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== ब्राह्मणों की वंशावली में एक विद्वान कुल की परम्परा का वर्णन ==
 
**कुशहरा वंश का एक संक्षिप्त परिचय**
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"वृहि" वर्धते धातु से निष्पन्न ब्राह्मण शब्द का निर्वचन"ब्रह्म जानाति इति ब्राह्मण:" ज्ञातव्य है। यद्यपि जिन ऐतरेय आदि ब्राह्मण का उल्लेख है, वह सब ग्रंथ है, किन्तु ब्राह्मण वर्णव्यवस्था पर आधारित एक उच्चतम कार्यकर्ता था। कालान्तर में समय परिवर्तन हुआ और इनके द्वारा उत्पन्न संतान इनके वंशज के रुप में इनके गोत्र का उल्लेख हुआ़, और इनके यथाकर्मो पाठनत: पाठक आदि रुपों में प्रचलित हुआ। सन्दर्भ की इस श्रृंखला में कृष्ण यजुर्वेद के पारायणकर्ता को "मिश्र" संज्ञा लोक में प्रचलित हुआ, तथा कालिदास की अप्रतिम रचना अभिज्ञानशाकुन्तलम में "शार्गंरव मिश्रा:" में मिश्रा पूजनीय अर्थ में दृष्टव्य है।(सन्दर्भ- पद्मश्री डा० कपिल देव द्विवेदीकी पुस्तक पृष्ठ संख्या ७८)।
इसके अतिरिक्त कृष्ण यजुर्वेद के परायणकर्ता को भी मिश्र कहा जाता है।
प्रसंग की इस श्रेणी में सरयूपारीय ब्राह्मणों के घृतकौशिक गोत्र का विशेष उल्लेख है, जिसके अन्तर्गत *कुशहरा* की उपाधि से समलंकृत विद्वत् ब्राह्मण वृन्द जिनका मूल निवास गोरखपुर के समीप कुशहर गांव से है, और इस गांव का नाम कुशहर हरी कुशाओं के द्वारा घृत की हवि देने से है। इस ज्ञानसंपन्न कुल मेंं एक महाज्ञानी पुरोधा विप्र हुए, जिनका नाम था- *पं भवानीदत्त मिश्र*
यह विप्रवर वास्तव में शैवभक्त थे, किन्तु साथ ही देवी के परमाराधक भक्त थे, जिन्होंने देवी की कृपा से उत्पन्न अपने पुत्र का नामकरण *देवीदत्त* रखा।
यह भी वंश परंपरा के आनुवंशिक लक्षण के फलस्वरूप शिव और शक्ति के महान समुपासक सिद्ध हुये, और एक बार राजा पन्नानरेश की नि:संतानता की व्यथा को समाप्त करने के उद्देश्य से एकादशदिवसीय अनुष्ठान का आयोजन किया और नृप को संतान प्राप्ति का सुख प्राप्त हुआ, जिसके फलस्वरूप राजा ने दान के स्वरुप कौशांबी जनपद तथा अन्य स्थानों पर भूमि तथा अन्य महत्त्वपूर्ण उपहार से विप्रवर को विभूषित किया।
विप्र के दो सुयोग्य सुत हुए, जिनके नाम क्रमशः **पं"शिवदत्त (सिद्ध) और पं गोविंद* का नाम उल्लेखनीय है।
वंशानुगत शैवोपासक की सिद्धि हेतु शिवदत्त अनुसूया धाम जाकर गहन तप में लीन होकर अनेकों सिद्धियों को प्राप्तकर "सिद्ध" संज्ञा से विभूषित होकर ब्रह्मचर्य धारण करते हुए चिर समाधि में लीन होकर भावी वंशावलियों के कुलदेवता के रुप में अधिष्ठित हो गये।
दूसरे पुत्र पं गोविंद शिवाराधना करते हुए कौशांबी जनपद (जो कभी अत्यंत समृद्धशाली नगर था, उल्लेखनीय ग्रंथ- रत्नावली, कथासरित्सागर आदि) में आकर निवास करने लगे।
