"श्रीमद्भगवद्गीता": अवतरणों में अंतर

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लगभग 20वीं सदी के शुरू में [[गीता प्रेस गोरखपुर]] (1923) के सामने गीता का वही पाठ था जो आज हमें उपलब्ध है। 20वीं सदी के लगभग भीष्मपर्व का [[जावा की भाषा]] में एक अनुवाद हुआ था। उसमें अनेक मूलश्लोक भी सुरक्षित हैं। [[श्रीपाद कृष्ण बेल्वेलकर]] के अनुसार जावा के इस प्राचीन संस्करण में गीता के केवल साढ़े इक्यासी श्लोक मूल [[संस्कृत]] के हैं। उनसे भी वर्तमान पाठ का समर्थन होता है।
 
'''कृष्ण अर्जुन संवाद एवं गीता सार'''
 
रोंगटे तक खड़े हो जाते जिनके स्वागत में,
 
करूँ वार केसे मैं उनके दामन में।
 
आंख भी उठ ना सकी जिनके आगे में,
 
माधव केसे तिर चलाउं उनके आगे मैं।
 
कुल कुटुबं सब तबाह करके,
 
नहीं चाहिए भुमि सब स्वाह करके।
 
कहा कृष्ण ने अर्जुन को,
 
रण में आगे बढ़ने को।
 
मन को करो नियंत्रण में,
 
अब शेष नहीं कुछ मंथन में।
 
जब क्रोध भ्रम उपजता है,
 
सब नाश कर देता है।
 
चहुँ दिशा से घेरे जब संकट हैं,
 
आये कहाँ से हीन भाव तुम्हारे अंदर हैं।
 
श्रेष्ठ पुरुष में आते विसाद नहीं,
 
क्षत्रिय धर्म निभाओ और कोई परयाय नहीं।
 
सांस रोक लेने से कहाँ हवा रूकती है,
 
अमर आत्मा निरन्तर चलते रहती है।
 
नशवर का लोभ क्यों,
 
निश्चित का मोह क्यों।
 
सत्य का शोक क्यों।
 
बाधाओं में जो बन्धते हैं,
 
सुख दुःख जिसको घेरे रहते हैं।
 
अर्जुन स्थितप्रज्ञ बनो,
 
अर्जुन तुम इन्द्रियजयी बनो।
 
विजय पराजय का छोड़ कुढ़ंग,
 
मोह की तुम ना उड़ाओ पतंग।
 
पतन ना होने दो, तुम स्वयं का उद्धार करो।
 
भटको नहीं बाधाओं में, निज का उपचार करो।
 
समय आ गया अर्जुन, तुम अपना अब कर्म करो
 
कर्तव्य तुम्हारा है क्षत्रिय, तुम युद्ध करो।
 
है कर्मफल कहाँ तुम्हारे हाथों में।
 
पड़ते हो क्यों तुम व्यर्थ प्रलापों में।
 
मैं इश्वर मुझमें ही ब्रम्हांड निहित,
 
चल अचल नश्वर सब मुझसे है,
 
आकाश निर पवन सब मुझसे है।
 
देव दानव सभी हैं मेरे अंश,
 
हर कण कण में है मेरा वंश।
 
अर्जुन अन्तिम आदेश है,
 
कौन्तेय वचन की लाज करो
 
गांडीव उठाओ अर्जुन अब तुम युद्ध करो।
 
'''- त्रिवेदी आशिष'''<br />
 
==[https://www.hindulive.com/bhagavad-gita/ श्रीमद्भगवद्गीता] यथारूप ==