"ज़कात": अवतरणों में अंतर

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[[इस्लाम]] की [[शरीयत]] के मुताबिक हर एक समर्पित [[मुसलमान]] को साल (चन्द्र वर्ष) में अपनी आमदनी का 2.5 % हिस्सा ग़रीबों को दान में देना चाहिए। इस दान को ज़कात कहते हैं।
 
===== क़ुरआन में ज़कात : =====
<blockquote>"निस्संदेह जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए और नमाज़ क़ायम की और [[ज़कात]] दी, उनके लिए उनका बदला उनके रब के पास है, और उन्हें न कोई भय हो और न वे शोकाकुल होंगे" (क़ुरआन 2:277)<br>
 
"जब ये चीज़े फलें तो उनका फल खाओ और उन चीज़ों के काटने के दिन ख़ुदा का हक़ ([[ज़कात]]) दे दो और ख़बरदार फज़ूल ख़र्ची न करो - क्यों कि वह (ख़ुदा) फुज़ूल ख़र्चे से हरगिज़ उलफत नहीं रखता" (क़ुरआन 6:141)</blockquote>
 
==== हदीस में ज़कात ====
<blockquote>नबी ने कहा: पाँच औकिया (52 तोला 6 मासा) से कम चाँदी पर [[ज़कात]] नहीं है, और पाँच ऊंट से कम पर ज़कात नहीं है और पाँच अवाक (खाद्यान्नों का एक विशेष माप,34 मन गल्ला) से कम पर ज़कात नहीं है। ( सही बुखारी , हदीस नंबर 1447)<br>
 
"नबी करीम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने फरमाया कि मैं तुम्हें चार कामों का हुक्म देता हूं और चार कामों से रोकता हूं। मैं तुम्हें ईमान बिल्लाह का हुक्म देता हूं तुम्हें मालूम है कि ईमान बिल्लाह क्या है? उसकी गवाही देना है कि अल्लाह के सिवा कोई पूज्य नहीं और नमाज कायम करना और [[ज़कात]] देने और गनीमत में पांचवा हिस्सा देने का हुक्म देता  हूं" (सही बुख़ारी, 7556)</blockquote>
 
==ज़कात का मक़सद==
"https://hi.wikipedia.org/wiki/ज़कात" से प्राप्त