"सुभद्रा": अवतरणों में अंतर

No edit summary
टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
सुभद्रा वसुदेव की पुत्री थी, लेकिन वह देवकी पैदा नहीं हुयी। वसुदेव की दुसरी पत्नी रोहिनी से पैदा हुयी ती।
टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
पंक्ति 10:
अर्जुन-सुभद्रा विवाह
एक बार वृष्णि संघ, भोज और अंधक वंश के लोगों ने रैवतक पर्वत पर बहुत बड़ा उत्सव मनाया। इस अवसर पर हज़ारों रत्नों और अपार संपत्ति का दान किया गया। बालक, वृद्ध और स्त्रियां सज-धजकर घूम रही थीं। अक्रूर, सारण, गद, वभ्रु, विदूरथ, निशठ, चारुदेष्ण, पृथु, विपृथु, सत्यक, सात्यकि, हार्दिक्य, उद्धव, बलराम तथा अन्य प्रमुख यदुवंशी अपनी-अपनी पत्नियों के साथ उत्सव की शोभा बढ़ा रहे थे। गंधर्व और बंदीजन उनका विरद बखान रहे थे। गाजे-बाजे, नाच तमाशे की भीड़ सब ओर लगी हुई थी। इस उत्सव में कृष्ण और अर्जुन भी बड़े प्रेम से साथ-साथ घूम रहे थे। वहीं कृष्ण की बहन सुभद्राबहनसुभद्रा भी थीं। उनकी रूप राशि से मोहित होकर अर्जुन एकटक उनकी ओर देखने लगे। कृष्ण ने अर्जुन के अभिप्राय को जानकर कहा- "तुम्हारे यहाँ स्वयंवर की चाल (प्रचलन) है, परंतु यह निश्चय नहीं कि सुभद्रा तुम्हें स्वयंवर में वरेगी या नहीं, क्योंकि सबकी रुचि अलग-अलग होती है, लेकिन राजकुलों में बलपूर्वक हर कर ब्याह करने की भी रीति है। इसलिए तुम्हारे लिए वही मार्ग प्रशस्त होगा।"
एक दिन सुभद्रा रैवतक पर्वत पर देवपूजा करने गईं। पूजा के बाद पर्वत की प्रदक्षिणा की। ब्राह्मणों ने मंगल वाचन किया। जब सुभद्रा की सवारी द्वारका के लिए रवाना हुई, तब अवसर पाकर अर्जुन ने बलपूर्वक उसे उठाकर अपने रथ में बिठा लिया और अपने नगर की ओर चल दिए। सैनिक सुभद्राहरण का यह दृश्य देखकर चिल्लाते हुए द्वारका की सुधर्मा सभा में गए और वहां सब हाल कहा। सुनते ही सभापाल ने युद्ध का डंका बजाने का आदेश दे दिया। वह आवाज़ सुनकर भोज, अंधक और वृष्णि वंशों के योद्धा अपने आवश्यक कार्यों को छोड़कर वहां इकट्ठे होने लगे। सुभद्राहरण का वृत्तान्त सुनकर उनकी आंखें चढ़ गईं। उन्होंने सुभद्रा का हरण करने वाले को उचित दंड देने का निश्चय किया। कोई रथ जोतने लगा, कोई कवच बांधने लगा, कोई ताव के मारे ख़ुद घोड़ा जोतने लगा, युद्ध की सामग्री इकट्ठा होने लगी। तब बलराम ने कहा- "हे वीर योद्धाओ! कृष्ण की राय सुने बिना ऐसा क्यों कर रहे हो?" फिर उन्होंने कृष्ण से कहा- "जनार्दन! तुम्हारी इस चुप्पी का क्या अभिप्राय है? तुम्हारा मित्र समझकर अर्जुन का यहाँ इतना सत्कार किया गया और उसने जिस पत्तल में खाया, उसी में छेद किया। यह दुस्साहस करके उसने हमें अपमानित किया है। मैं यह नहीं सह सकता।"