"वैज्ञानिक विधि": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Méthode scientifique.jpg|right|thumb|300px|वैज्ञानिक विधि (चित्र में टेक्स्ट [[फ्रांसीसी|फ्रेंच भाषा]] में है)। इसमें वैज्ञानिक विधि के मुख्य चार चरण बताए गए हैं- प्रयोग (सबसे नीचे), प्रेक्षण (बाएँ), सिद्धान्तीकरण (ऊपर), प्राकलनपूर्वकथन या प्रागुक्ति (दाएँ)]]
[[विज्ञान]], प्रकृति का विशेष ज्ञान है। यद्यपि मनुष्य प्राचीन समय से ही प्रकृति संबंधीसम्बन्धी ज्ञान प्राप्त करता रहा है, फिर भी विज्ञान अर्वाचीन काल की ही देन है। इसी युग में इसका आरंभआरम्भ हुआ और थोड़े समय के भीतर ही इसने बड़ी उन्नति कर ली है। इस प्रकार संसार में एक बहुत बड़ी क्रांति हुई और एक नई सभ्यता का, जो विज्ञान पर आधारित है, निर्माण हुआ।
 
ब्रह्माण्ड में होने वाली [[परिघटना]]ओं के परीक्षण का सम्यक् तरीका भी धीरे-धीरे विकसित हुआ। किसी भी चीज के बारे में यों ही कुछ बोलने व तर्क-वितर्क करने के बजाय बेहतर है कि उस पर कुछ [[प्रयोग]] किये जायें और उसका सावधानी पूर्वक निरीक्षण किया जाय। इस विधि के परिणाम इस अर्थ में सार्वत्रिक (युनिवर्सल) हैं कि कोई भी उन प्रयोगों को पुनः दोहरा कर प्राप्त आंकड़ों की जांच कर सकता है।
 
सत्य को असत्य व भ्रम से अलग करने के लिये अब तक आविष्कृत तरीकों में '''वैज्ञानिक विधि''' सर्वश्रेष्ठ है। संक्षेप में वैज्ञानिक विधि निम्न प्रकार से कार्य करती है:
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* (३) इस परिकल्पना के आधार पर कुछ भविष्यवाणी (prediction) करिये,
 
* (४) अब प्रयोग करके भी देखिये कि उक्त भविष्यवाणियांभविष्यवाणियाँ प्रयोग से प्राप्त आंकड़ों से सत्य सिद्ध होती हैं या नहीं। यदि आंकड़े और प्राक्कथन में कुछ असहमति (discrepancy) दिखती है तो परिकल्पना को तदनुसार परिवर्तित करिये,
 
* (५) उपरोक्त चरण (३) व (४) को तब तक दोहराइये जब तक सिद्धान्त और प्रयोग से प्राप्त आंकड़ों में पूरी सहमति (consistency) न हो जाए ।
 
[[तार्किक प्रत्यक्षवाद|तार्किक प्रत्यक्षवादियों]] का विचार था कि किसी सिद्धान्त के 'वैज्ञानिक' होने की कसौटी यह है कि उसे (कभी भी, किसी के द्वारा) जाँचा जा सके।<ref>Mach, Ernst (1905, 1926) 1976. ''Knowledge and error: sketches on the psychology of enquiry''. Dordrecht: Reidel.</ref><ref>Schlick, Moritz (1925) 1974. ''General theory of knowledge''. Vienna: Springer-Verlag.</ref><ref>Ayer A.J. 1936 [2nd ed 1946]. ''Language, truth and logic''. Gollancz, London.</ref> लेकिन [[कॉर्लकार्ल पॉपर]] का विचार था कि यह सोच गलत है। कॉर्ल पॉपर का कहना था कि कोई सिद्धान्त तब तक 'वैज्ञानिक सिद्धान्त' नहीं है, जब तक उस सिद्धान्त को किसी भी एक तरीके से गलत सिद्ध किया जा सके। <ref>Popper, Karl 1959. ''The logic of scientific discovery''. London & New York: Routledge Classics. {{ISBN|0-415-27844-9}}</ref><ref>Kuhn T.S. 1970. ''The structure of scientific revolutions''. 2nd ed, University of Chicago Press. p206 {{ISBN|0-226-45804-0}}</ref><ref name=Bunge>Bunge, Mario 1967. ''Scientific research''. Volume 1: The search for system; volume 2: The search for truth. Springer-Verlag, Berlin & New York. Reprinted as ''Philosophy of science'', Transaction, 1998.</ref><ref>Ziman, John 1978. ''Reliable knowledge: an exploration of the grounds for belief in science''. Cambridge University Press. {{ISBN|0-521-22087-4}}</ref>
 
किसी वैज्ञानिक सिद्धान्त या वैज्ञानिक परिकल्पना की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उसे [[मिथ्यापनीयता|असत्य सिद्ध करने की गुंजाइश]] (scope) होनी चाहिये। जबकि मजहबी मान्यताएं ऐसी होती हैं जिन्हे असत्य सिद्ध करने की कोई गुंजाइश नहीं होती। उदाहरण के लिये 'जो जीसस के बताये मार्ग पर चलेंगे, केवल वे ही स्वर्ग जायेंगे' - इसकी सत्यता की जांच नहीं की जा सकती।