"गुप्त राजवंश": अवतरणों में अंतर

गुप्त वंशज आज के गुप्ता है।
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गुप्त वंश धारण है जो कि वैश्य समाज में पाया जाता है चन्द्रगुप्त द्वितीय की पुत्री प्रभावती गुप्त ने पूना अभिलेख में अपने वंश को स्पष्टतः धारण गोत्रीय बताया हैं. अग्रवालो के १८ गोत्र में से एक गोत्र धारण हैं. गुप्त वैश्यों की उपाधि हैं. आज भी धार्मिक कर्म व संकल्प करते हुए वैश्य पुरोहित नाम व गोत्र के साथ गुप्त उपनाम का उल्लेख करते है. गुप्त शासको के नाम श्री, चन्द्र, समुद्र, स्कन्द आदि थे. जबकि गुप्त उनका उपनाम था. जो की उनके वर्ण व जाति को उद्घोषित करता हैं. गुप्त उपनाम केवल और केवल वैश्य समुदाय के व्यक्तियों के लिए प्रयुक्त होता हैं.इतिहास में व पुरानो में गुप्त सम्राटो को वैश्य बताया गया है. बोद्ध धर्मग्रन्थ आर्यमंजुश्री कल्प में गुप्त वंश को वैश्य बताया गया है. इतिहासकार अल्तेकर, आयंगर, रोमिल्ला थापर, रामचरण शर्मा आदि ने गुप्त वंश को वैश्य बताया है.गुप्त सम्राटो ने यज्ञोपवित धारण किया था. व अश्वमेध यज्ञ कराये थे. केवल द्विज ही यह कार्या कर सकते थे। और प्राचीन क्षत्रिय जाति है. जिसने बाद में वैश्य कर्म अपनाया. गुप्त वंश के शासक आज के गुप्ता थे. गुप्त सम्राटो की कुलदेवी भी माता लक्ष्मी है. गुप्ता वैष्णव होते है. और शद्ध शाकाहारी भी. गुप्त वंश के शासक भी वैष्णव और शाकाहारी थे. गुप्त वंश के समय में भारत सोने की चिड़िया कहलाया था. एक विशुद्ध वैश्य शासक ही व्यापार को बढ़ावा दे सकता है. गुप्त सम्राट समुद्र गुप्त की शादी भी अग्रोहा नगर की एक योधेय अग्रवाल राजकुमारी से हुई थी. चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य का बचपन अपने ननिहाल अग्रोहा में ही बिता था.अग्रोहा अग्रवालो का नगर था और योधेय जनपद की राजधानी थी. उस समय अग्रवालो को योधेय कहा जाता था.
 
== साम्राज्य की स्थापना: श्रीगुप्त ==