"शिरडी साईं बाबा": अवतरणों में अंतर

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=== माता-पिता ===
जन्मतिथि एवं स्थान की तरह ही साईं के माता-पिता के बारे में भी प्रमाणिक रूप से कुछ भी ज्ञात नहीं है। श्री सत्य साईं बाबा द्वारा दिये गये पूर्वोक्त विवरण के अनुरूप उनके पिता का नाम श्री गंगा बावड़िया एवं उनकी माता का नाम देवगिरि अम्मा माना जाता है। ये दोनों शिव-पार्वती के उपासक थे तथा शिव के आशीर्वाद से ही उनके संतान हुई थी। कहा जाता है कि जब साईं अपनी माँ के गर्भ में थे उसी समय उनके पिता के मन में ब्रह्म की खोज में अरण्यवास की अभिलाषा तीव्र हो गयी थी। वे अपना सब कुछ त्याग कर जंगल में निकल पड़े थे। उनके साथ उनकी पत्नी भी थी। मार्ग में ही उन्होंने बच्चे को जन्म दिया था और पति के आदेश के अनुसार उसे वृक्ष के नीचे छोड़ कर चली गयी थी। एक मुस्लिम फकीर उधर से निकले जो निःसंतान थे। उन्होंने ही उस बच्चे को अपना लिया और प्यार से 'बाबा' नाम रखकर उन्होंने उसका पालन-पोषण किया।<ref name="गुप्त" />
झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की सेना में 500 पिंडारी अफगान पठान सैनिक थे। उनमें से कुछ सैनिकों को अंग्रेजों ने रिश्वत देकर मिला लिया था। उन्होंने ही झांसी की रानी के किले के राज अंग्रेजों को बताए थे। युद्ध के मैदान से रानी जिस रास्ते पर घोड़े के साथ निकल पड़ीं, उसका रास्ता इन्हीं पिंडारी पठानों ने अंग्रेजों को बताया। अंत में पीछा करने वाले अंग्रेजों के साथ 5 पिंडारी पठान भी थे। उनमें से एक शिर्डी के कथित साईं बाबा के पिता थे जिसे बाद में झांसी छोड़कर महाराष्ट्र में छिपना पड़ा था। उसका नाम था बहरुद्दीन। उसी पिंडारी पठान भगोड़े सैनिक का बेटा यह शिर्डी का साईं है, जो वेश्या से पैदा हुआ और और जिसका नाम चांद मियां था।
 
