अय्यामे बीज़ का रोज़ा: यानी हर चन्द्र वर्ष के महीने की तेहरवीं, चौदहवीं, पन्द्रहवीं तारीखों के रोजे़
पीर के दिन और जुमेरात के दिन का रोज़ा
[[इस्लाम]] की [[शरीयत]] के मुताबिक हर एक समर्पित [[मुसलमान]] को साल (चन्द्र वर्ष) में अपनी आमदनी का 2.5 % हिस्सा ग़रीबों को दान में देना चाहिए। इस दान को ज़कात कहते हैं।
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==ज़कात का मक़सद==
ज़कात का मक़सद ये है कि ज़रूरतमंदों की मदद करके उन्हें भी ज़कात देने के लायक़ और क़ाबिल बनाना.
==ज़कात कौन देता है?, किसको देना है?, किसको नहीं देना है?==
===ज़कात कौन देता है ===
ज़कात हर मुसलमान का फ़र्ज़ है।
* बालिग़ हो
* कमाने के लायक़ हो
*
===ज़कात किसको दे सकते हैं===
ज़कात इनको दे सकते हैं
* रिश्तेदार
* दोस्त
* ग़रीब और मजबूर
* मिसकीन और फ़क़ीर
* यतीम
* धर्म के लिए काम करने वाले
===ज़कात किसको नहीं दे सकते ===
ज़कात इन लोगों को नहीं दे सकते, क्योंकि इन को देखभाल करने की ज़िम्मेदारी होती है, इनकी देखभाल करना बेटों, पति और बाप की होती है, इस लिए व्यक्ती को निम्न लोगों को ज़कात देने की अनुमती नहीं है।