तदन्तर उनके *रामलला* नाम के अत्यंत विद्वान सुपुत्र हुए, और वह रानीपुर नामक ग्राम जो वर्तमान समय में भी कौशांबी जनपद के महेवाघाट थाना क्षेत्र के अन्तर्गत सुप्रतिष्ठित है, में आकर निवसित हुए और उन्होंने पुरवासियों के प्रार्थना पर पौरोहित्य पद स्वीकार्य किया, क्योंकि भारत देश तत्कालीन स्थिति में पराधीन था, और ब्राह्मण के लिए दासीय परंपरा से पृथक पौरोहित्य को प्रकृष्ट समझकर पूर्वजों से प्राप्त विद्या की परंपरा फलीभूत करते हुए रामलला ने यह प्रथा प्रारंभ किया, और कालक्रम की सजीवता में उनके पुत्रत्रय हुए, क्रमशः-
*१-पं ईशदत्त मिश्र( बाबादीन)
२-पं परमेश्वरदीन
३-पं ईश्वर दीन*
विद्वतकोटि में उत्पन्न इन विद्वानों ने पौरोहित्य प्रथा को निरंतर प्रवाहमान रखा।
बाबादीन उपाधि विख्यात ईशदत्त मिश्र के तीन पुत्र हुए-
*पं श्रीधर मिश्र
पं हरिहर प्रसाद मिश्र
पं देवदत्त मिश्र ( शास्त्री)*
यद्यपि वंशप्राप्त विद्या में यह तीनों पारंगत थे, किन्तु विशेषतः पं श्रीधर एक उच्चकोटि के तन्त्र विद्या में निपुण, पं हरिहर प्रसाद मिश्र आयुर्वेद शास्त्र में स्वर्ण पदक लब्ध आचार्य, और पं देवदत्त शास्त्री मुख्यत: हिंदी और संस्कृत के परम विद्वान थे, और शास्त्री जी की पुस्तकें चौखंबा प्रकाशन वाराणसी द्वारा प्रकाशित हुई जो आज विश्व के विभिन्न पुस्तकालयों में शोध हेतु संरक्षित है।
पं परमेश्वरदीन मिश्र के एक सुपुत्र हुए, जिनके नाम पं लक्ष्मी प्रसाद मिश्र के रूप में विख्यात हुआ, यह ज्योतिष शास्त्र के लब्ध प्रतिष्ठित विद्वान थे।
पं ईश्वर दीन मिश्र के एक सुपुत्री हुई, जिसका नाम ननकी था, और इनका उपायन संस्कार पूरब शरीरा के पाण्डेय वंश के साथ हुआ़।
पं श्रीधर मिश्र के तीन पुत्र और एक पुत्री हुए-
पं नर्मदा मिश्र
पं रामकिंकर मिश्र
पं शिवभूषण मिश्र
इनमें नर्मदा मिश्र जी कुछ शारीरिक कमी के कारण असामयिक मृत्यु हो गई, जबकि पं रामकिंकर मिश्र अथवा पं लल्लू मिश्र जी दीर्घसमय से वंशानुगत परम्परा में प्राप्त पौरोहित्य कर्म के साथ ही पीलिया आदि रोगों की बड़ी कारगर दवा देते हैं, तथा सम्पूर्ण स्थानीय क्षेत्र में इनका अत्यंत सम्मान है, यह इस वंश की वह विभूति है, जिसको "भीष्म पितामह" की संज्ञा प्रदान की जाती है, और संपूर्ण परिवार को इन पर गर्व है।
पं शिवभूषण मिश्र जी सामान्य रूप से ही शिक्षा ग्रहण किये और कृषि कार्य में संलग्न रहे, अब वृद्धावस्था के कारण घर पर ही आराम करते हैं।
इसी प्रकार पं हरिहर प्रसाद मिश्र के चार पुत्र और तीन पुत्रियां हुयीं-
श्रीमती कावेरी मिश्रा
श्रीमती वेदवती
पं देवब्रत मिश्र (प्रधानाध्यापक)
पं श्यामनारायण मिश्र (प्रवक्ता)
श्रीमती श्यामकली मिश्रा
पं देवसुमन मिश्र
पं सत्यव्रत मिश्र
श्रीमती कावेरी मिश्रा का विवाह कौशांबी में तुलसीपुर नामक ग्राम में श्री धर्मनारायण मिश्र के साथ हुआ, जो ग्राम विकास अधिकारी के पद पर आसीन रहे, और इनके तीन पुत्र हुए- आशुतोष मिश्र, आलोक मिश्र, राजीव मिश्र। श्री आलोक मिश्र जी इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रयागराज से स्नातक और पुनः ला(LLB) की पढ़ाई कर वर्तमान समय कोरीपुर नामक ग्राम में जमींदार के रूप में प्रसिद्ध हैं।
