"उशिकु दायबुत्सु बुद्ध प्रतिमा": अवतरणों में अंतर

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{{स्रोत कम|date=मई 2019}}
<h2>
{{Infobox historic site
<span style="color: red; font-size: x-large;">आर्यों का आगमन और वैदिक युग</span></h2>
| name = उशिकु दायबुत्सु बुद्ध
<h3>
| image = Ushiku Daibutsu (4277330188).jpg
<span style="color: orange;">&nbsp;1.आर्या का मन निवास स्थान</span></h3>
| caption = गौतम बुद्ध
<h3>
| location =[[:en:Ushiku, Ibaraki|उशिकु, इबारकी]], [[जापान]]
<span style="color: orange;">&nbsp;2. ऋग्वेदिक वर्णन</span></h3>
| coordinates =
<h3>
| locmapin =
<span style="color: orange;">&nbsp;3.जनजातीय संघर्ष व राजव्यवस्था</span></h3>
| map_caption =
<h3>
| height = {{plainlist |
<span style="color: orange;">4.उत्तर वैदिक काल</span><br />&nbsp; &nbsp; &nbsp; <span style="color: lime;">&nbsp; &nbsp;a&nbsp; &nbsp; विभिन्न वेदों की रचना<br />&nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp;b&nbsp; &nbsp;राजनीतिक सामाजिक व धार्मिक संगठन</span></h3>
* {{Convert|100|m|ft}}
<span style="font-size: x-large;"></span><br />
* आधार को जोड़कर: {{Convert|120|m|ft}}
<br />
}}
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
| sculptor =
<a href="https://1.bp.blogspot.com/-xqxLCMNHydc/XplxFRFDtGI/AAAAAAAAAcY/qZZBH6Kvqz8eZPy21HApV_YEye_KMiOWACLcBGAsYHQ/s1600/images.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="वैदिक काल" border="0" data-original-height="203" data-original-width="248" height="327" src="https://1.bp.blogspot.com/-xqxLCMNHydc/XplxFRFDtGI/AAAAAAAAAcY/qZZBH6Kvqz8eZPy21HApV_YEye_KMiOWACLcBGAsYHQ/s400/images.jpg" title="वैदिक काल" width="400" /></a></div>
| beginning_label = समर्पित
<br />
| beginning_date = [[गौतम बुद्ध]]
<h2>
| designation1_free1name = निर्माण
<u><span style="color: red;">मूल निवास स्थान और पहचान</span></u></h2>
| designation1_free1value = 1993
<br />
| governing_body =
आर्यों का मूल निवास आल्प्स पर्वत के पूर्वी क्षेत्र में।<br />
}}
जो यूरेशिया कहलाता है बतलाया जाता है। हिंद-आर्य मध्य<br />
'''उशिकु दायबुत्सु''' [[जापान]] के उशिकु शहर में स्थित भगवान [[गौतम बुद्ध]] की यह विशालकाय मूर्ति 1993 में बनाई गई थी। उशिकु दायबुत्सु नाम से पहचानी जाने वाली इस मूर्ति की ऊंचाई 120 मीटर (390 फ़ुट) है। यह मुर्ति 10 मीटर (33 फ़ुट) आधार और 10 मीटर [[कमल]]मंच पर सामील है।<ref>[http://www.iijnet.or.jp/am/Eindex.html Usiku Daibutsu|| Usiku Jyoen |] {{webarchive |url=https://web.archive.org/web/20081012230108/http://www.iijnet.or.jp/am/Eindex.html |date=October 12, 2008 }}</ref> यह दुनिया में शीर्ष तीन सबसे ऊंची मूर्तियों में से एक है।
एशिया से भारत की ओर आए। यह बात आनुवांशिक साक्ष्य<br />
 
के आधार पर कही जा सकती है। भारत में आर्य भाषाभाषियों<br />
एक लिफ्ट आगंतुकों को 85 मी (279 फ़ुट) एक अवलोकन मंजिल तक ले जाता है। इस प्रतिमा में [[अमिताभ बुद्ध]] को दर्शाया गया है और यह [[पीतल]] से बनी है। यह भी उशुकी अर्काडिया (अमिदा की चमक और करुणा असल में विकास और रोशन क्षेत्र) के रूप में जाना जाता है। यह [[:en:Shinran Shonin|शिनरन]], [[बौद्ध धर्म]] के जुडो शिन्शु (浄土 真宗) या "सत्य पवित्र भूमि सम्प्रदाय" के संस्थापक के जन्म के उपलक्ष्य में बनाया गया था।<ref>{{cite web|url=http://www.mustlovejapan.com/subject/ushiku_daibutsu/|title=Ushiku Daibutsu|publisher=Must Love Japan}}</ref>
