"रामभद्राचार्य": अवतरणों में अंतर
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मेरे गिरिधारी जी से काहे लरी ॥ <br
तुम तरुणी मेरो गिरिधर बालक काहे भुजा पकरी ॥ <br
सुसुकि सुसुकि मेरो गिरिधर रोवत तू मुसुकात खरी ॥ <br
तू अहिरिन अतिसय झगराऊ बरबस आय खरी ॥ <br
गिरिधर कर गहि कहत जसोदा आँचर ओट करी ॥ <br
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महाघोरशोकाग्निनातप्यमानं पतन्तं निरासारसंसारसिन्धौ। <br
अनाथं जडं मोहपाशेन बद्धं प्रभो पाहि
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{{Cquote|हे सर्वसमर्थ प्रभु, सेवक के क्लेशों को हरनेवाले! मैं इस महाघोर शोक की अग्नि द्वारा तपाया जा रहा हूँ, निरासार संसार-सागर में गिर रहा हूँ, अनाथ और जड़ हूँ और मोह के पाश से बँधा हूँ, मेरी रक्षा करें।}}
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पय अहार फल खाइ जपु राम नाम षट मास। <br
सकल सुमंगल सिद्धि सब करतल तुलसीदास ॥ <br
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{{Cquote|केवल दूध और फलों का आहार लेते हुए छः महीने तक राम नाम जपो। तुलसीदास कहते हैं कि ऐसा करने से सारे सुन्दर मंगल और सिद्धियाँ करतलगत हो जाएँगी।}}
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=== अयोध्या मसले में साक्ष्य ===
जुलाई २००३ में जगद्गुरु रामभद्राचार्य [[इलाहाबाद उच्च न्यायालय]] के सम्मुख [[अयोध्या विवाद]] के अपर मूल अभियोग संख्या ५ के
== जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय ==
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२०वी शताब्दी में वाल्मीकि रामायण और महाभारत का विभिन्न प्रतियाँ के आधार पर सम्पादन और प्रामाणिक प्रति ({{lang-en|critical edition}}) का मुद्रण क्रमशः बड़ौदा स्थित [[:en:Maharaja Sayajirao University of Baroda#Oriental Institute|महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय]] और पुणे स्थित [[:en:Bhandarkar Oriental Research Institute|भण्डारकर प्राच्य शोध संस्थान]] द्वारा किया गया था,<ref>{{cite web | language=अंग्रेज़ी | title = The Mahabharata | url = http://www.bori.ac.in/mahabharata.htm | publisher=भण्डारकर प्राच्य शोध संस्थान | accessdate = अप्रैल २५, २०११}}</ref><ref>{{cite book | pages=पृष्ठ xxv | chapter=Introduction | title = Critical Inventory of Ramayana Studies in the World: Indian Languages and English | first=के | last=कृष्णमूर्ति | year=१९९२ | publisher=साउथ एशिया बुक्स | id=ISBN 978-81-7201-100-0}}</ref> स्वामी रामभद्राचार्य बाल्यकाल से २००६ ई तक रामचरितमानस की ४००० आवृत्तियाँ कर चुके थे।<ref name="rcmtp-prologue"/> उन्होंने ५० प्रतियों के पाठों पर आठ वर्ष अनुसन्धान करके एक प्रामाणिक प्रति का सम्पादन किया।<ref name="toi-fia"/> इस प्रति को तुलसी पीठ संस्करण के नाम से मुद्रित किया गया।
आधुनिक प्रतियों की तुलना में तुलसी पीठ प्रति में मूलपाठ में कई स्थानों पर
# गीता प्रेस सहित कईं आधुनिक प्रतियाँ २ पंक्तियों में लिखित १६-१६ मात्राओं के चार चरणों की इकाई को एक चौपाई मानती हैं, जबकि कुछ विद्वान एक पंक्ति में लिखित ३२ मात्राओं की इकाई को एक चौपाई मानते हैं।<ref>{{cite book | title = तुलसी जन्म भूमि: शोध समीक्षा | first=राम गणेश | last=पाण्डेय | publisher=भारती भवन प्रकाशन | year=२००८ | edition=संशोधित एवं परिवर्धित संस्करण | location=चित्रकूट, उत्तर प्रदेश, भारत | origyear=प्रथम संस्करण २००३ | quote=हनुमान चालीसा ... इसकी भाषा अवधी है। दोहा-चौपाई छन्द हैं। इसमें ४० चौपाइयाँ और २ दोहे हैं। | pages=पृष्ठ ५४}}</ref> रामभद्राचार्य ने ३२ मात्राओं की एक चौपाई मानी है, जिसके समर्थन में उन्होंने [[हनुमान चालीसा]] और [[आचार्य रामचन्द्र शुक्ल]] द्वारा [[पद्मावत]] की समीक्षा के उदाहरण दिए हैं। उनके अनुसार इस व्याख्या में भी चौपाई के चार चरण निकलते हैं क्यूंकि हर १६ मात्राओं की अर्धाली में ८ मात्राओं के बाद यति है। परिणामतः तुलसी पीठ प्रति में चौपाइयों की गणना फ़िलिप लुट्गेनडॅार्फ़ की गणना जैसी है।<ref>{{cite book | year=१९९१ | title = The Life of a Text: Performing the 'Ramcaritmanas' of Tulsidas | last=लुट्गेनडॅार्फ़ | first=फ़िलिप | publisher=कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय प्रेस | place=बर्कली, कैलिफोर्निया, संयुक्त राज्य अमरीका | id=ISBN 978-0-520-06690-8 | chapter=The Text and the Research Context | pages=१४}}</ref>
# कुछ अपवादों (पादपूर्ति इत्यादि) को छोड़कर तुलसी पीठ की प्रति में आधुनिक प्रतियों में प्रचलित कर्तृवाचक और कर्मवाचक पदों के अन्त में उकार के स्थान पर अकार का प्रयोग है। रामभद्राचार्य के मतानुसार उकार का पदों के अन्त में प्रयोग त्रुटिपूर्ण है, क्यूंकि ऐसा प्रयोग अवधी के स्वभाव के विरुद्ध है।
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