"फ़रीदुद्दीन गंजशकर": अवतरणों में अंतर
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'''बाबा फरीद''' (1173-1266), हजरत ख्वाजा फरीद्दुद्दीन गंजशकर (उर्दू: حضرت بابا فرید الدین مسعود گنج شکر) [[भारतीय उपमहाद्वीप]] के पंजाब क्षेत्र के एक [[सूफ़ी संत|सूफी संत]] थे। यह एक उच्चकोटि के [[पंजाबी]] [[कवि]] भी थे। [[सिख गुरु|सिख गुरुओं]] ने इनकी रचनाओं को सम्मान सहित [[श्री गुरु ग्रंथ साहिब]] में स्थान दिया।
==जीवनी==
बाबा फरीद का जन्म ११७3 ई. में लगभग पंजाब में हुआ। उनका वंशगत संबंध [[काबुल]] के बादशाह फर्रुखशाह से था। १८ वर्ष की अवस्था में वे [[मुल्तान]] पहुंचे और वहीं [[ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी]] के संपर्क में आए और [[चिश्ती]] सिलसिले में दीक्षा प्राप्त की। गुरु के साथ ही मुल्तान से देहली पहुँचे और ईश्वर के ध्यान में समय व्यतीत करने लगे। देहली में शिक्षा दीक्षा पूरी करने के उपरांत बाबा फरीद ने १९-२० वर्ष तक [[हिसार]] जिले के हाँसी नामक कस्बे में निवास किया। शेख कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की मृत्यु के उपरांत उनके खलीफा नियुक्त हुए किंतु राजधानी का जीवन उनके शांत स्वभाव के अनुकूल न था अत: कुछ ही दिनों के पश्चात् वे पहले हाँसी, फिर खोतवाल और तदनंतर दीपालपुर से कोई २८ मील दक्षिण पश्चिम की ओर एकांत स्थान अजोधन (पाक पटन) में निवास करने लगे। अपने जीवन के अंत तक वे यहीं रहे। अजोधन में निर्मित फरीद की समाधि [[हिंदुस्तान]] और [[खुरासान]] का पवित्र तीर्थस्थल है। यहाँ [[मुहर्रम]] की ५ तारीख को उनकी मृत्यु तिथि की स्मृति में एक मेला लगता है। [[वर्धा]] जिले में भी एक पहाड़ी जगह गिरड पर उनके नाम पर मेला लगता है।
वे [[योगी|योगियों]] के संपर्क में भी आए और संभवत: उनसे स्थानीय भाषा में विचारों का आदान प्रदान होता था। कहा जाता है कि बाबा ने अपने चेलों के लिए [[हिंदी]] में जिक्र (जाप) का भी अनुवाद किया। [[सियरुल औलिया]] के लेखक अमीर खुर्द ने बाबा द्वारा रचित [[मुल्तानी भाषा]] के एक दोहे का भी उल्लेख किया है। गुरु ग्रंथ साहब में शेख फरीद के ११२ 'सलोक' उद्धृत हैं। यद्यपि विषय वही है जिनपर बाबा प्राय: वार्तालाप किया करते थे, तथापि वे बाबा फरीद के किसी चेले की, जो बाबा [[गुरु नानक|नानक]] के संपर्क में आया, रचना ज्ञात होते हैं। इसी प्रकार फवाउबुस्सालेकीन, अस्रारुख औलिया एवं राहतुल कूल्ब नामक ग्रंथ भी बाबा फरीद की रचना नहीं हैं। बाबा फरीद के शिष्यों में हजरत अलाउद्दीन अली आहमद साबिर कलियरी और हजरत निजामुद्दीन औलिया को अत्यधिक प्रसिद्धि प्राप्त हुई। वास्तव में बाबा फरीद के आध्यात्मिक एवं नैतिक प्रभाव के कारण उनके समकालीनों को इस्लाम के समझाने में बड़ी सुविधा हुई।
बाबा फरीद देहान्त १२६५ ई. में हुआ। बाबा फरीद का मज़ार [[पाकपट्टन|पाकपट्टन शरीफ]] ([[पाकिस्तान]]) में है। वर्तमान समय में भारत के [[पंजाब (भारत)|पंजाब]] प्रांत में स्थित [[फरीदकोट]] शहर का नाम बाबा फरीद पर ही रखा गया था।
== कुछ रचनाएँ ==
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:''इह दो नैना मत छुओ, मोहे पिय देखन की आस। <br />
:वृद्ध अवस्था में एक समय ऐसा भी था कि इनके शरीर को कौओं ने नोच कर खाना शुरु कर दिया। दयावश होकर इन्हें भी बाबा फरीद ने मना नहीं किया, मात्र इतनी विनती की कि वे बस उनकी आँखों को मत छुएं क्योंकि इनसे वे अपने प्रिय प्रभु के दर्शन करने की आशा रखते हैं। इस घटना को दर्शाता हुआ एक चित्र इनकी मज़ार स्थान पर है।
=== दोहे ===
;अहिंसा का उपदेश
:''जो तैं मारण मुक्कियाँ, उनां ना मारो घुम्म, <br />
:''अपनड़े घर जाईए, पैर तिनां दे चुम्म। <br />
-यदि कोई आपको घूँसा भी मारे तो उसे पलट कर मत मारो। उसके पैरों को चूमो और अपने घर की राह लो।
;संतोष का उपदेश
:''रुखी सुक्खी खाय के, ठण्डा पाणी पी, <br />
:''वेख पराई चोपड़ी, ना तरसाईये जी। <br />
-रूखी सूखी जो मिले खाओ और ठण्डा पानी पियो। दूसरे की चुपड़ी रोटी देखकर ईर्ष्या मत करो।
;परनिंदा से बचने का उपदेश
:''जे तू अकल लतीफ हैं, काले लिख ना लेख,<br />
:''अपनड़े गिरह बान में, सिर नीवां कर वेख। <br />
-यदि तुम में अक्ल है तो किसी की बुराई मत करो, बल्कि अपने गिरहबान में सिर झुका कर देखो।
;प्रभु विरह
:''बिरहा बिरहा आखिए, बिरहा हुं सुलतान, <br />
:''जिस तन बिरहा ना उपजै, सो तन जान मसान। <br />
== साहित्यिक देन ==
श्री [[गुरुग्रंथ साहिब]] में आप की बाणी के श्लोक विद्यमान हैं जिन्हें "सलोक फरीद जी" कहा जाता
== सन्दर्भ ==
{{टिप्पणीसूची}}
==बाहरी कडियां==
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[[श्रेणी:इस्लामी विद्वान]]
[[श्रेणी:भारतीय
[[श्रेणी:भारतीय सुन्नी मुस्लिम विद्वान]]
[[श्रेणी:मृत लोग]]
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