का आगमन 1500 ई. पू. से कुछ पहले हुआ।<br />
<br />
<br />
<h2>
<u><span style="background-color: white; color: red;">ऋग्वैदिक वर्णन</span></u></h2>
भारत में आर्यों की जानकारी ऋग्वेद से मिलती है, जो<br />
हिंद-यूरोपीय भाषाओं का सबसे पुराना ग्रंथ है। इस वेद में<br />
"आर्य" शब्द का उल्लेख 36 बार है। इसमें दस मंडल या<br />
भाग है, जिनमें मंडल 2 से 7 तक प्राचीनतम अंश है। प्रथम<br />
और दशम मंडल सबसे बाद में जोड़े गए मालूम होते हैं।<br />
<br />
ऋग्वेद की अनेक बातें अवेस्ता से मिलती हैं। अवेस्ता<br />
ईरानी भाषा का प्राचीनतम ग्रंथ है। दोनों ग्रंथों में बहुत से<br />
देवताओं और सामाजिक वर्गों के भी नाम समान है।<br />
नदी : सिंधु आर्यों की सबसे प्रमुख नदी है, जिसका उन्होंने<br />
बार-बार उल्लेख किया है। उनके द्वारा उल्लिखित दूसरी नदी।<br />
सरस्वती है। जिसे नदीतम अर्थात सर्वश्रेष्ठ नदी कहा गया है।<br />
&nbsp;इसकी पहचान हरियाणा और राजस्थान में घग्घर तथा हाकरा<br />
के सूखे स्रोतों से की जाती है। परंतु ऋग्वेद में की गई<br />
सरस्वती की चर्चा से यह लगता है कि यह अवेस्ता में<br />
उल्लिखित दक्षिण अफगानिस्तान में हरख्खति (आधुनिक<br />
हेलमंद) नदी है।<br />
<br />
<h2>
<span style="color: red;">जनजातीय संघर्ष</span></h2>
<br />
<h3>
<span style="color: orange;">भरत और त्रित्सु</span></h3>
&nbsp;आर्यों के शासक वंश थे और<br />
पुरोहित वसिष्ठ दोनों वशों के समर्थक थे। बाद में चलकर इस<br />
देश का नाम इसी भरत कुल के आधार पर भारतवर्ष पड़ा।<br />
आर्य लोग हर जगह जीतते गए क्योंकि उनके पास अश्वचालित<br />
रथ थे।<br />
<br />
भरत राजवंश को दस राजाओं के साथ विरोध था।<br />
जिनमें पांच आर्य-जनों के प्रधान थे और शेष आर्येतर जनों के।<br />
भरत और दस राजाओं के बीच जो लडाई हुई वह दाशराज<br />
युद्ध (दस राजाओं के बीच लड़ाई) के रूप में विदित है।।<br />
<br />
यह युद्ध परूष्णी नदी के तट पर हुआ, जिसकी<br />
पहचान आज की रावी नदी से की जाती है। इसमें सुदास की<br />
जीत हुई और इस प्रकार भरतों की प्रभुता कायम हुई। पराजित<br />
जनों में पुरू जन सबसे महान थे।<br />
कालांतर में भरतों और पुरूओं के बीच मैत्री हो गई और<br />
दोनों ने मिलकर नया शासक कुल बनाया जो कुरू के नाम<br />
से प्रसिद्ध हुआ। फिर कुरू जनों ने पांचालों के साथ मिल<br />
कर उच्च गंगा मैदान में अपना संयुक्त राज्य स्थापित किया।<br />
ऋग्वेद में गाय और सांड़ की इतनी चर्चा है कि ऋग्वैदिक<br />
आर्या का मुख्य रूप से पशुचारक कहा जा सकता है। उनकी<br />
अधिकांश लड़ाइयां गाय को लेकर हुई है।<br />
तांबे या कासे के अर्थ में 'अयस्' शब्द का प्रयोग से प्रकट<br />
होता है कि उन्हें धातुकर्म की जानकारी थी।<br />
<h3>
<span style="color: orange;">भगवानपुरा :</span></h3>
&nbsp;हाल में हरियाणा में भगवानपुरा नामक स्थल<br />
की और पंजाब में तीन स्थलों की खुदाई हुई है। भगवानपुरा<br />
में प्राप्त वस्तुओं की तिथि 1600 ई. पू. से 1000 ई. पू. तक<br />
रखी गई अं. यही माटे तोर पर ऋानंद क काल भी है।<br />
<br />
<br />
<h2>
<span style="color: red;">जनजातीय राज्यव्यवस्था</span></h2>
<br />
