"वैदिक धर्म": अवतरणों में अंतर

कुछ जरूर जानकारियां इसमें जोड़ी है।
टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल एप सम्पादन Android app edit
→‎आत्मा की एकता: छोटा सा सुधार किया।
टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल एप सम्पादन Android app edit
पंक्ति 15:
वैदिक धर्म में आत्मा की एकता पर सबसे अधिक जोर दिया गया है। जो आदमी इस तत्व को समझ लेगा, वह किससे प्रेम नहीं करेगा? जो आदमी यह समझ जाएगा कि 'घट-घट में तोरा साँईं रमत हैं!' वह किस पर नाराज होगा? किसे मारेगा? किसे पीटेगा? किसे सताएगा? किसे गाली देगा? किसके साथ बुरा व्यवहार करेगा?
 
;वैदिक
<blockquote>
'''यस्मिन्सर्वाणि भूतानि आत्मैवाभूद्विजानतः।'''<br />'''तत्र को मोहः कः शोक एकत्वमनुपश्यतः ॥'''
</blockquote>
 
वेदों में हमें बहुत से प्राकृति की स्तुति और प्रार्थना के मंत्र मिलते हैं।
जो आदमी सब प्राणियों में एक ही आत्मा को देखता है, उसके लिए किसका मोह, किसका शोक?
वैदिक धर्म का मूल तत्व यही है। इस सारे जगत में ईश्वर ही सर्वत्र व्याप्त है। उसी को पाने के लिए, उसी को समझने के लिए हमें मनुष्य का यह जीवन मिला है। उसे पाने का जो रास्ता है, उसका नाम है धर्म।
 
धर्म के चार लक्षण
मनु महाराज ने धर्म के चार लक्षण बताए हैं:
 
<blockquote>
'''वेदः स्मृतिः सदाचारः स्वस्य च प्रियमात्मनः।'''<br />'''
एतच्चतुर्विधं प्राहुः साक्षाद् धर्मस्य लक्षणम्‌॥'''
</blockquote>
 
धर्म की कसौटी चार हैं :
* वेद,
* स्मृति,
* सदाचार तथा
* आत्मा को रुचने वाला आचरण
 
=== [[वेद]] ===
{{main|वेद}}
वेद चार हैं। हर वेद के चार विभाग हैं : [[संहिता]], [[ब्राह्मण]], [[आरण्यक]] और [[उपनिषद्]]
हिन्दू धर्म का मूल आधार है वेद। वेद का अर्थ है ज्ञान। संस्कृत की 'विद्' धातु से 'वेद' शब्द बना है। 'विद्' यानी जानना।
 
वेद को 'श्रुति' भी कहा जाता है। 'श्रु' धातु से 'श्रुति' शब्द बना है। 'श्रु' यानी सुनना। कहते हैं कि ऋषियों को अंतरात्मा में परमात्मा के पास से आता ज्ञान सुनाई पड़ा।
 
वेद चार हैं : ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद।
 
* [[ऋग्वेद]] : यह सबसे पुराना वेद है। इसमें 10 मंडल हैं और 10627 मंत्र। ऋग्वेद की ऋचाओं में देवताओं की प्रार्थना और स्तुतियाँ हैं।
* [[यजुर्वेद]] : इसमें 1975 मंत्र और 40 अध्याय हैं। इस वेद में अधिकतर यज्ञ के मंत्र हैं।
* [[सामवेद संहिता|सामवेद]] : इसमें 1875 मंत्र हैं। ऋग्वेद की ही अधिकतर ऋचाएँ हैं। इस संहिता के सभी मंत्र संगीतमय अर्थात गेय हैं।
* [[अथर्ववेद संहिता|अथर्ववेद]] : इसमें 5977 मंत्र और 20 कांड हैं। इसमें भी ऋग्वेद की बहुत-सी ऋचाएँ हैं।
चारों वेदों में कुल मिलाकर 20454 मंत्र हैं।
 
