"भारतीय संसद": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
पंक्ति 240:
{{मुख्य|संसदीय विशेषाधिकार}}
संसदीय विशेषाधिकार वे विशिष्ट अधिकार हैं जो संसद के दोनों सदनों को, उसके सदस्यों को और समितियों को प्राप्त है। विशेषाधिकार इस दृष्टि से दिए जाते हैं कि [[संसद]] के दोनों सदन, उसकी समितियां और सदस्य स्वतंत्र रूप से काम कर सकें। उनकी गरिमा बनी रहे, परंतु इसका यह अर्थ नहीं है कि कानून की नजरों में साधारण नागरिकों के मुकाबले में विशेषाधिकार प्राप्त सदस्यों की स्थिति भिन्न है। जहाँ तक विधियों के लागू होने का संबंध है, सदस्य लोगों के प्रतिनिधि होने के साथ साथ साधारण नागरिक भी होते हैं। मूल विधि यह है कि संसद सदस्यों सहित सभी नागरिक कानून की नजरों में बराबर माने जाने चाहिए। जो दायित्व अन्य नागरिकों के हों, वही उनके भी होते हैं और शायद सदस्य होने के नाते कुछ अधिक होते हैं।
संसदों का सबसे महत्वपूर्ण विशेषाधिकार है सदन और उसकी समितियों में पूरी स्वतंत्रता के साथ अपने विचार रखने की छूट। संसद के किसी सदस्य द्वारा कही गई किसी बात या दिए गए किसी मत के संबंध में उसके विरूद्ध किसी [[न्यायालय]] में कोई कार्यवाही नहीं की जा सकती। [[संसदीय विशेषाधिकार |संसदीय विशेषाधिकारों]] की सूचियां तैयार की जा सकती हैं। वास्तव में ये तैयार भी की गईं हैं परंतु ऐसी कोई भी सूची पूरी नहीं है। थोड़े में कह सकते हैं कि कोई भी वह काम जो सदन के, उसकी [[संसदीय समिति |समितियों]] के या उसके सदस्यों के काम में किसी प्रकार की बाधा डाले वह संसदीय विशेषाधिकार का हनन करता है। उदाहरण के लिए, कोई सदस्य न केवल उस समय गिरफ्तार नहीं किया जा सकता जबकि उस सदन का, जिसका कि वह सदस्य हो, अधिवेशन चल रहा हो या जबकि उस संसदीय समिति की, जिसका वह सदस्य हो, बैठक चल रही हो, या जबकि दोनों सदनों की संयुक्त बैठक चल रही हो, या जबकि दोनों सदनों की संयुक्त बैठक चल रही हो। संसद के अधिवेशन के प्रारंभ से 40 दिन पहले और उसकी समाप्ति से 40 दिन बाद या जबकि वह सदन को आ रहा हो या सदन के बाहर जा रहा हो, तब भी उसे गिरफ्तार नहीं किया जा सकता।
संसद के परिसरों के भीतर,
सदन का दांडिक क्षेत्र अपने सदनों तक और उनके सामने किए गए अपराधों तक ही सीमित न होकर सदन की सभी अवमाननाओं पर लागू होता है। चाहे अवमानना सदस्यों द्वारा की गई हो या ऐसे व्यक्तियों द्वारा जो सदस्य न हों। इससे भी कोई अंतर नहीं पड़ता कि अपराध सदन के भीतर किया गया है या उसके परिसर से बाहर। सदन का विशेषाधिकार भंग करने या उसकी अवमानना करने के कारण व्यक्तियों को दंड देने की सदन की यह शक्ति संसदीय विशेषाधिकार की नींव है। सदन की ऐसी पंरपरा भी रही है कि सदन का विशेषाधिकार भंग करने या सदन की अवमानना करने के दोषी व्यक्तियों द्वारा स्पष्ट रूप से और बिना किसी शर्त के दिल से व्यक्त किया गया खेद सदन द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है। ऐसे में साधारणतः सदन अपनी गरिमा को देखते हुए ऐसे मामलों पर आगे कार्यवाही न करने का फैसला करता है।
|