श्रीमती वेदवती या वेत्रा जी का विवाह अत्यंत प्रसिद्ध एवं भूसम्पन्न परिवार पूरब शरीरा के श्री शिवराम गर्ग के पुत्र श्री रमाकांत गर्ग के साथ हुआ जो हुबलाल महाविद्यालय में प्राचार्य और राष्ट्रपति सम्मान से पुरस्कृत हुए थे, और इनके पुत्र श्री दिनेश गर्ग सूचना विभाग, लखनऊ के निदेशक पद से सेवानिवृत्त हुए।
पं देवब्रत मिश्र जी भी सर्वप्रथम ग्रामीण शिक्षा प्राप्त कर पुनः इलाहाबाद से शिक्षक की शिक्षा प्राप्त कर सर्वप्रथम इलाहाबाद नगरपालिका और पुनः कौशांबी जनपद में अत्यंत ईमानदारी और कर्त्तव्यनिष्ठता से सेवा करते हुए प्रधानाध्यापक के पद से सेवानिवृत्त हुए, इनका स्वभाव अत्यंत सौम्य और सुमधुर है, इनका विवाह दारागंज के अत्यंत प्रसिद्ध और विद्वान परिवार मधुबनी मिश्रा के रूप में विख्यात पं श्रीधर की पुत्री श्रीमती मालती मिश्रा के साथ हुआ। इनके भाईयों में पं प्रमोद , पं लक्ष्मीकांत अत्यंत विद्वान ज्योतिषी के रुप में विश्व विख्यात तथा पं कैलाश नारायण मिश्र (बंटी गुरु) आदि भारत सरकार के उच्च पदस्थ अधिकारी रह चुके।
पं श्यामनारायण मिश्र जी ने प्रारंभिक शिक्षा गांव से पाकर उच्च शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रयागराज से लिया, जहां अत्यंत मेधा का परचम लहराते हुए आंग्ल, संस्कृत और हिन्दी का गहन अध्ययन कर पुनः दिलीप सिंह इंटर कालेज बाकरगंज कौशांबी में अंग्रेजी के प्रवक्ता रहे, और साथ ही ससम्मान पौरोहित्य कर्म भी करते रहे। इनका विवाह कौशांबी के अन्धावा में अत्यंत सम्मानित परिवार मिश्र वंश की श्रीमती मुन्नी मिश्रा के साथ हुआ।
श्रीमती श्यामकली मिश्रा जी का विवाह भावापुर इलाहाबाद के श्री भगवती प्रसाद पाण्डेय के साथ हुआ,जो ग्राम विकास अधिकारी थे। इनके एक पुत्र श्री राजकुमार पाण्डेय और इनके भी पुत्र श्री शुभम पांडेय है जो प्रतिष्ठित कंपनी में प्रबंधक के पद पर आसीन हैं।
पं देवसुमन मिश्र जी जो अपने त्यागी नाम की उपाधि से समलंकृत है यह भी अत्यंत मेधावी छात्र रहे, जिनकी शिक्षा भी इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रयागराज में हुई, कालान्तर में पुलिस विभाग की सेवा कुछ दिनों तक करने के बाद यह पुनः कृषि कार्य और पशुपालन के हेतु गांव चले आए। इनका विवाह टेवां के समीप कोटिया नामक गांव में तिवारी वंश की श्रीमती इन्दु जी के साथ हुआ।
पं सत्यव्रत मिश्र जी जो राजा साहब के नाम से विख्यात है यह महोदय संस्कृत शिक्षा हेतु भरवारी और पुनः क़ृषि कार्य हेतु गांव चले गए। इनका विवाह दानपुर के मिश्रा परिवार की श्रीमती विमला जी के साथ हुआ।
इसी प्रकार पं देवदत्त शास्त्री के एक पुत्र और चार पुत्रियां हुए-
पं उदयन मिश्र जो अपने सौन्दर्य की प्रतिभा हेतु प्रसिद्ध रहे, इलाहाबाद से शिक्षा दीक्षा ली, दुर्भाग्य से इनका निधन समय से पहले हो गया।
और इसी प्रकार पं लक्ष्मी प्रसाद मिश्र के एक पुत्र हुए-
पं सत्यदेव मिश्र यह भी विद्वत परिषद की शोभा के रुप में चतुर्दिक व्याप्त रहते हुए, सम्मानपूर्वक पौरोहित्य कर्म कराते रहे।
अब पूर्वोक्त पं शिवभूषण मिश्र के चार पुत्र हुए-
