"सवैया": अवतरणों में अंतर
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'''सवैया''' एक [[छंद|छन्द]] है। यह चार चरणों का समपाद वर्णछंद है। वर्णिक वृत्तों में 22 से 26 अक्षर के चरण वाले जाति छन्दों को सामूहिक रूप से हिन्दी में सवैया कहने की परम्परा है। इस प्रकार सामान्य जाति-वृत्तों से बड़े और वर्णिक दण्डकों से छोटे छन्द को सवैया समझा जा सकता है।
सवैया के [[मत्तगयंद|मत्तगयन्द]], [[सुमुखी]], [[सुंदरी]] आदि भेद होते है।
'मत्तगयंद'सवैया:- मत्तगयन्द छंद मे चार चरण होते है। प्रत्येक चरण मे सात भगण और दो गुरु के क्रम मे 23 वर्ण होते हैं। 12 और 11 वर्णों पर यति होती है। इसी को 'मालती' अथवा ' इंदव' भी कहते है। ▼
==मत्तगयंद सवैया==
उदाहरण:- ▼
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'''उदाहरण'''
या लकुटी अरु कमरिया पर राज तिहुँ पुर के ताजी डारों।
आठहुँ सिद्धि नवो निधि को सुख नन्द की धेनु चारे बिसरों।
'रसखान' कबौं इन आँखिन तें, ब्रज के वन बाग तड़ाग निहारौं।
कोटिक हुँ कलधौत के धाम, करील की कुंजन ऊपर वारौं।।
==सुन्दरी सवैया==
▲उदाहरण:-
सुख शांति रहे सब ओर सदा, अविवेक तथा अघ पास न आवै।
गुणशील तथा बल बुद्धि बढ़ै, हठ बैर विरोध घटै, मिटि जावै।
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कवि पंडित शुरन वीरन से विलसे यह देश सदा सुख पावै।।
==सुमुखी सवैया==
उदाहरण:-▼
जु लोक लगैं सिय रामहिं साथ चलैं बन माँहिं फिरै न चहैं ।
हमें प्रभु आयसु देहु चलैं रउरे संग यों कर जोरि कहैं ॥
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सिया सुमुखी हरि फेरि तिन्हें बहु भाँतिन तें समुझाय कहैं ॥
==अन्य उदाहरण==
:चाँद चले नहिं रात कटे, यह सेज जले जइसे अगियारी
:नागिन सी नथनी डसती, अरु माथ चुभे ललकी बिंदिया री।
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