है। इन वर्षों में गोर्की ने बोल्शेविक समाचारपत्रों "ज़्विज़्दा" और "प्रवदा" के लिये अनेक लेख भी लिखे। 1911-13 में गोर्की ने "इटली की कहानियाँ" लिखीं जिनमें आजादी, मनुष्य, जनता और परिश्रम की प्रशंसा की गई थी। 1912-16 में "रूस में" कहानी-संग्रह प्रकाशित हुआ था जिसमें तत्कालीन रूसी मेहनतकशों की मुश्किल ज़िन्दगी प्रतिबिम्बित होती है।