"कथासरित्सागर": अवतरणों में अंतर

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[[File:Folio from Kathasaritsagara.JPG|thumb|कथासरित्सागर के एक संस्करण से 16वीं शताब्दी का एक फोलियो]]
'''कथासरित्सागर''', [[कथासाहित्य (संस्कृत)|संस्कृत कथा साहित्य]] का शिरोमणि ग्रंथ है। इसकी रचना कश्मीर में [[[[सोमदेव|सोमदेव भट्टराव]]]] ने त्रिगर्त अथवा कुल्लू कांगड़ा के राजा की पुत्री, कश्मीर के राजा अनंत की रानी सूर्यमती के मनोविनोदार्थ 1063 ई और 1082 ई. के मध्य [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]] में की।
 
सोमदेव रचित कथासरित्सागर [[गुणाढ्य]] की [[बृहत्कथा]] का सबसे बेहतर, बड़ा और सरस रूपांतरण है। वास्तविक अर्थों में इसे भारतीय कथा परंपरा का महाकोश और भारतीय कहानी एवं जातीय विरासत का सबसे अच्छा प्रतिनिधि माना जा सकता है। मिथक, इतिहास यथार्थ, फैंटेसी, सचाई, इन्द्रजाल आदि का अनूठा संगम इन कथाओं में है। ईसा लेकर मध्यकाल तक की भारतीय परंपराओं और सांस्कृतिक धाराओं के इस दस्तावेज में तांत्रिक अनुष्ठानों, प्राकेतर घटनाओं तथा गंधर्व, किन्नर, विद्याधर आदि दिव्य योनि के प्राणियों के बारे में ढेरों कथाएं हैं। साथ ही मनोविज्ञान सत्य, हमारी सामाजिक-आर्थिक स्थितियों तथा धार्मिक आस्थाओं की छवि और विक्रमादित्य, बैताल पचीसी, सिंहासन बत्तीसी, किस्सा तोता मैना आदि कई कथाचक्रों का समावेश भी इसमें हैं।