आचार्य राजकुमार मिश्र (सहायक अध्यापक)- यह आचार्य की उपाधि प्राप्तकर अध्यापन और पौरोहित्य कार्य को अत्यंत विनम्रता और कर्त्तव्यनिष्ठता से यापन कर रहे हैं। शील और विनय की महान मूर्ति का विवाह अन्धावा में श्रीमती सरोज मिश्रा के साथ हुआ।आचार्य राजकुमार मिश्र के दो पुत्र हुए-
स्व० शिवम मिश्र- अनन्य प्रतिभाशाली इस बालक का बाल्यपन की अवस्था में एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई।
सत्यम मिश्र
पं अनिल कुमार मिश्र (सहायक अध्यापक)- यह भी शास्त्री की शिक्षा लेकर अपने जनपद में ही शिक्षण कार्य कर रहे हैं। इनका विवाह हिसामबाद की रीता मिश्रा के साथ हुआ था, जिनका निधन हो चुका है।
श्रीमती जावित्री देवी- इनका विवाह पूरब शरीरा के पांडेय वंश में हुआ।
पं पंकज कुमार मिश्र- यह माननीय उच्च न्यायालय, प्रयागराज में व्यक्तिगत सेवा प्रदान करते हुए सम्मान पूर्वक अपने निज निवास प्रयागराज में निलंबित हैं, इनका विवाह श्रीमती पूनम जो कि कौशांबी जनपद के मुड़िया डोली नामक गांव की है, के साथ हुआ। पंकज मिश्र के तीन पुत्रियां हुयीं-
पूर्णिमा मिश्रा
पूज्यमा मिश्रा
शक्तिमा मिश्रा
पं रवि कुमार मिश्र- इन्होंने स्वकुलपरंपरा के योगक्षेम हेतु पौरोहित्य कर्म को अंगीकार करते हुए जीवन का निर्वहन करने लगे। इनका विवाह श्रीमती कल्पना मिश्रा के साथ हुआ जिनका मायका महेशपुर भरवारी है। पं रवि कुमार मिश्र जी के एक पुत्र और एक पुत्री हुए-
संकल्प मिश्र
वैष्णवी मिश्रा
 
पुनः पं देवब्रत मिश्र के चार पुत्र हुए-
पं उमेश मिश्र- इन्होंने प्रारंभिक शिक्षा ग्रामीण और नगर दोनों के अंचल में सम्मिलित रूप से लिया, क्योंकि इनकी मातृस्वसा(मौसी) श्रीमती प्रभावती मिश्रा जिनका विवाह स्व. श्री शिवशरण द्विवेदी (प्रवक्ता) जी से हुआ, और दुर्विपाक से बाल्यकाल में विधवा होने से नि:संतानता रुपी दु:ख से दूर रहने के लिए श्री उमेश मिश्र जी को दत्तक रुप में अंगीकार किया। बाद में श्री उमेश मिश्र जी उच्च शिक्षा हेतु चौधरी महादेव प्रसाद महाविद्यालय (CMP), इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रयागराज में प्रवेश लिया। कालान्तर में इन्होंने दुग्ध उत्पादन का व्यवसाय प्रारंभ कर उत्तर प्रदेश सरकार की पराग डेयरी के सदस्य हो गये। इनका विवाह प्रयागराज के बिरवल, घूरपुर गांव के अत्यंत प्रसिद्ध एवं जमींदार पाण्डेय परिवार में पं राघवेन्द्र पाण्डेय की सुपौत्री और केन्द्रीय कारागार में मुख्य आरक्षी पदासीन श्री रविदत्त पाण्डेय की पुत्री श्रीमती शालिनी जी के साथ हुआ, जो सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी से साहित्य विषय में आचार्या की शिक्षा ग्रहण कर वर्तमान समय में प्रधानमंत्री वित्तीय कोष से रानीपुर गांव में ही वस्त्र उद्योग का संचालन कर रही हैं। इनके अनुज श्री मुनीन्द्र कुमार पाण्डेय भारत सरकार के केन्द्रीय जांच ब्यूरो (CBI) विभाग में उच्च अधिकारी के रूप में पदस्थ हैं।
उमेश मिश्र के दो पुत्र और एक पुत्री हुए-
