"दुर्वासा ऋषि": अवतरणों में अंतर

No edit summary
टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
सौरभ तिवारी 05 के अवतरण 4645011पर वापस ले जाया गया : Vandalism (ट्विंकल)
टैग: किए हुए कार्य को पूर्ववत करना
पंक्ति 7:
जब से दुर्वासाजी अपने प्राण बचाने के लिए इधर-उधर भाग रहे थे, तब से महाराज अम्बरीशने भोजन नहीं किया था। उन्होंने दुर्वासाजी के चरण पकड़ लिए और बडे़ प्रेम से भोजन कराया। दुर्वासाजी भोजन करके तृप्त हुए और आदर पूर्वक राजा से भोजन करने का आग्रह किया। दुर्वासाजी ने संतुष्ट होकर महाराज अम्बरीश के गुणों की प्रशंसा की और आश्रम लौट आए। महाराज अम्बरीश के संसर्ग से महर्षि दुर्वासा का चरित्र बदल गया। अब वे ब्रह्म ज्ञान और अष्टांग योग आदि की अपेक्षा शुद्ध भक्ति मार्ग की ओर झुक गए। महर्षि दुर्वासा जी शंकर जी के अवतार एवं प्रकाश हैं। '''ऋषि दुर्वासा के जीवन से जुड़ी कथाएं (Rishi Durvasa story) –'''
 
'''दुर्वासा और शकुंतला –''' कालिदास द्वारा लिखित अभिज्ञानशाकुन्तलम् के अनुसार ऋषि दुर्वासा शकुंतला से कहते है कि वे उनका स्वागत सत्कार करे, लेकिन शकुंतला जो अपने प्रेमी दुष्यंत का इंतजार कर रही होती है, ऋषि दुर्वासा ने मना कर देती है. तब ऋषि क्रोध में आकर उसे श्राप देते है कि उसका प्रेमी उसे भूल जाये. इस श्राप से भयभीत शकुन्तला ऋषि दुर्वासा से माफ़ी मांगती है, तब ऋषि श्राप को थोडा कम करते हुए कहते है कि दुष्यंत उन्हें तब पहचानेगा जब वो अपनी दी हुई अंगूठी देखेगा. ऋषि दुर्वासा ने जैसा कहा था वैसा ही होता है. शकुंतला और दुष्यंत मिल जाते है, और सुख से अपना जीवन व्यतीत करने लगते है, उनका एक बेटा भी होता है, भरत जिनके नाम से आगे चलकर हमारे देश आर्यावर्त का नाम भारतवर्ष अर्थात् भारत पङा ।
 
'''दुर्वासा और कुंती –''' महाभारत में ऐसी बहुत सी कथाएं है, जहाँ ऋषि दुर्वासा से लोगों ने वरदान मांगे और उन्होंने प्रसन्न होकर उन्हें आशीषित किया. इन्ही में से एक है कुंती और दुर्वासा से जुड़ी कथा. कुंती एक जवान लड़की थी, जिसे राजा कुंतीभोज ने गोद लिया हुआ था.  राजा अपनी बेटी को एक राजकुमारी की तरह रखते थे. दुर्वासा एक बार राजा कुन्तिभोज के यहाँ मेहमान बनकर गए. वहां कुंती पुरे मन से ऋषि की  सेवा और आव भगत की. कुंती ने ऋषि के गुस्से को जानते हुए, उन्हें समझदारी के साथ खुश किया. ऋषि दुर्वासा कुंती की इस सेवा से बहुत खुश हुए, और जाते वक्त उन्होंने कुंती को अथर्ववेद मन्त्र के बारे में बताया, जिससे कुंती अपने मनचाहे देव से प्राथना कर संतान प्राप्त कर सकती थी. मन्त्र कैसे काम करता है, ये देखने के लिए कुंती शादी से पहले सूर्य देव का आह्वान करती है, तब उन्हें कर्ण प्राप्त होता है, जिसे वे नदी में बहा देती है. फिर इसके बाद उनकी शादी पांडू से होती है, आगे चलकर इन्ही मन्त्रों का प्रयोग करके पांडव का जन्म हुआ था.
 
मण्डल आजमगढ़ मुख्यालय से ४० किलोमीटर कि दुरी पर बसा हैं एक छोटा सा गाँव. जिसका नाम हैं दुर्वासा . तहसील और ब्लोंक फूलपुर हैं. फूलपुर से दुर्वासा कि दुरी लगभग ७ किलोमीटर हैं. ये वोही फूलपुर(फूलपुर क़स्बा अलग हैं, और तहसील और ब्लाक अलग हैं/ यह महर्षि दुर्वासा की सिद्ध तपस्या स्थली एवं तीनों युगों का प्रसिद्ध आश्रम है। [[भारत]] के समस्त भागों से लोग इस आश्रम का दर्शन करने और तरह-तरह की लौकिक कामनाओं की पूर्ति करने के लिए आते हैहैं।
 
 
रामप्रवेश यादव
 
Nirmal yadav
 
== इन्हें भी देखें ==