ऋग्वैदिक काल ग अयों का प्रशाच-तंत्र कबीले के<br />
प्रधान के हाधा नलता था। क्योंकि वही युद्ध का सफल नेतत्व<br />
करता था। वह राजन् (अथात् राजा) कहलाता था। प्रतीत<br />
होता है कि ऋग्वैदिक काल में राजा का पद आनुवांशिक हो<br />
चुका था।<br />
<br />
<h3>
<span style="color: orange;">पुरोहित :&nbsp;</span></h3>
दैनिक प्रशासन में कुछ अधिकारी राजा को<br />
सहायता करते थे। सबसे महत्वपूर्ण अधिकारी पुरोहित होता<br />
था। ऋग्वेद काल में वसिष्ठ और विश्वामित्र दो महान<br />
पुरोहित हुए। लोगों को आर्य बनाने के लिए विश्वामित्र ने<br />
गायत्री मंत्र की रचना की।<br />
<br />
<h3>
<span style="color: orange;">वाज्रपति</span></h3>
&nbsp;चारागाह या बड़े जत्थे का प्रधान वाजपति<br />
कहलाता था। वहीं परिवारों के प्रधानों को जो कुलपा<br />
कहलाते थे, अथवा लड़ाकू दलों के प्रधानों का, जो<br />
ग्रामणी-कहलाते थे. साथ करके युद्ध में ले जाला था।<br />
सभा, समिति, विदथ, गण : ऋग्वेद में कबीलों या कुलों<br />
के आधार पर बनं बहुत से संघटनों के उल्लेख मिलते हैं, जैसे<br />
सभा. समिति, विदध गण। वाग्वैदिक काल में स्त्रियां भी सभा<br />
और विदथ में भाग लेती थी।<br />
<br />
ऋग्वेद में <a href="https://indiannewsuk.blogspot.com/?m=1">नियोग-प्रथा और विधवा-विवाह के प्रचलन</a><br />
का भी आभाम मिलता है। <a href="https://indiannewsuk.blogspot.com/?m=1">बाल-विवाह</a> का कोई उदाहरण<br />
नहीं है। जान पड़ता है कि ऋग्वैदिक काल में सोलह-सत्रह<br />
वर्ष की आयु में विवाह होता था।<br />
<br />
<h3>
<span style="color: orange;">ऋग्वैदिक देवता:&nbsp;</span></h3>
ऋग्वेद में सबसे अधिक प्रतापी था<br />
देवता इंद्र है, जिन्हें पुरंदर अथांत किले को तोड़ने वाला कहा अ<br />
गया है। इंद्र पर <a href="https://indiannewsuk.blogspot.com/?m=1">250 सूक्त</a> है।<br />
<a href="https://indiannewsuk.blogspot.com/?m=1">अग्नि का दूसरा स्थान है।</a> उस पर 200 सूक्त है। अग्नि<br />
की उपासना न केवल भारत में अपतु इरान में भी जागृत रही<br />
<br />
<a href="https://indiannewsuk.blogspot.com/?m=1">वरूण का तीसरा स्थान है </a>जो जल या समूद्र का<br />
देवता माना गया है उस ऋतु अर्थात् प्राकृतिक संतुलन<br />
रक्षक कहा गया है और समझा जाता है कि जगत मे<br />
घटना होती है वह उसी की इच्छा का परिणम है।<br />
सोम वनस्पतियों का अधिपति माना गया।<br />
<br />
देवताओं में कुछ देविया है, जैसे अदिति और उषा, जो<br />
प्रभात समय के प्रतिरूप है।<br />
<span style="background-color: yellow;"><a href="https://indiannewsuk.blogspot.com/?m=1">सहिता :&nbsp; </a>&nbsp;</span>वैदिक सूकतों या मत्रा के संग्रह को साहिता कहते<br />
है। <a href="https://indiannewsuk.blogspot.com/?m=1">ऋग्वेद संहिता सबसे पराना वैदिक ग्रंथ</a> है।<br />
<span style="background-color: yellow; color: blue;">सामवेदः</span>&nbsp; &nbsp;गाने के लिए ऋग्वेदिक सूक्तों को चुनकर धुन<br />
में बाधा गया और इस पनुर्विन्यस्त संकलन का नाम सामवेद<br />
सहिता पड़ा।<br />
<span style="background-color: yellow;">यजुर्वेद</span> में केवल ऋचाएं ही नहीं, उन्हें गाते समय<br />
किए जाने वाले अनुष्ठान भी दिए गए है। इन अनुष्ठानों से उस<br />
सामाजिक और राजनीतिक परिस्थिति का परिचय मिलता है<br />
अनुष्ठानों का उद्भव हुआ।<br />