इंजी०स्तुति मिश्रा- इन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गांव से प्राप्तकर उत्तर प्रदेश प्राविधिक विश्वविद्यालय (UPTU) में इंजीनियरिंग स्नातक (B.tec) में प्रवेश लिया,इस समक्ष इलाहाबाद विश्वविद्यालय से शिक्षा शास्त्री (Bed) का प्रशिक्षण प्राप्त कर रहीं हैं।
डा. भास्कर मिश्र- ग्रामीण पद्धति में आठवीं तक शिक्षा ग्रहण कर पुनः यह राजकीय इंटरमीडिएट कालेज इलाहाबाद से सर्वोच्च अंकों एव प्रथम श्रेणी में हाईस्कूल एवं इंटरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उत्तर प्रदेश संयुक्त प्रवेश परीक्षा को उत्तीर्ण कर भेषज(Farmacy) की शिक्षा के लिए बुलन्दशहर के राजकीय संस्थान में प्रवेश लिया, किन्तु अन्त:करण की रोचकता न होने से उत्तर प्रदेश स्टेट मेडिकल फैकल्टी की आप्टोमेट्रिस्ट(Optometrist) पाठ्यक्रम में प्रवेश लिया, किन्तु पूर्वजों की विद्या आनुवंशिक होने से इन्होंने यहां भी त्यागकर पुनः इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रयागराज के स्नातक पाठ्यक्रम में प्रवेश लेकर प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण हुए, पुन: आंग्लभाषा(English) में परास्नातक (M.A) हेतु इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय नई दिल्ली तथा संस्कृत में परास्नातक (M.A) हेतु इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रयागराज की प्रवेश परीक्षा में सर्वोच्च अंक प्राप्त करने के बाद प्रवेश लिया, जिसमें संस्कृत की कक्षा में उत्कृष्ट(Top) अंक प्राप्त किए। इसी मध्य इन्होंने त्रिवेणिका संस्कृत परिषद द्वारा आयोजित व्यंजना शास्त्रार्थ की अन्तर्विश्वविद्यालीय प्रतिस्पर्धा में प्रथम स्थान प्राप्त किया। साथ ही मानव संसाधन विकास मंत्रालय भारत सरकार की विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) की राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (NET) की सहायक प्राध्यापक(Assistant Professor) और कनिष्ठ शोध अधिवृत्ति(JRF) परीक्षा को उत्तीर्ण करने के उपरांत इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रयागराज से शोध कार्य हेतु चयनित हैं। इन्होंने विज्ञान(Science), हिन्दी (Hindi) और अन्य विषयों का भी गहन अध्ययन किया और हिन्दी अंग्रेजी एवं संस्कृत भाषा को धाराप्रवाह बोलने में भी समर्थ हैं।
दिवाकर मिश्र- इन्होंने भी राजकीय इंटरमीडिएट कालेज से हाईस्कूल और इंटरमीडिएट परीक्षा उत्तीर्ण कर अभियांत्रिकी एवं ग्रामीण प्रौद्योगिकी शिक्षण संस्थान(IERT) की अभियांत्रिकी (Engineering) पाठ्यक्रम में प्रवेश लेकर वर्तमान समय में अध्ययनरत हैं।साथ ही यूपी बटालियन के नेशनल कैडेट कोर (NCC) के सी समूह के सदस्य हैं।