=== बचपन एवं चाँद पाटिल का आश्रय ===
क्या हुआ था 1857 में 1857 के दौरान हिन्दुस्तान में हिन्दू और मुसलमानों के बीच अंग्रेजों ने फूट डालने की नीति के तहत कार्य करना शुरू कर दिया था। इस क्रांति के असफल होने का कारण यही था कि कुछ हिन्दू और मुसलमान अंग्रेजों की चाल में आकर उनके लिए काम करते थे। बंगाल में भी हिन्दू-मुस्लिम संतों के बीच फूट डालने के कार्य को अंजाम दिया गया। इस दौर में कट्टर मुसलमान और पाकिस्तान का सपना देखने वाले मुसलमान अंग्रेजों के साथ थे।
बाबा का लालन-पालन एक मुसलमान फकीर के द्वारा हुआ था, परंतु बचपन से ही उनका झुकाव विभिन्न धर्मों की ओर था लेकिन किसी एक धर्म के प्रति उनकी एकनिष्ठ आस्था नहीं थी। कभी वे हिन्दुओं के मंदिर में घुस जाते थे तो कभी मस्जिद में जाकर शिवलिंग की स्थापना करने लगते थे। इससे न तो गाँव के हिन्दू उनसे प्रसन्न थे और न मुसलमान। निरंतर उनकी शिकायतें आने के कारण उनको पालने वाले फकीर ने उन्हें अपने घर से निकाल दिया।<ref name="गुप्त3">''शिरडी साईं बाबा : दिव्य महिमा'', गणपति चन्द्र गुप्त, लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद, तृतीय (पेपरबैक) संस्करण-2011, पृष्ठ-13.</ref> साईं के जितने वृत्तांत प्राप्त हैं वे सभी उनके किसी न किसी चमत्कार से जुड़े हुए हैं। ऐसे ही एक वृत्तांत के अनुसार औरंगाबाद जिले के धूप गाँव के एक धनाढ्य मुस्लिम सज्जन की खोयी घोड़ी बाबा के कथनानुसार मिल जाने से उन्होंने प्रभावित होकर बाबा को आश्रय दिया और कुछ समय तक बाबा वहीं रहे।<ref name="सच्चरित्र">''श्री साई सच्चरित्र'', श्री गोविंदराव रघुनाथ दाभोलकर (हेमाड़ पंत), हिन्दी अनुवाद- श्री शिवराम ठाकुर, श्री साईं बाबा संस्थान, शिरडी, १७वाँ संस्करण-१९९९, पृष्ठ-२०.</ref>
क्या कह रह हैं साईं के पिता के बारे में साईं के पिता जो एक पिंडारी ही थे, उनका मुख्य काम था अफगानिस्तान से भारत के राज्यों में लूटपाट करना। एक बार लूटपाट करते-करते वे महाराष्ट्र के अहमदनगर पहुंचे, जहां वे एक वेश्या के घर में रुक गए। फिर वे उसी के पास रहने लगे। कुछ समय बाद उस वेश्या से उन्हें एक लड़का और एक लड़की पैदा हुई। लड़के का नाम उन्होंने चांद मियां रखा। लड़के को लेकर वे अफगानिस्तान चले गए। लड़की को वेश्या के पास ही छोड़ गए। अफगानिस्तान उस काल में इस्लामिक ट्रेनिंग सेंटर था, जहां लूटपाट, जिहाद और धर्मांतरण करने के तरीके सिखाए जाते थे।
 
==1857 के दौरान हिन्दुस्तान में हिन्दू और मुसलमानों के बीच अंग्रेजों ने फूट डालने की नीति के तहत कार्य करना शुरू कर दिया था। इस क्रांति के असफल होने का कारण यही था कि कुछ हिन्दू और मुसलमान अंग्रेजों की चाल में आकर उनके लिए काम करते थे। बंगाल में भी हिन्दू-मुस्लिम संतों के बीच फूट डालने के कार्य को अंजाम दिया गया। इस दौर में कट्टर मुसलमान और पाकिस्तान का सपना देखने वाले मुसलमान अंग्रेजों के साथ थे। क्या कह रह हैं साईं के पिता के बारे में साईं के पिता जो एक पिंडारी ही थे, उनका मुख्य काम था अफगानिस्तान से भारत के राज्यों में लूटपाट करना। एक बार लूटपाट करते-करते वे महाराष्ट्र के अहमदनगर पहुंचे, जहां वे एक वेश्या के घर में रुक गए। फिर वे उसी के पास रहने लगे। कुछ समय बाद उस वेश्या से उन्हें एक लड़का और एक लड़की पैदा हुई। लड़के का नाम उन्होंने चांद मियां रखा। लड़के को लेकर वे अफगानिस्तान चले गए। लड़की को वेश्या के पास ही छोड़ गए। अफगानिस्तान उस काल में इस्लामिक ट्रेनिंग सेंटर था, जहां लूटपाट, जिहाद और धर्मांतरण करने के तरीके सिखाए जाते थे। श्री गोविंदराव रघुनाथ दाभोलकर (हेमाड़ पंत), हिन्दी अनुवाद- श्री शिवराम ठाकुर, श्री साईं बाबा संस्थान, शिरडी, १७वाँ संस्करण-१९९९, पृष्ठ-२०.</ref>
 
=== शिरडी में आगमन ===