"शिरडी साईं बाबा": अवतरणों में अंतर

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क्या कह रह हैं साईं के पिता के बारे में साईं के पिता जो एक पिंडारी ही थे, उनका मुख्य काम था अफगानिस्तान से भारत के राज्यों में लूटपाट करना। एक बार लूटपाट करते-करते वे महाराष्ट्र के अहमदनगर पहुंचे, जहां वे एक वेश्या के घर में रुक गए। फिर वे उसी के पास रहने लगे। कुछ समय बाद उस वेश्या से उन्हें एक लड़का और एक लड़की पैदा हुई। लड़के का नाम उन्होंने चांद मियां रखा। लड़के को लेकर वे अफगानिस्तान चले गए। लड़की को वेश्या के पास ही छोड़ गए। अफगानिस्तान उस काल में इस्लामिक ट्रेनिंग सेंटर था, जहां लूटपाट, जिहाद और धर्मांतरण करने के तरीके सिखाए जाते थे।
 
==1857 के दौरान हिन्दुस्तान में हिन्दू और मुसलमानों के बीच अंग्रेजों ने फूट डालने की नीति के तहत कार्य करना शुरू कर दिया था। इस क्रांति के असफल होने का कारण यही था कि कुछ हिन्दू और मुसलमान अंग्रेजों की चाल में आकर उनके लिए काम करते थे। बंगाल में भी हिन्दू-मुस्लिम संतों के बीच फूट डालने के कार्य को अंजाम दिया गया। इस दौर में कट्टर मुसलमान और पाकिस्तान का सपना देखने वाले मुसलमान अंग्रेजों के साथ थे। क्या कह रह हैं साईं के पिता के बारे में साईं के पिता जो एक पिंडारी ही थे, उनका मुख्य काम था अफगानिस्तान से भारत के राज्यों में लूटपाट करना। एक बार लूटपाट करते-करते वे महाराष्ट्र के अहमदनगर पहुंचे, जहां वे एक वेश्या के घर में रुक गए। फिर वे उसी के पास रहने लगे। कुछ समय बाद उस वेश्या से उन्हें एक लड़का और एक लड़की पैदा हुई। लड़के का नाम उन्होंने चांद मियां रखा। लड़के को लेकर वे अफगानिस्तान चले गए। लड़की को वेश्या के पास ही छोड़ गए। अफगानिस्तान उस काल में इस्लामिक ट्रेनिंग सेंटर था, जहां लूटपाट, जिहाद और धर्मांतरण करने के तरीके सिखाए जाते थे। श्री गोविंदराव रघुनाथ दाभोलकर (हेमाड़ पंत), हिन्दी अनुवाद- श्री शिवराम ठाकुर, श्री साईं बाबा संस्थान, शिरडी, १७वाँ संस्करण-१९९९, पृष्ठ-२०.</ref>
=== बचपन एवं चाँद पाटिल का आश्रय ===
बाबा का लालन-पालन एक मुसलमान फकीर के द्वारा हुआ था, परंतु बचपन से ही उनका झुकाव विभिन्न धर्मों की ओर था लेकिन किसी एक धर्म के प्रति उनकी एकनिष्ठ आस्था नहीं थी। कभी वे हिन्दुओं के मंदिर में घुस जाते थे तो कभी मस्जिद में जाकर शिवलिंग की स्थापना करने लगते थे। इससे न तो गाँव के हिन्दू उनसे प्रसन्न थे और न मुसलमान। निरंतर उनकी शिकायतें आने के कारण उनको पालने वाले फकीर ने उन्हें अपने घर से निकाल दिया।<ref name="गुप्त3">''शिरडी साईं बाबा : दिव्य महिमा'', गणपति चन्द्र गुप्त, लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद, तृतीय (पेपरबैक) संस्करण-2011, पृष्ठ-13.</ref> साईं के जितने वृत्तांत प्राप्त हैं वे सभी उनके किसी न किसी चमत्कार से जुड़े हुए हैं। ऐसे ही एक वृत्तांत के अनुसार औरंगाबाद जिले के धूप गाँव के एक धनाढ्य मुस्लिम सज्जन की खोयी घोड़ी बाबा के कथनानुसार मिल जाने से उन्होंने प्रभावित होकर बाबा को आश्रय दिया और कुछ समय तक बाबा वहीं रहे।<ref name="सच्चरित्र">''श्री साई सच्चरित्र'', श्री गोविंदराव रघुनाथ दाभोलकर (हेमाड़ पंत), हिन्दी अनुवाद- श्री शिवराम ठाकुर, श्री साईं बाबा संस्थान, शिरडी, १७वाँ संस्करण-१९९९, पृष्ठ-२०.</ref>
 
=== शिरडी में आगमन ===