;वैदिक ऋषि
प्राचीनकाल में भारत देश में जो लोग ज्ञानी थे, आचार-विचार वाले थे, जिनका हृदय उदार था, जिनके विचार ऊँचे थे, उन्हें लोग 'ऋषि' कहा करते थे। 'सादा जीवन, उच्च विचार' उनका आदर्श था।
 
वे धर्म के गूढ़ विषयों पर चिंतन करते थे, सादा और पवित्र जीवन बिताते थे और समाज को सही रास्ता दिखाया करते थे। वैदिक साहित्य इन ऋषियों की ही पवित्र धरोहर है। 5000 साल पहले भी उससे लोगों को प्रेरणा मिलती थी और आज भी मिलती है।
 
;वैदिक देवता
 
वेदों में हमें बहुत से देवताओं की स्तुति और प्रार्थना के मंत्र मिलते हैं। इनमें मुख्य-मुख्य देवता ये हैं :
 
{| class="wikitable"
|-
!वेदों के देवतागण
|-
|<center>'''[[अग्नि]], [[वायु]], [[इन्द्र|इंद्र]], [[वरुण (देव)|वरुण]], [[मित्र]], [[अश्विनीकुमार (पौराणिक पात्र)|अश्विनीकुमार]], [[ऋतु]], [[मरुत्‌]] [[त्वष्ट्र|त्वष्टा]], [[सोम]], [[ऋभुः]], [[द्यौः]], [[पृथ्वी]], [[विष्णु]], [[पूषा]], [[सविता]], [[उषा]], [[आदित्य]], [[यम]], [[रुद्र]], [[सूर्य]], [[बृहस्पति]], [[वाक्‌]], [[काल]], [[अन्न]], [[वनस्पति]], [[पर्वत]], [[पर्जन्य]], [[धेनु]], [[पितृ]], [[मृत्यु]], [[आत्मा]], [[औषधि]], [[अरण्य]], [[श्रद्धा]], [[शचि]], [[अदिति]], [[हिरण्यगर्भ]], [[विश्वकर्मा]], [[ब्रह्मा|प्रजापति]], [[पुरुष]], [[आपः]], [[श्री]] [[सीता]], [[सरस्वती]]'''।</center>
|}
 
कभी तो हम शरीर को मनुष्य कहते हैं, कभी उसकी आत्मा को। उसी तरह वैदिक ऋषि भी दो रूपों में देवताओं की प्रार्थना करते थे। कभी जड़ पदार्थ के रूप में, कभी उस जड़ के भीतर रहने वाले चेतन परंपरा के रूप में। जैसे- 'सूर्य' शब्द से कभी उनका आशय होता था उस तेज चमकते हुए गोले से, जिसे हम 'सूर्य' कहकर पुकारते हैं।
 
कभी 'सूर्य' से उनका आशय होता था, सूर्य के रूप में प्रकाशमान परमात्मा से। ऋषियों का ऐसा विश्वास था कि एक ही महान सत्ता नाना देवताओं के रूप में बिखरी है। उसी की वे स्तुति करते थे, उसी की प्रार्थना। उसी की वे उपासना करते थे। उसी को प्रसन्न करने के लिए वे यज्ञ करते थे।
 
=== मंत्रों का सौंदर्य ===
 
वेद के मंत्रों में सुंदरता भरी पड़ी है। वैदिक पंडित जब स्वर के साथ वेद मंत्रों का पाठ करते हैं, तो चित्त प्रसन्न हो उठता है। जो भी सस्वर वेदपाठ सुनता है, मुग्ध हो उठता है।
 
इतना ही नहीं, ऋचाओं में जो अर्थ भरा है, वह तो उससे भी सुंदर है। उनमें जो भाव भरे हैं, वे मनुष्य को ऊपर उठाने वाले हैं। समाज को ऊपर उठाने वाले हैं। उनसे आत्मा का भी कल्याण होता है, समाज का भी।
 
