"राजेन्द्रलाल मित्र": अवतरणों में अंतर

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==पुरातत्त्व==
[[Image:Mahabodhi-1780s.jpg|right|thumb|300px|सन १७८० के दशक में '''महाबोधि मन्दिर''']]
राजेन्द्रलाल मित्र ने भारत के प्रागैतिहासिक स्थापत्यकला के दस्तावेजीकरण की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य किया। उन्होने रॉयल कला सोसायटी तथा ब्रितानी सरकार के संरक्षण में एक खोजी दल का नेतृत्व किया जो १८६८-६९ के दौरान ओड़ीसा के भुवनेश्वर क्षेत्र में भारतीय मूर्तिकला के अध्ययन के लिए गया था। इस अध्ययन के परिणाम एन्टिक्विटीज ऑफ ओड़िसा (The Antiquities of Orissa) के रूप में प्रकाशित हुए। बाद में इस संकलन को ओड़ीसा के शिल्पकला के महान ग्रन्थ (magnum opus) माना गया। यह कार्य उसी तरह का था जैसा जॉन गार्डनर विल्किन्सन द्वारा रचित 'एन्सिएन्ट इजिप्शियन्स' था। अलेक्जैंडर कनिंघम के साथ मिलकर राजेन्द्रलाल मित्र ने [[महाबोधि मन्दिर]] की खुदाई और उसके पुनर्स्थापन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी दूसरी महत्वपूर्ण कृति 'बुद्ध गया : द हेरिटेज ऑफ शाक्य मुनि' है जिसमें विभिन्न विद्वानों द्वारा [[बोध गया]] से सम्बन्धित प्रेक्षण और टिप्पणियाँ संकलित हैं।
 
ये कृतियाँ तथा इसी तरह के उनके बहुत से अन्य निबन्धों से सम्पूर्ण भारत के मन्दिरों के शिल्प के विस्तृत अध्ययन में सहायता मिली। यूरोप के उनके साथियों ने भारतीय मन्दिरों की नग्न मूर्तियों के निर्माण के लिए प्राचीन भारत के सामाजिक जीवन में नैतिकता के सम्भावित अभाव को कारण बताया था जबकि उनके विपरीत राजेन्द्रलाल मित्र ने इसके लिए उचित कारण दिए।
 
राजेन्द्रलाल मित्र अपने स्थापत्यकला सम्बन्धी लेखों में यूरोपीय विद्वानों के इस विचार का लगातार खण्ड करते हुए दिखते हैं कि भारतीय वास्तुकला (विशेषतः प्रस्तर के भवन) यूनानी वास्तु से व्युत्पन्न है। राजेन्द्र लाल मित्र प्रायः कहा करते थे कि मुसलमानों के आने के पहले का भारतीय स्थापत्य, यूनानी स्थापत्य के बराबरी का है। वे यूनानियों और भारतीयों को जातीय रूप से समान मानते थे और कहते थे कि दोनों की बौद्धिक क्षमता भी समान है। इस बात को लेकर वे प्रायः यूरोपीय विद्वानों से भिड़ जाते थे। जेम्स फर्ग्युसन के साथ उनका विवाद बहुत से इतिहासकारों को रोचक लगता है।
 
==भाषाविज्ञान==