"ऊदा देवी": अवतरणों में अंतर

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|name= उदा देवी पासी
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'''ऊदा देवी पासी''', एक भारतीय स्वतन्त्रता सेनानी थीं जिन्होने [[1857]] के [[प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम]] के दौरान भारतीय सिपाहियों की ओर से युद्ध में भाग लिया था। ये [[अवध]] के छठे [[अवध के नवाब|नवाब]] [[वाजिद अली शाह]] के महिला दस्ते की सदस्य थीं।<ref name="अड्डा">[http://blogs.bigadda.com/sum4913145/category/%E0%A4%8A%E0%A4%A6%E0%A4%BE-%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B5%E0%A5%80/ उदा देवी:२]। बिग अड्डा। २४ अक्टूबर २००९। शकील सिद्दीकी</ref> इस विद्रोह के समय हुई [[लखनऊ]] की घेराबंदी के समय लगभग 2000 भारतीय सिपाहियों के शरणस्थल [[सिकन्दर बाग़]] पर ब्रिटिश फौजों द्वारा चढ़ाई की गयी थी और [[16 नवंबर]] 1857 को बाग़ में शरण लिये इन 2000 भारतीय सिपाहियों का ब्रिटिश फौजों द्वारा संहार कर दिया गया था।<ref name="स्वतंत्र">[http://www.swatantraawaz.com/uda_devi_bsp.htm वीरांगना ऊदा देवी पासी को याद करने पर भी माया सरकार का प्रतिबंध]। स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम।</ref><ref name="जागरण">[http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttarpradesh/4_1_5947588.html बलिदान दिवस पर शिद्दत से याद की गई वीरांगना ऊदादेवी]। याहू जागरण। १६ नवम्बर २००९</ref>
 
इस लड़ाई के दौरान ऊदा देवी ने पुरुषों के वस्त्र धारण कर स्वयं को एक पुरुष के रूप में तैयार किया था। लड़ाई के समय वो अपने साथ एक बंदूक और कुछ गोला बारूद लेकर एक ऊँचे पेड़ पर चढ़ गयी थीं। उन्होने हमलावर ब्रिटिश सैनिकों को सिकंदर बाग़ में तब तक प्रवेश नहीं करने दिया था जब तक कि उनका गोला बारूद खत्म नहीं हो गया।
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वाजिद अली शाह ने इमारतों, बाग़ों, संगीत, नृत्य व अन्य कला माध्यमों की तरह अपनी सेना को भी बहुरंगी विविधता तथा आकर्षक वैभव दिया। उन्होंने अपनी पलटनों को तिरछा रिसाला, गुलाबी, दाऊदी, अब्बासी, जाफरी जैसे फूलों के नाम दिये और फूलों के रंग के अनुरूप ही उस पल्टन की वर्दी का रंग निर्धारित किया। परी से महल बनी उनकी मुंहलगी बेगम सिकन्दर महल को ख़ातून दस्ते का रिसालदार बनाया गया। स्पष्ट है वाजिद अली शाह ने अपनी कुछ बेगमों को सैनिक योग्यता भी दिलायी थी। उन्होंने बली अहदी के समय में अपने तथा परियों की रक्षा के उद्देश्य से तीस फुर्तीली स्त्रियों का एक सुरक्षा दस्ता भी बनाया था। जिसे अपेक्षानुरूप सैनिक प्रशिक्षण भी दिया गया। संभव है ऊदा देवी पहले इसी दस्ते की सदस्य रही हों क्योंकि बादशाह बनने के बाद नवाब ने इस दस्ते को भंग करके बाकायदा स्त्री पलटन खड़ी की थी। इस पलटन की वर्दी काली रखी गयी थी।<ref name="अड्डा"/>
 
ऊदा देवी, १६ नवम्बर १८५७ को 36 अंग्रेज़ सैनिकों को मौत के घाट उतारकर वीरगति को प्राप्त हुई थीं।<ref name="स्वतंत्र"/><ref name="जागरण"/> ब्रिटिश सैनिकों ने उन्हें जब वो पेड़ से उतर रही थीं तब गोली मार दी थी। उसके बाद जब ब्रिटिश लोगों ने जब बाग़ में प्रवेश किया, तो उन्होने ऊदा देवी का पूरा शरीर गोलियों से छलनी कर दिया। इस लड़ाई का स्मरण कराती ऊदा देवी पासी की एक मूर्ति सिकन्दर बाग़ परिसर में कुछ ही वर्ष पूर्व स्थापित की गयी है।
 
== उल्लेख ==