=== कर्म, ज्ञान और उपासना ===
 
वेदों के मुख्य रूप से तीन भाग हैं :
1) कर्मकाण्ड, 2) ज्ञानकाण्ड और 3) उपासनाकाण्ड
 
'''कर्मकाण्ड''' में यज्ञ कर्म दिया गया है, जिससे यज्ञ करने और कराने वाले को लोक-परलोक में सुख मिले।
 
'''ज्ञानकाण्ड''' में परमात्मा और आत्मा का तत्व और लोक-परलोक का रहस्य बताया गया है।
 
'''उपासनाकाण्ड''' में ईश्वर-भजन की विधि बताई गई है। इससे मनुष्य को लोक-परलोक में सुख मिल सकता है और ईश्वर की प्राप्ति हो सकती है।
 
वेद के अंतर्गत चार विभाग हैं:
1) संहिता, 2) ब्राह्मण, 3) आरण्यक और 4) उपनिषद् |
 
वेदों के मूल पाठ को संहिता कहते हैं। यह चारों वेदों के अलग-अलग पाठ हैं।
 
चारों वेदों की कई शाखाएं हो चुकी हैं और उन सभी शाखाओं के अपने-अपने ब्राह्मण, आरण्यक तथा उपनिषद रहे हैं जिनमें से अधिकाँश आजकल अनुपलब्ध हैं।
 
ब्राह्मण ग्रंथों में मुख्य रूप से यज्ञों की चर्चा है। इसमें वेदों के मंत्रों की व्याख्या के साथ-साथ यज्ञों के विधान का विस्तार से वर्णन है।
 
मुख्य ब्राह्मण 4 हैं :
* ऐतरेय,
* तैत्तिरीय,
* शतपथ तथा
* गोपथ|
 
;आरण्यक में कहा है
वेदों की रचना ऋषियों ने की है। वे रहते थे वनों में, जंगलों में। वन को संस्कृत में कहते हैं 'अरण्य'। अरण्यों में बने हुए ग्रंथों का नाम पड़ गया 'आरण्यक'।
 
मुख्य आरण्यक पाँच हैं :
# ऐतरेय,
# शांखायन,
# बृहदारण्यक,
# तैत्तिरीय और
# तवलकार।
 
=== उपनिषद ===
{{main|उपनिषद}}
वेद के अंतिम भाग का नाम है उपनिषद्। उपनिषद् शब्द बना है सद् धातु से। सद् का अर्थ होता है नाश होना, और शिथिल हो जाना। उपनिषद् का अर्थ है ब्रह्मविद्या। ब्रह्मविद्या से अविद्या का नाश होता है, जगत के बंधन शिथिल हो जाते हैं, आनंद मिलता है और जन्म-मरण का दुःख छूट जाता है।
 
;मुख्य उपनिषद्
सभी वेदों की अपनी-अपनी सभी शाखासम्बद्ध उपनिषदें होती हैं। आजकल 108 उपनिषदें मिलती हैं। जिसमे आचार्य शंकर लगायत विद्वानके भाष्य मिलते ऐसे मुख्य उपनिषदें १० हैं- ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुंडक, मांडूक्य, तैत्तिरीय, ऐतरेय, छांदोग्य, बृहदारण्यक और श्वेताश्वरको भी प्रमुख मानाजाता है।
 
=== स्मृति ===
{{main|स्मृति }}
;मुख्य स्मृतियाँ हैं :
# मनु स्मृति (मानव धर्मशास्त्र),
# याज्ञवल्क्य स्मृति,
# अत्रि स्मृति,
# विष्णु स्मृति,
# आपस्तम्ब स्मृति,
# पाराशर स्मृति,
# व्यास स्मृति और
# वशिष्ठ स्मृति।
 
== दीक्षा और तप ==