"ज्योतिराव गोविंदराव फुले": अवतरणों में अंतर

छोNo edit summary
टैग: यथादृश्य संपादिका मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
सन्दर्भ जोड़ा
टैग: यथादृश्य संपादिका मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
पंक्ति 36:
गरीबो और निर्बल वर्ग को न्याय दिलाने के लिए ज्योतिबा ने 'सत्यशोधक समाज' 1873 मे स्थापित किया। उनकी समाजसेवा देखकर 1888 ई. में मुंबई की एक विशाल सभा में उन्हें '[[महात्मा]]' की उपाधि दी। ज्योतिबा ने ब्राह्मण-पुरोहित के बिना ही विवाह-संस्कार आरम्भ कराया और इसे मुंबई हाईकोर्ट से भी मान्यता मिली। वे बाल-विवाह विरोधी और विधवा-विवाह के समर्थक थे।
अपने जीवन काल में उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखीं-गुलामगिरी, तृतीय रत्न, छत्रपति शिवाजी, राजा भोसला का पखड़ा, किसान का कोड़ा, अछूतों की कैफियत.
महात्मा ज्योतिबा व उनके संगठन के संघर्ष के कारण सरकार ने ‘एग्रीकल्चर एक्ट’ पास किया। धर्म, समाज और परम्पराओं के सत्य को सामने लाने हेतु उन्होंने अनेक पुस्तकें भी लिखी.<ref>{{Cite web|url=http://hindi.webdunia.com/inspiring-personality/mahatma-jyotiba-fule-115041000059_1.html|title=महात्मा ज्योतिबा फुले|last=Webdunia|website=hindi.webdunia.com|language=hi|access-date=2020-04-11}}</ref>
 
* <big>ब्रिटिश सरकार द्वारा उपाधि- १८८३ में स्री यो को शिक्षा प्रदान कराने के महान कार्य के लिए उन्हें तत्कालीन ब्रिटिश भारत सरकार द्वारा ' स्री शिक्षण के आद्यजनक 'काहकर गौरव किया.</big>