डा० राजशेखर मिश्र(फार्मासिस्ट)- इन्होंने इण्टरमीडिएट की शिक्षा गांव से प्राप्तकर मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज, स्वरुपरानी चिकित्सालय प्रयागराज से चिकित्सा पद्धति में भेषज(Farmacy) की शिक्षा ग्रहण कर वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश सरकार के अधीन मिर्जापुर जनपद में वरिष्ठ भेषजक(Chief Farmacist) पद पर आसीन हैं और यह अपने"भोला" नाम से जगत प्रसिद्ध है। इनका विवाह अत्यंत प्रतापगढ़ जनपद के संग्रामगढ नामक गांव के अत्यंत धनाढ्य परिवार में श्री अनुराग उपाध्याय (प्रवक्ता) की बहन श्रीमती नूतन जी से हुआ, जिन्होंने अवध विश्वविद्यालय से परास्नातक (M.A) और शिक्षाशास्त्री(Bed) की शिक्षा ग्रहण कर वर्तमान समय में प्रयागराज के निजी विद्यालयों में अध्यापन कार्य कर रही हैं। कांग्रेस दल के वरिष्ठ नेता एवं विधानसभा के सदस्य श्री प्रमोद तिवारी इनके ममेरे भाई और इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रयागराज के प्राणि विज्ञान विभाग (Zoology Department) की अध्यक्ष प्रोफेसर अनीता गोपेश इनकी बहन हैं। राजशेखर मिश्र जी की दो पुत्रियां हैं-
गौरी मिश्रा
पुण्या मिश्रा
पं गिरिजेश मिश्र- यह भी अत्यंत मेधा के धनी और सर्वोत्कृष्ट लेखन शैली से प्रभावित करने वाले रहे, वर्तमान समय में सम्भागीय परिवहन कार्यालय (RTO), मंझनपुर कौशांबी में व्यक्तिगत सेवा प्रदान कर रहे हैं। इनका विवाह फतेहपुर जनपद के मटिहा गांव के अत्यंत विद्वान एवं संस्कृतज्ञ पं हरिश्चंद्र त्रिपाठी की लड़की श्रीमती आरती जी के साथ हुआ। गिरिजेश मिश्र के दो पुत्र और एक पुत्री है
स्मृति मिश्रा
पुष्कर मिश्र
पद्माकर मिश्र
 
पं मनु मिश्र- अपने मृदुल स्वभाव से अत्यंत जनप्रिय एवं महान परिश्रमी तथा परिवार के प्रति पूर्ण निष्ठा से अहोरात्र संलग्न रहने वाले मनु मिश्र वर्तमान समय में अपने गांव में ही खाद्य पदार्थों का एक स्व-सामग्रालय(दुकान) रखकर और अपना स्वयं का कृषि कार्य करते हुए दुग्ध उत्पादन हेतु पशुपालन का कार्य भी कर रहे हैं।इनका विवाह प्रयागराज जनपद के सैदाबाद की मध्या मिश्रा के साथ हुआ, जिनकी एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई। मनु मिश्र के एक पुत्र है, जिसका नाम विभाकर मिश्र है।
और पं श्यामनारायण मिश्र के एक पुत्री हुई-
श्रीमती वसुधा मिश्रा- इनका विवाह तिल्हापुरमोड के त्रिपाठी वंश के पं राजकुमार त्रिपाठी के साथ हुआ जो वर्तमान समय में मध्य प्रदेश सरकार के शिक्षा विभाग में प्रवक्ता(Lecturer) पद पर आसीन हैं।
तथा पं देवसुमन मिश्र जी के एक पुत्री और एक पुत्र हुआ-
ज्योति मिश्रा- यह अभी इंटरमीडिएट संयंत्र पर अध्ययनरत हैं।
पं पारिजात मिश्र (शिवांशु)- यह भी इंटरमीडिएट में अध्ययन रत है।
तथा पं सत्यव्रत मिश्र के दो पुत्रियां और दो पुत्र हुए-
श्रीमती अचला मिश्रा- इनकी शारीरिक स्वास्थ्य में आयी कमी से अकस्मात मृत्यु हो गई।
श्रीमती पूजा मिश्रा- इनका विवाह ओसा मंझनपुर कौशांबी के शुक्ल परिवार के पं मुकेश शुक्ल के साथ हुआ जो शिक्षक पद पर आरुढ हैं।
पं सब्यसाची मिश्र- इन्होंने प्रारंभिक शिक्षा ग्रामीण अंचल से प्राप्तकर छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय कानपुर से विज्ञान विषय में स्नातक की शिक्षा प्राप्त कर पुनः साधारण शिक्षण कोर्स (B.T.C or D.el.ed) की शिक्षा प्राप्त कर शिक्षक बनने की प्रतीक्षा में है।इनका विवाह बलीपुर गांव की श्रीमती रंजना से हुआ!
