"उराँव": अवतरणों में अंतर
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[[Image:Copy of Image(352) Uraon tribal lady of Jharkhand India.jpg|300px|thumb|right|एक कुड़ुख वृद्धा (छोटानागपुर)]]
'''ओराँव''' या 'कुड़ुख' [[भारत]] की एक प्रमुख [[जनजाति]] हैं। ये [[भारत]] के केन्द्रीय एवं पूर्वी राज्यों में तथा [[बांग्लादेश|बंगलादेश]] के निवासी हैं। इनकी [[भाषा]] का नाम भी '[[कुड़ुख|उराँव]]' या '[[कुड़ुख]]' है जो [[द्रविड़ भाषा-परिवार|द्रविण भाषा परिवार]] से संबन्धित
==परिचय==
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[[कुड़ुख|उराँव भाषा]] द्रविड़ परिवार की है जो समीपवर्ती आदिवासी समूहों की [[मुण्डा भाषाएँ|मुंडा भाषाओं]] से सर्वथा भिन्न है। उराँव भाषा और [[कन्नड़ भाषा|कन्नड]] में अनेक समताएँ हैं। संभवत: इन्हें ही ध्यान में रखते हुए, गेट ने १९०१ की अपनी जनगणना की रिपोर्ट में यह संभावना व्यक्त की थी कि उराँव मूलत: कर्नाटक क्षेत्र के निवासी थे। उनका अनुमान था कि इस समूह के पूर्वज पहले कर्नाटक से नर्मदा उपत्यका में आए और वहाँ से बाद में बिहार राज्य के सोन तट के भागों में आकर बस गए। पर्याप्त प्रमाणों के अभाव में इस अनुमान को वैज्ञानिक मानना उचित नहीं होगा।
अधिकांश उराँव इस समय [[राँची जिला|राँची जिले]] के मध्य और पश्चिमी भाग में रहते हैं। उराँव समूह के प्रथम वैज्ञानिक अध्येता स्वर्गीय
इस समूह की अर्थव्यवस्था मूलत: कृषि पर अवलंबित है। आखेट द्वारा भी वे अंशत: अपनी जीविका अर्जित करते हैं। जाल और फंदों द्वारा वे जंगली जानवर और मछलियाँ पकड़ते हैं।
उराँव अनेक गोत्रों में विभाजित हैं। गोत्र के भीतर वैवाहिक संबंध निषिद्ध होते हैं। प्रत्येक गोत्र का अपना विशिष्ट गोत्रचिह्न होता है। राय के
उराँव समाज में संबंध व्यवस्था वर्गीकृत संज्ञाव्यवस्था पर आधारित होती है। [[विवाह]] सदा गोत्र के बाहर होते हैं। तीन पीढ़ियों तक के कतिपय रक्तसंबंधियों और वैवाहिक संबंधियों में भी विवाह का निषेध होता है।
प्रत्येक उराँव ग्राम की अपनी स्वतंत्र
उराँव लोगों का
'धूमकुड़िया' उराँव की एक विशिष्ट संस्था थी। यह एक प्रकार का युवागृह होता है जिसका प्रचलन भारत तथा संसार के कतिपय अन्य आदिवासी समूहों में वास और संगठन के महत्वपूर्ण भेदों के साथ पाया जाता है। उराँव समाज में लड़कों और लड़कियों की अलग-अलग धूमकुड़िया होती है यद्यपि वे एक दूसरे के पास आ जा सकने के लिए स्वतंत्र रहते हैं। कहा जाता है, पहले तरुण तरुणियों को इन गृहों में यौन संबंधों की स्वतंत्रता रहती थी। इस दिशा में उनका केवल गोत्रनियमों भर का पालन करना आवश्यक माना जाता था। समवर्ती जातियों की आलोचना के कारण इस संस्था का ह्रास होता जा रहा है। उसकी संख्या कम हो गई है। जहाँ वह आज भी पाई जाती है वहाँ उसके आंतरिक संगठन में अनेक मूलभूत परिवर्तन हो गए हैं। तरुण-तरुणियों की स्वतंत्रता कई अंशों में सीमित हो गई है।
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== बाहरी कड़ियाँ==
*[http://www.bhartiyapaksha.com/?p=10765 अंग्रेज भी उरांवों को दास नहीं बना सके] (भारतीय पक्ष)
{{भारत की जनजातियां}}
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