<span style="background-color: yellow;">अथर्ववेद</span> में विपत्तियों और व्याधियों के निवारण के लिए<br />
तंत्र मंत्र संगृहीत हैं। इसमें आए तथ्यों से आर्येतर लोगों के<br />
विश्वासों और रूढ़ियों का पता लगता है।<br />
<a href="https://indiannewsuk.blogspot.com/?m=1"><span style="background-color: yellow;">ब्राह्मण :।</span>&nbsp; &nbsp;</a>वैदिक सहिताओं के बाद काई ग्रंथ लिखे गए<br />
जिन्हें ब्राह्मण कहते हैं। ये सभी उत्तरकालीन वैदिक ग्रंथ<br />
लगभग 1000-500 ई. पू. में उतरी गया के मैदान में रचे<br />
गए।<br />
600 ई. पू. के आसपास उपनिषदो का सकलन हुआ<br />
था। इन दार्शनिक ग्रंथा में कमकाड की निंदा की गई और<br />
यथार्थ विश्वास एवं ज्ञान को महत्व दिया गया।<br />
<br />
<h2>
<span style="color: red;">राजनीतिक संगठन</span></h2>
उत्तर वैदिक काल में ऋग्वेदिक जनता वाली<br />
सभा-समितियों के दिन लद गए और उनकी जगह पर राजकीय<br />
प्रभुत्व आ गए।<br />
अब सभा में स्त्रियों का प्रवेश निषिद्ध हो गया और<br />
कुलीनों तथा ब्राह्मणां का प्राबल्य हो गया।<br />
<br />
<h2>
<span style="color: red;">सामाजिक संगठन</span></h2>
उत्तर वेदिक काल का समाज चार वर्णों में विभक्त<br />
था- ब्राह्मण, राजन्य या क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र। यज्ञ का<br />
अनुष्ठान अत्यधिक बढ़ गया था जिससे ब्राह्मणों की शक्ति में<br />
अपार वृद्धि हुई।<br />
<br />
<br />
<div>
<div>
<h3>
<span style="background-color: white; color: orange;">गोत्र-प्रथा</span>:&nbsp;</h3>
&nbsp;उत्तर वैदिक काल में गोत्र-प्रथा स्थापित</div>
<div>
हुई। गोत्र शब्द का मूल अर्थ है गोष्ठ या वह स्थान जहां</div>
<div>
समूचे कुल का गोंधन पाला जाता था. परतु बाद मे इसका</div>
<div>
अर्थ एक ही मूल पुरूष से उत्पन्न लोगो का समुदाय हो</div>
<div>
गया।</div>
<div>
<h3>
<span style="color: orange;">चार आश्रम</span> :&nbsp;</h3>
&nbsp;वैदिक उत्तर&nbsp; काल के ग्रंथों में हमें चार</div>
<div>
आश्रम स्पष्ट दिखाई देते हैं:- ब्रह्मचर्य या छात्रावस्था,</div>
<div>
गार्हस्थ या गृहस्थावस्था, वानप्रस्थ या वनवासावस्था और</div>
<div>
संन्यास या सांसारिक जीवन से विरत होकर रहने की</div>
<div>
अवस्था।</div>
</div>
<div>
<br /></div>
<div>
<h2>
<span style="color: red;">धार्मिक संगठन</span></h2>
<div>
देवताओं में दो सबसे बड़े दंबता इंद्र और अग्नि अब</div>
<div>
उतने प्रमुख नहीं रहे। इनकी जगह उत्तर वैदिक देव-मंडल में</div>
<div>
सृजन के देवता प्रजापति को सर्वोच्च स्थान मिला।</div>
<div>
<a href="https://indiannewsuk.blogspot.com/?m=1">पशुओं के देवता रूद्र</a> ने उत्तर वैदिक काल में महंता</div>
<div>
पाई। देवताओं के प्रतीक के रूप मे कुछ वस्तुओं को भी</div>
<div>
पूजा प्रचलित हुई।</div>
<div>
<a href="https://indiannewsuk.blogspot.com/?m=1">यज्ञ</a> करना कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गया और यज्ञ</div>
<div>
के सार्वजनिक तथा घरेलू दोनां रूप प्रचलित हुए। यज्ञ में</div>
<div>
बड़े पैमाने पर पशुवलि दी जाती थी <a href="https://indiannewsuk.blogspot.com/?m=1">अतिथि गोध्न</a> कहलाते</div>
<div>
थे क्योंकि उन्हें गोमांस खिलाया जाता था।<br />
<br />
<br />
<h3>
हड़प्पा सभ्यता के बारे में जानने के लिए&nbsp;</h3>
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