पं विनायक मिश्र (लक्खा महराज)- वर्तमान समय में औद्योगिक प्रशिक्षण का अनुभव लें रहें हैं।
और पं सत्यदेव मिश्र जी के तीन पुत्र और दो पुत्रियां हुयीं-
पं रुपनारायण मिश्र- विद्वतकुल में उत्पन्न होने के फलस्वरूप इनके अन्त:करण में भी विद्या का प्रवाह था, इन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रयागराज से स्नातक में अपनी प्रतिभा का परचम लहराया और नगर निगम इलाहाबाद के निरीक्षक (Inspector) बनें, किंतु अध्यापन कार्य में रुचि के कारण त्यागपत्र देकर प्रयागराज के एक इंटर कालेज में प्रधानाचार्य के पद पर आरुढ हुए, वर्तमान समय में पौरोहित्य कार्य करते हुए यह अपने गांव में ही ससम्मान निवास कर रहे हैं इनका विवाह चित्रकूट जनपद की श्रीमती रमा के साथ हुआ।
पं इंद्र नारायण मिश्र- इन्होंने पौरोहित्य कर्म को जीवन का लक्ष्य निर्धारित कर अनेकों वर्ष तक मुम्बई महानगर पुनः गांव आकर निवास करने लगे। इनका विवाह श्रीमती कमला देवी के साथ हुआ।
पं हनुमान प्रसाद मिश्र- इन्होंने भी इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रयागराज से शिक्षा प्राप्त कर उत्तर प्रदेश सरकार की चीनी मिल में उच्च पद पर आसीन हुए, कालान्तर में प्रयागराज आकर झूंसी में ग्लोरियस पब्लिक स्कूल की स्थापना की। इनका विवाह श्रीमती रमा के साथ हुआ।
पुनः पं रुपनारायण मिश्र के तीन पुत्र और पुत्री हुए-
पं नागेन्द्र मिश्र (राजुल)- यह महोदय उदासीन पंचायती अखाड़ा कीडगंज प्रयागराज में प्रबन्धक के पद पर आसीन हुए, और वर्तमान समय में यही कार्यरत हैं। इनका विवाह चित्रकूट जनपद की श्रीमती मायादेवीसे हुआ, और इनके चार पुत्रियां और एक पुत्र हुए-
बीना मिश्रा
रश्मि मिश्रा
सौरभ मिश्र
तृप्ति मिश्रा
दीप्ति मिश्रा
पं धर्मेंद्र मिश्र ( गुद्दन)- अत्यंत प्रतिभाशाली यह महोदय प्रारंभिक जीवन में ही वैराग्योन्मुख होकर महात्मा हो गये, और अल्पायु में इस असार संसार का परित्याग कर दिया।
पं धीरेन्द्र मिश्र (सर्वोदय)-इन्होने ग्रामीण शिक्षा प्राप्त कर वर्तमान समय में भारतीय जीवन बीमा निगम में व्यक्तिगत सेवा प्रदान करने के साथ ही अपने गांव में कृषि कार्य में संलग्न रहते हैं। इनका विवाह चित्रकूट जनपद की श्रीमती कल्पना देवी से हुआ! इनके दो पुत्र और एक पुत्री है-
गौरव मिश्र
शरद मिश्र
नन्दिनी
तथा पं इन्द्र नारायण के भी दो पुत्र और पुत्री
पं अल्पेन्द्र मिश्र- यह इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक की शिक्षा प्राप्त कर वर्तमान समय में भारतीय रेल सेवा में कार्यरत हैं। साथ ही शिक्षा शास्त्री का प्रशिक्षण प्राप्त किया है, और शिक्षक पात्रता परीक्षा भी उत्तीर्ण हैं। इनका विवाह श्रीमती कामिनी से हुआ जो कौशांबी जनपद की है। इनके एक पुत्री है, जिसका नाम हेमा है।
पं कल्पेन्द्र मिश्र-यह गांव में ही कृषि कार्य करते हुए अपने कर्त्तव्य का पालन कर रहे हैं।
इसी प्रकार पं हनुमान प्रसाद मिश्र के दो पुत्र और एक पुत्री हुए-
ज्ञानेन्द्र मिश्र- यह नेहरू ग्राम भारती विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त कर अपने विद्यालय में शिक्षण कार्य कर रहे हैं।
इं राघवेन्द्र मिश्र- यह उत्तर प्रदेश प्राविधिक विश्वविद्यालय से स्नातक तक वर्तमान समय में किसी प्राइवेट कंपनी में कार्यरत हैं।
 
विशेष-यह जानकारी पूर्ण रूप से सत्य है, इस विषय वस्तु का प्रणयन करने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ है और मुझे स्वाभिमान है कि इस वंश में मेरा भी जन्म हुआ।
सादर धन्यवाद
भास्कर मिश्र
इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रयागराज। [[सदस्य:डा० भास्कर मिश्र|डा० भास्कर मिश्र]] ([[सदस्य वार्ता:डा० भास्कर मिश्र|वार्ता]]) 12:29, 12 अप्रैल 2020 (UTC)